गिरीश मालवीय
आपने समाचारपत्रों में पढ़ा होगा कि मोदी सरकार हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) में सरकार की बची हुई कुल 29.58 प्रतिशत हिस्सेदारी को भी बेचने जा रही है लेकिन आपके समाचारपत्र आज उस बारे में खामोश है, जब पिछली बार 2002 में HZL में अटल की सरकार ने अपना होल्डिंग स्टेक बेचा था और इस सौदे में एक लाख़ करोड़ का घोटाला किया था. जी हां ! पूरे एक लाख़ करोड़ का घोटाला !!
क्या है हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL)
पहले यह जान लीजिए कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) क्या है ? हिंदुस्तान जिंक दुनिया की टॉप-3 जिंक खनन कंपनियों में से एक है. हिंदुस्तान जिंक की शुरुआत 1966 में हुई थी. यह दुनिया की 10 प्रमुख चांदी उत्पादक कंपनियों में भी शामिल है. वर्तमान में, यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ओपन-पिट खदान और राजस्थान के रामपुरा अगुचा में दुनिया की सबसे बड़ी जिंक खदान का संचालन करती है, जिसमें कुल जस्ता और सीसा उत्पादन क्षमता 10 लाख टन है.
2002 में अटल सरकार ने रणनीतिक विनिवेश की योजना के तहत इसकी 26% हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया. वेदांता वाले अनिल अग्रवाल की SOVL जो बाद में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज कहलाई, उसने 26% शेयर सरकार से और 20% आम शेयरधारकों से खरीदे थे. 2003 में सरकार ने उसे 18.92% और शेयर बेच दिए. इस तरह से 64 फीसदी शेयर खरीदने में एसओवीएल को महज 1500 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा जबकि उस समय इसका बाजार मूल्य करीब एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर था.
एक लाख़ करोड से ऊपर का घोटाला कैसे हैं ?
आप पूछेंगे कि कैसे आप कह सकते है कि यह एक लाख़ करोड से ऊपर का घोटाला हैं ? दरअसल HZL के अधिपत्य में जो खदानें थी उसमे हजारों करोड़ का खनिज था. डील के वक्त कंपनी के पास 117 मिलियन टन खनिज रिजर्व में था. इसका खुलासा सौदे में हुआ ही नहीं था. बाद में, लंदन मैटल एक्सचेंज ने 117 टन खनिज की कीमत 60 हजार करोड़ रुपये आंकी थी.
HZL की खदानें ज्यादातर राजस्थान में थी. 40 हजार करोड़ रुपए की सिंदेसर माइंस का जिक्र टेंडर डॉक्यूमेंट में ही नहीं किया गया. इसी तरह उदयपुर के पास बामनिया कला माइंस और अजमेर के पास कायड़ प्रोजेक्ट भी टेंडर डॉक्युमेंट में नहीं थे. डील से पहले की बैलेंस शीट बताती हैं कि ये दोनों असेट्स भी कंपनी की थी, जिनकी कीमत नहीं लगाई गई. इनमें से कायड़ प्रोजेक्टर में तो 2002 में ड्रिलिंग भी चल रही थी और बामनिया कला माइंस में स्टरलाइट ने बाद में काम शुरू किया. यह मुफ्त में ही एसओवीएल को मिल गया.
इनके अलावा आंध्रप्रदेश और तत्कालीन बिहार बाद में झारखंड, तीन राज्यों में काम करने वाली हिंदुस्तान जिंक के देश भर में ऑफिस, पावर प्लांट और जमीनें भी थी. करोड़ों रुपए का स्क्रैप (कबाड़) भी था. इसका भी वैल्यूएशन कम करने के आरोप लगे हैं. इन सभी की कीमत करीब 20 हजार करोड़ तक आंकी गई है. 2006 में सीएजी के रिपोर्ट में संकेत दिए गए थे कि HZL में एसेट वैल्यूअर और ग्लोबल एडवाइजर ने एसेट्स का सही मूल्यांकन नहीं किया.
इस घोटाले की सीबीआई जांच की मांग उठने लगी और 2013 में सीबीआई ने इस मामले में संदिग्ध वित्तीय अनियमितताओं के आधार पर प्रांरभिक जांच शुरू की सीबीआइ ने जब अपने स्तर पर मूल्यांकन कराया तो हिंदुस्तान जिंक की कुल संपत्ति का मूल्य एक लाख करोड़ से अधिक निकला.
जांच में पता चला कि स्टरलाइट कंपनी को ओवरटेक करने के लिए संबंधित विभागों और अधिकारियों ने मिलकर एक निजी कंपनी से संपत्ति और शेयर का मूल्यांकन कराया. इस कंपनी ने स्टरलाइट को फायदा पहुंचाने के लिए काफी कम कीमत आंकी.
सीबीआई की जोधपुर ब्रांच ने तीन महीने तक छानबीन कर डायरेक्टर को रिपोर्ट दिसंबर 2013 में ही सौंप दी थी. इस रिपोर्ट में विनिवेश में अनियमितताएं होना माना गया. रिपोर्ट में शेयर बेचने को केंद्रीय मैटल कॉर्पोरेशन एक्ट का उल्लंघन माना था. पता लगा कि शेयर होल्डिंग बेचने के दौरान हिंदुस्तान जिंक की वैल्यूएशन कम कराई गई.
