अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

दादा दयालु मित्र मंडल की उम्मीदों का एक्सीडेंट 

Share

अब मेंदोला की सहमति रहेगी कौन होगा महापौर प्रत्याशी! कांग्रेस के संजय शुक्ला की जीत इतनी भी आसान नहीं *

🔺कीर्ति राणा

लो…..! भाजपा ने तो गजब कर दिया..! 

दावेदारी में दमदार माने जा रहे मेंदोला को इंदौर संभाग की प्रत्याशी चयन करने वाली समिति में सदस्य बना डाला।इसे कहते हैं भाजपा ।

दादा दयालु मित्र मंडल से लेकर भाजपा की नीति-रीति में विश्वास रखने वाला सर्व ब्राह्मण समाज का एक धड़ा और ज्यादातर लोग मान रहे थे कि कांग्रेस से संजय शुक्ला तो भाजपा से विधायक रमेश मेंदोला मतलब टक्कर कांटे  की रहेगी। 

पार्टी पर भारी शिवराज हैं या शिवराज पर भारी दादा दयालु…! मंत्री नहीं बनाया, निगम अध्यक्ष तक नहीं बनाया और चयन समिति में शामिल करवा कर महापौर वाली उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया। 

सत्ता-संगठन द्वारा दी जाने वाली जिम्मेदारी और हर चुनौती को जीत में बदलने की अपार क्षमता से भरपूर मेंदोला का हर मामले में उपयोग करने वाले सत्ता-संगठन के मुखिया ने क्या दो रु का लीड पेन समझ लिया कि स्याही खत्म होते ही फेंक दो। या फिर यह आशंका थी कि संजय शुक्ला भारी पड़ेंगे? 

बहुत नाइंसाफी है। सच में बहुत नाइंसाफी है।

दादा दयालु के साथ हुई इस अनहोनी के बाद भी मित्र मंडल को भरोसा रखना ही होगा कि बागेश्वरी धाम वाले पं धीरज का चमत्कारी नारियल-भभूति,  सीहोर वाले पं प्रदीप मिश्रा का अभिमंत्रित रुद्राक्ष मेंदोला की राह में बिछे कांटे फूल में बदल देंगे।

पंडितों-बाबाओं-भोजन-भंडारे से मिली अपरंपार दुआएं भोपाल में बैठे मुखिया जी का मन बदल देंगी। 

मेंदोला में लाख बुराई गिनाने वाले भी यह मानने से इंकार नहीं करते कि हर मोर्चे पर वह अपराजेय साबित हुए हैं। 

फिर ऐसा क्यों हुआ…? कौन है वो कौन है…. जो रमेश की राह में बार बार स्पीड ब्रेकर बन के आड़े आ जाता है।पुत्र मोह की खातिर कैलाश विजयवर्गीय तो शिवराज से किसी हालत में हाथ मिला नहीं सकते? 

खैर…. मेंदोला के सामने से महापौर की उम्मीदवारी वाली थाली झपटने में भले ही पार्टी की ‘ विधायक को महापौर चुनाव नहीं लड़ाने’ की गाइड लाइन आड़े आ गई हो लेकिन संजय शुक्ला को भी यह ख्वाब नहीं देखना चाहिए कि तश्तीर में जीत का ताज मिलने का मुहूर्त निकल आया है। 

भाजपा तो जिसे भी टिकट देगी उसकी जीत के पोस्टर लगाना आरके स्टूडियो की मजबूरी रहेगी।कांग्रेस में तो ऐसा माहौल इसलिए नजर नहीं आता कि भाजपा प्रत्याशी की घोषणा नहीं होने से पहले यह हाल है कि कांग्रेस के नेता एक-दूसरे से पूछने लगे हैं क्यों संजय कितने से हारेगा। 

वैसे भी एक विधानसभा से जीत जाने का मतलब यह नहीं होता कि बाकी विधानसभा क्षेत्रों से ऐसी जीत के लिए कांग्रेस नेता पसीना बहाएंगे।इस चुनाव के बाद अगले साल विधानसभा चुनाव हैं यह भाजपा को भी पता है। सिंधिया-तुलसी मंडली को तो सिर पर बैठाना अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ताओं की मजबूरी है। संजय को तो कंधे पर तोक तोक कर कांग्रेस नेताओं के कंधे अभी से दुखने लगे है…! 

अब जब मेंदोला प्रत्याशी चयन समिति में आ गए हैं तो इंदौर से जिसका नाम भी फायनल होगा, यही माना जाएगा कि उनकी भी सहमति है। जब सहमति है तो फिर काम भी उसी ताकत से करना होगा। 

ये सांसद वाला वो चुनाव तो है नहीं कि भाजपा प्रत्याशी को उम्मीद से कम मतों के जरिए बता दिया था कि दो नंबरी, दो नंबर के खेल में भी पीछे नहीं रहते। 

अब महापौर का चुनाव बेहद रोचक होना और संजय शुक्ला की उतनी ही परेशानी बढ़ना भी तय है।

कैलाश जी वैसे भी परिवारवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में मोदी-शाह तक अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।वो भी नहीं चाहेंगे कि महापौर चुनाव के परिणाम फिर किसी नए बखेड़े का कारण ना बन जाए। 

जीते-हारे कोई भी अपनी हमदर्दी तो रमेश मेंदोला के साथ इसलिए भी रहेगी कि अपन खुद बायपास सर्जरी के बाद से दिल पर लगे घाव देखते रहते हैं। जब एक बार दिल पर हुए घाव के बाद अपना ये हाल है तो उस दयालु दिल के तो न जाने कब से टुकड़े हो रहे हैं

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें