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पीड़ा !

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चंद्रशेखर शर्मा

इंदौर नगर निगम चुनाव और खासकर महापौर प्रत्याशी से जुड़े दो ताजा अलग-अलग बयान गौरतलब हैं। पहला बयान प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का है। उन्होंने कहा है कि भाजपा का महापौर प्रत्याशी इंदौर के भविष्य की संकल्पना को साकार करने वाला होगा ! यह अपने आप में बहुत मानीखेज बात है। पार्टी कोई हो, लेकिन इस बयान में जो अर्थ और संदेश निहित है, क्या महापौर चुनते वक्त उसे हर सूरत ध्यान में रखा जाना जरूरी नहीं है ?

दूसरा बयान भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर के पूर्व महापौर कैलाश विजयवर्गीय का है। उनका कहना है कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला इंदौर के महापौर पद के मान से अभी बच्चे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इंदौर का महापौर ऐसा होना चाहिए कि वो विभिन्न योजनाओं के लिए राज्य और केंद्र सरकार से फंड ला सके। इस पर तिरेपन बरस के संजय शुक्ला ने उनके बयान का ‘आत्मीयतापूर्ण’ जवाब भी दिया है। वो एक अलग मसला है अलबत्ता देखा जाए तो मिश्रा और विजयवर्गीय के इन दो अलग–अलग बयानों के पीछे भाव एक ही है ! 

फिर भी विजयवर्गीय के बयान की चीरफाड़ करें तो पहली बात यह माना जाना चाहिए कि फिर भाजपा भी कोई ‘बच्चा’ महापौर प्रत्याशी नहीं उतारेगी ! नमूने के लिए कहें तो ऐसे में क्या आकाश विजयवर्गीय, एकलव्यसिंह गौड़, गोलू शुक्ला, दीपक जैन और गौरव रणदिवे आदि महापौर टिकट के लिए अपना पत्ता कट माने ? मालूम हो कि तिरेपन बरस के ‘बच्चे’ संजय शुक्ला अभी विधायक हैं और बहुत पहले पार्षद भी रह चुके हैं। हां, उनकी इस बात में कि महापौर ऐसा हो जो राज्य और केंद्र सरकार से फंड ला सके, एक चुनौती और चेतावनी छुपी है कि यदि महापौर अलग दल का हुआ और राज्य व केंद्र सरकार अलग दल की तो मामला और पेचीदा हो सकता है !

अलावा इसके विजयवर्गीय के बयान के और भी मायने हैं। यहां यह न भूलें कि कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर और महू को मिलाकर कई चुनाव खुद लड़े हैं और उनमें एक न हारा। गोया वो पार्टी के बड़े नेता होने के साथ चुनाव अभियान, चुनाव प्रबंधन, चुनावी रणनीति और चुनावी दांव-पेंच के भी घुटे हुए खिलाड़ी हैं। सो उनके इस बयान से यह भी संकेत मिलता है कि संजय शुक्ला की उम्मीदवारी पर पहला सवाल यही उठाया जाएगा कि महानगर होते इंदौर की वैसी ही बड़ी नगर निगम के लिए वो बच्चे यानी अपरिपक्व या बहुत हलके हैं। अर्थात वो सीरियस कैंडिडेट नहीं हैं। दूसरा सवाल यह होगा कि यदि संजय महापौर हुए तो प्रदेश और केंद्र की भाजपा सरकार के चलते उन्हें फंड लाने में दिक्कत नहीं होगी ? जाहिर है संजय शुक्ला को इन दोनों सवालों के माकूल जवाब खोजने होंगे, क्योंकि विजयवर्गीय के बयान से यह भी पता चलता है कि भाजपा उनकी उम्मीदवारी को कैसे ले रही है ! साथ ही यह भी कि संजय के खिलाफ उनका शुरुआती लाइन ऑफ अटैक क्या रहने वाला है। 

इस सूरतेहाल में देखें तो अब मिश्रा का बयान भी निगाह में लाना होगा। उन्होंने कहा है कि भाजपा ऐसा प्रत्याशी देगी जो इंदौर के भविष्य की संकल्पना को साकार करने वाला हो। जाहिर है वो कोई ‘बच्चा’ तो होगा नहीं। सो मिश्रा के बयान को कसौटी माने तो भाजपा में ऐसा दावेदार या उम्मीदवार कौन ? यहां एक अहम बात यह है कि हमें मिश्रा के बयान को कसौटी मानकर और इंदौर नगर निगम के दायरे व क्षमता को ध्यान में रखकर ही महापौर चुनना है, फिर वो चाहे किसी भी दल का हो अथवा निर्दलीय ! जानता हूँ कि कांग्रेस और भाजपा ने ऐसा उम्मीदवार नहीं दिया तो ऐसा होना बहुत मुश्किल है। हां, नामुमकिन नहीं है। 

बहरहाल भाजपा ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। सो स्थिति आगे साफ होगी। अलबत्ता भाजपा में कई लोग ऐसे हैं जो अभी चल रहे दावेदारों के नाम से कतई खुश न हैं। जी हां, उनका कहना है कि इंदौर नगर निगम को अधिकार से और कुशलतापूर्वक चलाने के लिए पार्टी के पास दीगर कई दमदार नेता हैं। वो इस सिलसिले में भंवरसिंह शेखावत, सत्तनारायण सत्तन, बाबूसिंह रघुवंशी और गोपी नेमा आदि नाम आगे करते हैं। यदि उम्र पर न जाएं तो वाकई यह सब प्रभावशाली नाम हैं। यद्यपि भाजपा के वही लोग पीड़ा भी जाहिर करते हैं कि पार्टी ऐसे लोगों को इसलिए टिकट नहीं देगी कि इन्हें कोई नेता या अधिकारी ‘कठपुतली’ नहीं बना सकता है ! तो क्या यह बात इन्हें टिकट से खारिज करने के लिए सबसे बड़ी बाधा या अयोग्यता है ? ठीक है कि पार्टी नया नेतृत्व तैयार करे, लेकिन विधायक या सांसद की बात अलग होती है और इंदौर नगर पालिका निगम जैसी संस्था को चलाने की बात बहुत अलग। देखते हैं भाजपा क्या फैसला लेती है !

चंद्रशेखर शर्मा

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