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स्वयं से प्रेम : पुरुष की अस्विकृति है वास्तविक नारीमुक्ति

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~ पुष्पा गुप्ता

वैदिक गर्न्थो में तो लिखा गया है कि अहम ब्रह्मास्मि. अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ. मैं ही सर्वज्ञ हूँ ।दूसरा कोई है ही नही ।मैं ही सबमे हूँ। सब मुझमे ही है। और हाँ, यह सत्य अंतस के अनुभव का सब्जेक्ट है : सुनकर, पढ़कर यह स्तर नहीं मिलता

जहां इतने ऊंचे विचार हो। जहां की धार्मिकता का स्तर इतना महान हो ,वहां का धार्मिक समाज आज इतना नीचे गिरा हुआ कैसे हो गया?

      आध्यात्मिकता का सम्बंध स्वयम से होता है। खुद में ही खुदा होता है।

मीरा थी ,जिन्होंने सांसारिक पति को त्याग दिया और कृष्ण के प्रेम में दुनिया भर में घूमकर गीत गाए हैं।

    ऐसे ही बुध थे ,जिन्होंने सारा राज छोड़कर स्वयम की खोज की, और अपना दीपक स्वयम बनो का मंत्र दिया।

अनेकों महापुरुष और महान स्त्रियां यहां जन्मी है ,भारत की भूमि पर, जिन्होंने स्वयम के प्रति श्रद्गा और प्रेम रखा।

लेकिन पुरुष समाज को ये गंवारा नही हुआ कभी की मुझको छोड़कर स्त्री किसी ओर के प्रेम में पड़े !

तो मीरा को जहर दिया गया। पुरुष का अहंकार इतना है कि वो अपने अलावा किसी ओर को बर्दाश नही कर सकता। फिर स्त्री चाहे अपने ही प्रेम में क्यों न हो।

मीरा एक ऐसी स्त्री थी ,जो खुद के, खुद में बसे ख़ुदा के प्रेम में थी. लेकिन समाज उसको पागल कहता था,  कहेगा ही क्योंकि पुरुष समाज को उसने चुनौती दे दी। पुरुष समाज को उसने नकार दिया। उसने  घोषणा कर दी कि मुझे जीवन मे कोई पुरुष नही चाहिए ।मैं स्वयम के प्रेम में पूर्ण हूँ।

इसे आज की भाषा मे (सोलोगेमी) कहते है। भाषा अलग हो सकती है लेकिन भाव तो वही है।

आज ये लड़की जब स्वयम के प्रेम में है तो पुरुष समाज के सीने पर सांप क्यों लोट रहे है ?

आखिर क्या आपत्ति है समाज को ?क्यों इस लड़की का मजाक बनाया जा रहा है ?खुद से प्रेम करने में ऐसा क्या गुनाह है?क्यों नही कर सकते हम खुद ही से विवाह ? क्यों नही हम ये घोषणा कर सकते कि हमे किसी ओर की जरूरत नही है जीवन मे? हम क्यों नही कह सकते कि हम खुद के सन्तुष्ट है?

जो व्यक्ति इस लड़की का मजाक बना रहे है ,जो अश्लील फब्तियां कस रहे है ये वही लोग है ,जिनके अहंकार को ठेस लगी है। क्योंकि ये लड़की किसी का वंश नही चलाएगी. ये किसी पुरुष की भोग्या बनकर खुद को उसे नही देगी  ये किसी पुरुष को देवता मानकर उसके लिए व्रत नही रखेगी।

सीधी भाषा कहूँ तो ये पुरुस समाज को पोषित नही करेगी। इसलिए समाज इसका मजाक  उड़ा रहा है. पुरुष सत्ता को पोषण नही मिल रहा यहाँ।

(चेतना विकास मिशन)

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