डॉ. नीलम ज्योति
_उसे बराबर लगता था कि उसे अपने पिता का नाम बदलना चाहिए। कारण यह था कि उसके पिता का नाम उसके नाम से ‘बड़ा’ था। उससे जब भी कोई मिलता था उसके पिता से उसकी तुलना करता था और वह दिल ही दिल में जलकर राख हो जाया करता था।_
उसके पिता ने ऐसे बड़े काम किए थे जिन्हें लोग कभी भूल नहीं पाते थे। वह जीवन भर कोशिश करता रहा कि पिता का नाम उसके नाम से छोटा हो जाए लेकिन नहीं हो पाया।
तब वह इस कोशिश में जी जान से जुट गया कि पिता का नाम बदल दे । इसके लिए उसने जरूरी समझा की पिता की हर निशानी को मिटा दिया जाए।
_सबसे पहले उसने पिता के बचे खुचे कपड़े इस तरह जला दिए जैसे राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में विदेशी कपड़े जलाए जाते थे।_
पिता ने जो फर्नीचर ख़रीदा था उसको तो वह पहले ही तोड़ ताड़कर बेच चुका था।
पिता की बहुत कीमती किताबें, कागज़ भी वह जला चुका था।
_पूरे घर में ढूंढ ढूंढ कर उसने पिता की तस्वीरें जमा करके जला डाली थीं।जहां जहां पिता की कोई तस्वीर मिलने की संभावना थी वहां से तस्वीरें लेकर फाड़ डाली थीं।_
पिता से अपना संबंध तोड़ने के लिए उसे पुश्तैनी मकान एक बड़ी बाधा नजर आया। उसने मकान को तुड़वाने का फैसला कर लिया।
जब यह उसकी माता जी को पता चला तो उन्होंने कहा – बेटा हम रहेंगे कहां?
उसने कहा ,- कहीं भी रह लेंगे लेकिन मैं इस मकान की एक एक ईंट तुड़वा दूंगा। किसी को ढूंढने से भी इस मकान का एक टुकड़ा नहीं मिलेगा।
_मैं एक आलीशान मकान बनवाऊँगा जो पिता के मकान से बिल्कुल अलग दिखेगा।_
उसने पूरा मकान तुड़वा दिया। नया आलीशान मकान बनवा दिया। लेकिन फिर भी लोगों ने यह नहीं माना कि उसका पिता कोई और था।
अब एक ही रास्ता बचता था। वह अपनी मां के पास गया। उसने अपनी माता जी के चरण छू कर कहा- माता मैं तुमसे कुछ ऐसा मांगना चाहता हूं जो आज तक किसी पुत्र ने अपनी माता से न मांगा होगा। मुझे वचन दो कि तुम मुझे दोगी।
_माता ने कहा बेटा – तुम्हारे लिए जान दे सकती हूँ… इससे ज़्यादा तुम क्या मांग सकते हो?_
उसने कहा माता – जान से बड़ी चीज मांगने आया हूं।
माता ने कहा – मैं समझी नहीं बेटा…. तुम क्या मांगना चाहते हो? मांगो।
_उसने कहा – अच्छी तरह सोच लो माता…. इंकार न करना…..वैसे इनकार करने का कोई सवाल ही नहीं है …. हाँ, तो हर हाल में करनी ही पड़ेगी।_
माता ने कहा- मांगो बेटा क्या मांगते हो।
उसने कहा – माता तुम्हें पब्लिक के सामने… मीडिया के सामने ….यह कहना पड़ेगा कि मैं अपने पिता की संतान नहीं हूं ….
यह सुनकर उसकी माता थरथर कांपने लगी ।
माता ने कहा – बेटा बुढ़ापे में इतना बड़ा झूठ ….इतना बड़ा अपमान…. इतना बड़ा दुख ….तुम मुझे क्यों देना चाहते हो ?
उसने कहा – यह मेरे सुख के लिए आवश्यक है… माताओं ने सदा से पुत्रों के लिए बलिदान दिया है ….आज तुमको यह बलिदान देना ही पड़ेगा….
_उसकी माता ने पब्लिक के सामने, मीडिया के सामने वही कहा जो वह उससे कहलाना चाहता था और फिर बूढ़ी औरत मंच पर ही गिर गई । कभी नहीं उठी।_
[चेतना विकास मिशन)