जूली सचदेवा
_अभिनेता अक्षय कुमार और निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी अपनी फिल्म सम्राट पृथ्वीराज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और हिंदू ह्रदय सम्राट योगी आदित्यनाथ को दिखाकर क्या सावित किये? साक्षात् प्रधानमंत्री मोदी , गृहमंत्री अमित शाह, तमाम केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के तमाम नेता इसका उसी तरह प्रचार करने से चूक गए जैसे कश्मीर फाइल्स का किया था._
मैं जब फिल्म देख रही थी तो सिनेमाहॉल में बमुश्किल 30-35 लोग बैठे थे। कुल एक बार सिर्फ एक व्यक्ति ने इंटरवल के बाद एक संवाद पर ताली बजाई जब अक्षय कुमार नारी मुक्ति पर डायरेक्टर साहब की समझ से बहुत ज़ोरदार लिखी गई तक़रीर कर रहे थे।
_संवाद भी तो चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने ही लिखे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने फिल्म को टैक्स फ़्री कर दिया है लेकिन टिकट खिड़की पर बैठी लड़की ने टिकट के दाम के बारे में पूछने पर सपाट लहजे में कहा – सर अभी हमारे पास ऐसा कोई सर्कुलर नहीं आया है।_
फिल्म शुरुआत में और आख़िर में असर छोड़ती है। हालांकि दोनों बार ऑस्कर विजेता फिल्म ग्लैडियेटर की झलक आती रही। अब न तो चंद्रप्रकाश द्विवेदी रिडले स्कॉट हैं और अक्षय कुमार भी रसेल क्रो नहीं हैं। फिर भी इन दोनों मौक़ों पर अक्षय का अभिनय अच्छा है क्योंकि ये प्रमुखत: एक्शन सीन हैं।
पूरी फिल्म फ़्लैशबैक में है। डिस्क्लेमर में यह साफ कर दिया गया है कि यह फिल्म मुख्यत: चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो पर आधारित है। फिल्म के शुरुआती हिस्से में पृथ्वीराज का बखान करते हुए एक गाना चलता है जिसमें उनकी तुलना गोकुल के मोहन और कुरुक्षेत्र के अर्जुन से की गई है।
_फिल्म देखते हुए ऐसा लगा कि निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी यह तय नहीं कर पाये हैं कि पृथ्वीराज -संयोगिता की प्रेम कहानी पर ज्यादा फोकस करें, पृथ्वीराज-जयचंद के आख्यान पर या पृथ्वीराज- मोहम्मद गौरी के संघर्ष पर।_
प्रेमी युगल पृथ्वीराज और संयोगिता की भूमिका में अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर नहीं जमते। दोनों के बीच परदे पर कोई केमिस्ट्री नहीं दिखती। अक्षय कुमार जीतेंद्र स्कूल ऑफ़ एक्टिंग के अभिनेता हैं। पृथ्वीराज जैसे ऐतिहासिक चरित्र के निर्वाह में वह असर नहीं छोड़ पाए।
_चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने उनके लिए ग़ालिब के दौर की उर्दू फ़ारसी वाले संवाद क्यों लिखे यह समझ नहीं आया। उनके मुकाबले मानव विज ने मोहम्मद गौरी के किरदार में अच्छा काम किया है। अब तक उड़ता पंजाब, गुंजन सक्सेना और अंधाधुन जैसी फिल्मों में छोटी छोटी भूमिकाओं में दिखते रहे मानव विज को पहली बार एक बड़ा ऐतिहासिक किरदार निभाने का मौका मिला है।हालांकि उनको भी फुटेज ज्यादा नहीं मिला है।_
मानुषी छिल्लर ने पहली ही फिल्म में आत्मविश्वास ज़रूर दिखाया है, संवाद अदायगी ठीक है , जौहर से पहले उन पर फ़िल्माया गया योद्धा वाला गीत अच्छा है लेकिन संयेगिता की भूमिका के लिए जिस कमसिनी और सुंदरता की कल्पना की जा सकती है, उसका उनमें अभाव दिखता है।
{चेतना विकास मिशन)