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बुकर का शुकर तो कीजिए जनाब !

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सुसंस्कृति परिहार

साथियों भारत की यशस्वी लेखिका गीतांजलि श्री को उनके हिंदी में लिखे उपन्यास रेत समाधि के अंग्रेजी अनुवाद टूंब आॅफ सैंड को इस वर्ष का बुकर पुरस्कार मिला है जिसकी राशि जो तकरीबन 50लाख होती है मूल लेखिका गीतांजलि श्री और अंग्रेजी अनुवादक डेज़ी राकवेल को बराबर बराबर मिलेगी।यह लेखक के लिए दुनिया का  एक बड़ा सम्मान है। साहित्यिक जगत में जहां हिंदी के इस उपन्यास के पुरुस्कृत होने पर हर्ष व्याप्त है वहीं विदेशी पुरस्कारों को वामपंथ से जोड़ने वाले इसे सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। विडम्बना यह है कि इस सम्मान को भी आज की राजनीति में भी देश का सम्मान महसूस करने पर भी ऐतराज नज़र आ रहा है।दुर्भाग्य से गीतांजलि श्री जे एन यू की छात्रा भी रही हैं।

बहरहाल ,इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ देने वाली संस्था ने कहा, “टूंब ऑफ़ सैंड इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा में मूल रूप से लिखी गई यह पहली किताब है. और हिंदी से अनुवादित पहला उपन्यास. टूंब ऑफ़ सैंड उत्तर भारत की कहानी है जो एक 80 वर्षीय महिला के जीवन पर आधारित है. ये किताब ऑरिजिनल होने के साथ-साथ धर्म, देशों और जेंडर की सरहदों के विनाशकारी असर पर टिप्पणी है.” जिसे बुकर के निर्णायक मंडल ने ‘आनंदमय कोलाहल’ और एक ‘बेहतरीन उपन्यास’ करार दिया है।  

बुकर प्राइज़ के ज्यूरी सदस्य इस बात से सबसे अधिक प्रभावित हुए कि एक त्रासदी को गंभीरता से बयान करने के बजाय एक दूसरे स्वर में पेश किया गया है. जिसमें सबकुछ नया है और पूरी तरह से मूल है।ज्यूरी पैनल ने कहा कि आख़िरकार, हम रॉकवेल के अनुवाद में गीतांजलि श्री की इस अपनेपन से भरे उपन्यास ‘टूंब ऑफ़ सैंड’ की बांधने की ताक़त, मार्मिकता और चुलबुलेपन से बेहद प्रभावित हो गए. उन्होंने कहा कि विभाजन पर लिखा गया यह एक बेहद अनूठा उपन्यास है.

इस उपन्यास में सबकुछ है. स्त्री है, स्त्रियों का मन है, पुरुष है, थर्ड जेंडर है, प्रेम है, नाते हैं, समय है, समय को बांधने वाली छड़ी है, अविभाजित भारत है, विभाजन के बाद की तस्वीर है, जीवन का अंतिम चरण है, उस चरण में अनिच्छा से लेकर इच्छा का संचार है, मनोविज्ञान है, सरहद है, कौवे हैं, हास्य है, बहुत लंबे वाक्य हैं, बहुत छोटे वाक्य हैं, जीवन है, मृत्यु है और विमर्श है जो बहुत गहरा है, जो ‘बातों का सच’ हैज्यूरी पैनल ने कहा कि आख़िरकार, हम रॉकवेल के अनुवाद में गीतांजलि श्री की इस अपनेपन से भरे उपन्यास ‘टूंब ऑफ़ सैंड’ की बांधने की ताक़त, मार्मिकता और चुलबुलेपन से बेहद प्रभावित हो गए. उन्होंने कहा कि विभाजन पर लिखा गया यह एक बेहद अनूठा उपन्यास है.

इस उपन्यास में सबकुछ है. स्त्री है, स्त्रियों का मन है, पुरुष है, थर्ड जेंडर है, प्रेम है, नाते हैं, समय है, समय को बांधने वाली छड़ी है, अविभाजित भारत है, विभाजन के बाद की तस्वीर है, जीवन का अंतिम चरण है, उस चरण में अनिच्छा से लेकर इच्छा का संचार है, मनोविज्ञान है, सरहद है, कौवे हैं, हास्य है, बहुत लंबे वाक्य हैं, बहुत छोटे वाक्य हैं, जीवन है, मृत्यु है और विमर्श है जो बहुत गहरा है, जो ‘बातों का सच’ है.

