राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के एकजुट होने पर अभी संदेह के बादल छाए हुए हैं। खासकर टीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की हाल की राजनीतिक गतिविधियों से तो ऐसा लगता है कि वह इन चुनावों में कांग्रेस के साथ खड़े नहीं दिखाई देंगे। यह भी कहा जा रहा है कि वह करीब आधा दर्जन दलों को कांग्रेस से अलग ले जाकर एक समूह में लाने में कामयाब हो चुके हैं।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, विपक्ष यदि एकजुट होकर चुनाव लड़ता है तो वह सत्तारुढ़ एनडीए को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में नजर आ रहा है। इसके बावजूद एनडीए को बीजद और वाईएसआर कांग्रेस की मदद से चुनाव में बढ़त मिल सकती है। ये दोनों दल भाजपा के करीब माने जाते हैं तथा पूर्व में भी उसके संकट मोचक बने हैं, लेकिन केसीआर की मुहिम विपक्ष के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
केसीआर ने हाल में विपक्षी दलों के कई नेताओं से मुलाकात की है तथा वह एनडीए सरकार की नीतियों के खिलाफ दूसरे दलों को साथ लेने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, झामुमो, राजद, शिवसेना, द्रमुक, एनसीपी आदि दलों के नेताओं से वे मुलाकात कर चुके हैं। इस बीच वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल नेता ममता बनर्जी से भी मुलाकात की तैयारी में हैं। इन दलों के पास तकरीबन 125 सांसद हैं तथा खासी संख्या में विधायक भी हैं।
कांग्रेस से दूरी
यह महत्वपूर्ण है कि विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में केसीआर कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि केसीआर गैर कांग्रेसी तीसरा मोर्चा बनाने की मुहिम में हैं। ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि राष्ट्रपति चुनाव में केसीआर और समूचा विपक्ष एक रहेगा या फिर केसीआर और उनके साथ मिलकर कुछ दल अपना अलग राष्ट्रपति उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे ? इस मुद्दे पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही है। यह संभावना है कि अगले कुछ दिनों में विपक्षी दल अपनी रणनीति तय कर सकते हैं।