सुप्रीम कोर्ट के आपत्ति पर मोदी सरकार ने सीबीआई को ही झूठा बताया
2014 की मई में मोदी प्रधानमंत्री बने और अटल सरकार में HZL के विनिवेश में कथित अनियमितताओं के बावजूद सीबीआई ने प्रारंभिक जांच बंद करा दी गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सजग नजर आईं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 18 नवंबर 2021 के अपने फैसले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने सवाल किया था कि ‘हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) की बिक्री में कई गड़बड़ियां दिख रही हैं, फिर भी सीबीआई किस आधार पर प्राथमिक जांच (PE) को बंद करने का आवेदन दे रहा है ?’
आपको हैरानी होगी कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में क्या जवाब दिया ? मोदी सरकार ने अपनी ही संस्था सीबीआई को झूठा बता दिया ! फरवरी 2022 में सरकार ने कोर्ट में एक बेहद अप्रत्याशित रुख दिखाते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को ही कठघरे में खड़ा कर दिया.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अटल बिहार वाजपेयी सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) की बिक्री को लेकर सीबीआई ने शीर्ष अदालत को गलत जानकारी दी है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देश की शीर्ष अदालत में कहा, ‘सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में जो मौलिक तथ्य पेश किए थे वो झूठे थे या संभवतः गलत… विनिवेश की निर्णय प्रक्रिया को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई की कही गई एक-एक पंक्ति झूठी थी या गलत.’
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सीबीआई ने न केवल हलफनामा दाखिल किया बल्कि पूरी फाइलें नोटिंग के साथ जमा की थी. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को यह भी बताया कि 18 नवंबर, 2021 का उसका फैसला मुख्य रूप से सीबीआई के दलीलों पर आधारित था, न कि याचिकाकर्ताओं (नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ऑफिसर्स एसोसिएशन) के आरोपों पर. कोर्ट ने कहा कि इस डील के विभिन्न बिंदुओं की पड़ताल करने के बाद मामले की गहन जांच करवाने की जरूरत समझ में आई है.
कोर्ट ने कहा कि डील की एक दो नहीं बल्कि 18 बिदुओं को लेकर संदेह है, जिनकी जांच होनी ही चाहिए. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन कोर्ट कर ही क्या सकती है जब सरकार अपनी जांच एजेंसी को ही झूठा बता रही हैं.
अडानी ने ड्रोन स्टार्टअप का 50% हिस्सेदारी खरीदा
प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के प्रगति मैदान में ड्रोन महोत्सव 2022 का उद्घाटन किया और शाम को खबर आ गई कि अडानी की कंपनी, अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने कृषि ड्रोन स्टार्टअप जनरल एरोनॉटिक्स में 50% हिस्सेदारी खरीद ली है. आपको लग रहा होगा कि यह सब संयोग मात्र है लेकिन ऐसा कुछ नही हैं. दरअसल अडानी के लिए मोदी लॉबिंग करते हैं.
आपको याद दिला देता हूं कि मोदी जब पिछली बार अमेरिका के दौरे पर गए थे तो वहां पर वे कुल पांच बड़ी कम्पनियों के सीईओ से मिले थे, जिसमें शामिल थे – क्वालकॉम के क्रिस्टियानो ई. आमोन, फर्स्ट सोलर के मार्क विडमार और ब्लैकस्टोन के स्टीफन ए श्वार्जमैन, एडोब से शांतनु नारायण इसके अलावा वह मिले थे जनरल एटॉमिक्स के विवेक लाल से.
उस वक्त खबर आई थी कि पीएम मोदी और विवेक लाल ने ड्रोन प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति और पीएलआई योजना पर भी चर्चा की. बाद में खबर आई कि भारत 30 सशस्त्र स्काई गार्डियन विमानों के लिए अमेरिका स्थित जनरल एटॉमिक्स के साथ एक समझौता करने के लिए तैयार हो रहा है.
विदित हो कि जनरल एटॉमिक्स सैन्य ड्रोन में डील करती है. 2020 में इसके सीईओ बने भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक विवेक लाल पहले भी भारत और अमेरिका के बीच हुए कई प्रमुख रक्षा सौदों में अहम भूमिका निभाते आए हैं. जनरल एटॉमिक्स से पहले लाल लॉकहीड मार्टिन में विमानिकी रणनीति एवं कारोबार के उपाध्यक्ष पद पर थे और उससे पहले विवेक लाल रिलायंस में भी नौकरी कर चुके हैं.
अडानी के लिए लॉबिंग करते मोदी
अभी जिस जनरल एरोनॉटिक्स कंपनी से अडानी ने समझौता किया है, वह डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके तकनीक आधारित फसल सुरक्षा सेवाओं, फसल स्वास्थ्य निगरानी और उपज निगरानी सेवाओं के लिए रोबोटिक ड्रोन विकसित करती है.
जनरल एरोनॉटिक्स और जनरल एटोमिक्स का जुड़ाव साफ़ नजर आता है. ऐसे ही आप देखेंगे कि अडानी जल्द ही सोलर एनर्जी के क्षेत्र में किसी कम्पनी से समझौता करते नजर आएंगे क्योंकि मोदी अपने पिछ्ले दौरे में फर्स्ट सोलर के मार्क विडमार से भी मिले हैं.
मोदी किस तरह से अडानी के एजेंट की तरह काम करते हैं यह साफ़ दिखता है. जरूरत है थोड़ी खुदाई करने की. पर अफसोस हमारा मीडिया कहीं और खुदाई करने-करवाने में व्यस्त रहता है.