रेत समाधि’ की रचना के सफर के बारे में पूछने पर गीतांजलि श्री ने बताया, ‘इसे पूरा करने में बरसों लगे। रिश्तों का उपन्यास है, तरह-तरह के रिश्ते। मजा भी, दर्द भी उनमें। इसमें एक बड़ी कथा है, जिसके अंदर ढेरों लघु कथाएं हैं। इसमें मां-बेटी भी हैं। दोनों औरत हैं तो एक आपसी संवेदना बनती है जो ख़ास उनकी है। कभी मां बेटी हो जाती है, बेटी मां।एक तरह से कह सकते हैं कि जीवन के गड्डमड्ड का स्वरूप है यहां।’

बुकर पुरस्कार मिलने पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इस सम्मान के साथ अपने प्रति, साहित्य के प्रति जिम्मेदारी बढ़ी है. गीतांजलि श्री ने कहा कि ये एक तरह से हिंदी भाषा और साहित्य की मान्यता है। उन्होंने साथ ही ये भी जोड़ा कि हिंदी के पास समृद्ध साहित्य है जिसे खोजने की जरूरत है।बुकर मिलने के बाद गीतांजलि ने कहा कि इस पुरस्कार में एक उदासी भरा संतोष है. रेत समाधि, टोंब आप सेंड उस दुनिया के लिए शोकगीत है जिसमें हम रहते हैं,एक ऐसा शोकगीत जो आने वाली कयामत के सामने भी उम्मीद बरकरार रखती है।

आइए थोड़ा सा बुकर पुरस्कार के बारे में भी जान लें इस की स्थापना सन् 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई थी। इसमें 60 हज़ार पाउण्ड की राशि विजेता लेखक को दी जाती है। इस पुरस्कार के लिए पहले उपन्यासों की एक लंबी सूची तैयार की जाती है और फिर पुरस्कार वाले दिन की शाम के भोज में पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाती है। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था।मैन बुकर पुरस्कार को साहित्य के क्षेत्र में ऑस्कर पुरस्कार के समान माना जाता है।अब तक 7 भारतीय लेखकों को बुकर पुरस्कार मिला है।वर्ष 2015 में दो भारतीय लेखकों अनुराधा रॉय और संजीव सहोता को मैन बुकर पुरस्कार दिया गया था।प्रख्यात भारतीय अनीता देसाई को न सिर्फ एक बार बल्कि तीन बार बुकर्स पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।  पहली बार 1980 में विभाजन के बाद उनके उपन्यास “क्लीयर लाइट ऑफ डे” के लिए चुना गया। 1984 में “इन कस्टडी” के लिए जिस पर 1993 में एक फिल्म भी बनी थी। किरण देसाई , अरुंधती राय भी इस सम्मान को प्राप्त कर चुकी है पहली बार 1980 में विभाजन के बाद उनके उपन्यास “क्लीयर लाइट ऑफ डे” के लिए चुना गया। 1984 में “इन कस्टडी” के लिए जिस पर 1993 में एक फिल्म भी बनी थी।

गीतांजलि श्री मूलतः इसीलिए चर्चा में हैं क्योंकि वे हिंदी लेखिका हैं और उनके उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद टोंड आप सैंड को बुकर के लिए चुना गया है इसे पाकर लेखिका स्वत:हतप्रभ और अभिभूत हैं और वे यह मानती भी है कि हिंदी में बहुत से उपन्यास इस काबिल हैं लेकिन उन्हें ठीक ठीक अनुवादक चाहिए जिसका अभाव है ।बुकर अंग्रेजी में लिखी पुस्तकों में से इसे चुनता है। इसीलिए गीतांजलि के साथ राकवेल को भी बराबरी से सम्मानित किया गया।देश को खुश होना चाहिए हिंदी उपन्यास पहली बार बुकर में सम्मानित हुआ।कम से कम हम हिंदी भाषियों का दायित्व बनता है कि बुकर का शुक्राना ज़रुर करें ।

वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी बीबीसी से कहा, “यह हिंदी के लिए बहुत बड़ी घटना है. हिंदी भाषा की जो रचनाधर्मिता है, यह उसका उदाहरण हैं. पूरे देश को इस पर गर्व होना चाहिए और हो रहा है. इस पुरस्कार के बाद जितने रचनाकार हैं उन्हें एक बल मिलेगा, एक ऊर्जा मिलेगी और अपनी वास्तविक शक्ति के प्रति वे आश्वस्त होंगे. सम्मान किसी रचना को कालजयी और महान तो बनाता ही है लेकिन उससे ज़्यादा उसे महान पाठक बनाते हैं. यह हिंदी की पठनीय रचना तो थी ही, अब सम्मानित भी है.”

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