शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी ने कहा आप को नमस्तेजी। मैने कहा आज आपने नमस्ते के साथ आप विशेषण क्यों लगाया?
सीतारामजी ने कहा आप व्यंग्यकार हो।
मैने कहा हाँ हूँ।
आप हर एक विषय,हर किसी व्यक्ति भी पर व्यंग्य करते हो।
मैने कहा हाँ करता हूँ। व्यंग्य ही तो मेरी विधा है।
सीतारामजी ने कहा आप तो बस आप हैं।
आप शब्द बार बार सुनकर मेरा मन सीधे देश के उत्तर में स्थित दो प्रान्तों में कूच कर गया।
मन दर्पण होता है। प्रख्यात शायर साहिर लुधियानवी रचित गीत में मन के महत्व को समझाया है।
तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मो को देखें और दिखाए।
मन से कोई बात छूपे ना,
मन के नैन हजार,
मेरा मन जब देश के उत्तर में स्थित दो सूबों में विचरण कर रहा था,उसी समय मुझे दो दशक पूर्व का स्मरण हुआ। तब भी मै तन से तो प्रवास कर नहीं पाया लेकिन देश के पश्चिमी सूबे में मेरे मन ने भ्रमण किया था। तब सम्पूर्ण देश में इस मॉडल का स्तुतिगान चल रहा था। इस मॉडल का बहुत प्रचार हुआ। इसी मॉडल के प्रचार के तिलस्मी करिश्मे ने उन्हें पराजित किया जिन्होंने देश में सत्तर वर्ष तक कुछ नहीं किया?
सीतारामजी ने कहा यही मै, आपसे कहना चाहता हूँ। आप समझ ही नहीं रहें हैं।
यह कहावत चरितार्थ हो रही है। लोहा लोहे काटता है। (Iron cuts iron)
देश में एक और तिलस्मी करिश्मा और भी सफल हुआ है।
यह करिश्मा एकदम हट के है। इस करिश्मे ने कचरा सौरने वाली झाड़ू के महत्व को उजागर किया।
आश्चर्य तो इस बात है कि बगैर विचारों के व्यक्ति केंद्रित सियासित की सफलता को देश के भोले लोग विकल्प समझने लग गए।
सैद्धांतिक रूप से सियासत में विकल्प का मतलब लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व देतें हुए,व्यक्ति,पूंजी और सत्ता केंद्रित राजनीति का विरोध करना होता है। विकल्प मतलब कार्बन कॉपी बनना नहीं होता है।
सीतारामजी के इस वक्तव्य को सुनने के बाद मुझे समझ में आया कि सीतारामजी बार बार आप आप क्यों कहा रहें हैं। यह भी समझमें आया कि सीतारामजी ने यूँ क्यों कहा कि तीन उंगलिया आप पर भी उठती है। अभी तो सिर्फ एक उंगली उठी है। सिर्फ स्वास्थ्य मंत्री का ही स्वास्थ्य खराब हुआ है।
सीतारामजी ने कहा एक बात और समझलो झाड़ू से सतह के ऊपर का कचरा सौर कर साफ कर सकतें हैं। झाड़ू से खीचड़ साफ नहीं होता है। खीचड़ साफ करने के लिए मजबूत हाथों में लंबे डंडे वाले फावड़े की जरूरत होती है।
सीतारामजी ने कहा पुनः दोहराता हूँ। विकल्प मतलब कार्बन कॉपी नहीं होती है।
मैने सीतारामजी को प्रणाम करते हुए कहा हाँ मै आप का मतलब अच्छे समझ गया।
सीतारामजी ने कहा एक और बात ध्यान से सुनलो मन के महत्व को समझों। मन ही मन में बात नहीं करना चाहिए। ऐसा मनोचिकित्सकों का कहना है।
समझ ने वाले समाज गए जो ना समझे वो अनाडी है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर