अग्नि आलोक
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बोला हिंदुस्तान रे……!

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 मुनेश त्यागी

जननी रोये, पत्नी रोये, रोये सारा गांव रे, 

अमीर देश को लूट के खायें,मौन रहे सरकार रे 

सिर कटे, गोली लगे है, कोई ना रोकथाम रे, 

एक के बदले दस ना आये, रोये हिंदुस्तान रे, 

ममता रोये,समता रोये, रोये मजूर किसान रे, 

खेती खा रही अन्नदाता को, रोये हिंदुस्तान रे, 

हिंदू लडते-मुसलमां लडते,लडता सारा गांव रे, 

गंगा-जमनी है तहजीब रोये, रोये हिंदुस्तान रे ,

नोटबंदी से रिश्ते टूटे, चला गया सम्मान रे, 

नोट की खातिर जान गई रे, रोये हिंदुस्तान रे, 

किसान-मजूर के बेटे मरते, दीखे ना उपचार रे, 

शीश कटे सरहद पर मिलते, रोये हिंदुस्तान रे, 

कहां गए वो कस्में-वादे, बोल रे जुमलेबाज रे, 

बता रे छप्पन इंची सीने, पूछे हिंदुस्तान रे, 

नारे खोजे-वादे खोजे, ढूंढे सरे बजार रे, 

कहीं मिला ना इनका ठिकाना, पूछे हिंदुस्तान रे, 

मारे भी है रोने ना दे, आफत में है जान रे, 

नफरत फैली गांव शहर में ,रोये हिंदुस्तान रे, 

बेटी रोये  ,बेटा रोये,,,,, मिला नही रूजगार रे, 

काम ढूंढते थक गए यारों, थक गया हिंदुस्तान रे, 

माता पत्नी बहना कहरी, कहे मजूर किसान रे, 

रहजनों का राज बदल दो, बोला हिंदुस्तान रे.

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