डॉ. गीता शुक्ला
_भौतिकवाद का विचार कोई स्थिर विचार नहीं रहा है अपितु समय के साथ बदलता गया है ।प्राचीन काल में जब यंत्रों का विकास नहीं हुआ था और मनुष्य को प्रकृति विज्ञान की अत्यल्प जानकारी थी ,भौतिक वादी विचारक यह मानते थे कि जो कुछ प्रत्यक्ष है ,वही सत्य है ।भारत में चार्वाक इस विचार के सबसे ज़्यादा मशहूर सिद्धान्तकार रहे हैं ।वे कल्पना प्रसूत अनुमान ,उपमान तथा शब्द से प्राप्त ज्ञान को उसी अंश तक प्रामाणिक मानते थे जिस अंश तक वह प्रत्यक्ष प्रमाण से सत्यापित होता हो._
चार्वाक प्रत्यक्ष को ही सर्वोच्च श्रेणी का प्रमाण मानते थे ।प्राचीन भौतिक वादी मानते थे कि जिस तरह फर्मेंटेशन के कारण अंगूर से नशीली शराब बन जाती है उसी तरह भौतिक पदार्थों के ख़ास अनुपात में मिल जाने से चेतना की उत्पत्ति होती है।
जब चाबी देकर वर्षों तक चलने वाली घड़ियाँ बनने लगीं तो सृष्टि के संबंध में दो तरह के दार्शनिक विचार पैदा हुए।एक तो दे कार्त (Des Cartes )जैसे यांत्रिक ईश्वर वादी थे जो विश्व को विशाल घड़ी और ईश्वर को उसमें चाबी भरने वाला मानते थे।इस यांत्रिक ईश्वर वाद में ऐसे विचार भी शामिल थे जिनके मुताबिक़ ईश्वर चाबी लगाकर क़यामत तक आराम करता था और इस दरम्यान विश्व का संचालन प्राकृतिक नियमों से होता था।
_दूसरा विचार यांत्रिक भौतिक वादियों का था जो यह मानते कि सृष्टि के निर्माण ,चाबी भरने तथा कयामत लाने के लिए भी ईश्वर की कोई ज़रूरत नहीं और सब कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार ही घटित होता है।_
यांत्रिक भौतिक वादी भूत से चेतना के पैदा होने की जगह दोनों को पृथक नहीं अपितु एक समान मानते थे।सत्रहवीं , अठारहवीं सदी में भौतिकवादी गुणात्मक परिवर्तन से विच्छेद युक्त प्रवाह द्वारा किस तरह बिलकुल नई वस्तु निर्मित होती है या नई घटना घटित होती है ,इसे कोई महत्व नहीं देते थे।
उनके लिए जिस तरह घड़ी उसके कल पुर्ज़ों का संयोजन है ,उसी तरह चेतना भी उसे निर्मितकरने वाले भौतिक तत्वों का संयोजन था।अठारहवीं सदी तक हुए वैज्ञानिक आविष्कारों के अनुसार वे यह तो मानते थे कि प्रकृति निरन्तर गतिमान है किन्तु वे यह भी मानते थे कि यह गति सदा से एक समान रही है और गतिशील वस्तु का परिपथ भी समान रहा है तथा समान परिणामों की ही आवृत्ति भी होती रहती है।
भौतिकवाद का अगला स्तर द्वंद्वात्मक या वैज्ञानिक भौतिकवाद था ।यह वह भौतिकवाद है जो अति भौतिक या परा भौतिक या आध्यात्म या चेतना वादी धारणाओं से सर्वथा मुक्त है ,जो जड़ -चेतन प्रकृति का विकास स्वरूप परिवर्तन के निरंतर घटना प्रवाह के रूप में स्वीकार करता है तथा वह सभी वस्तुओं को उनकी बहुपार्श्वता के संदर्भ में एक दूसरे से भिन्न स्वरूपों में ,उनकी अनेकता में एकता और उनके विकास संबंधी बाहरी व आन्तरिक परिणामांशों की दृष्टि से देखना चाहता है।
_द्वन्द्वातमक भौतिकवाद ,भौतिकवाद का उच्चतम विकास है और वह विश्व के सभी क्षेत्रों पर समान रूप से लागू होता है।वैज्ञानिक भौतिकवाद किसी वाद ,विचार ,परिकल्पना को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक कि वह भौतिक प्रयोग ,विश्लेषषण व परीक्षण द्वारा सत्यापित न हो जाय।_
सतत परिवर्तन शील जगत में परिवर्तन की भौतिकवादी व्याख्या करना वैज्ञानिक भौतिकवाद का मुख्य उद्देश्य है।
वैज्ञानिक भौतिक वाद के अनुसार परिवर्तन निम्न तीन सीढ़ियों से होकर गुजरता है :
1विरोधि संघर्ष व समागम ( conflict of opposites and their unity )
2. गुणात्मक परिवर्तन (the passage of quantitative change into qualitative change )
3. प्रतिषेध का प्रतिषेध (negation of negation)
_एक दूसरे से गुण -स्वभाव में विरोधी वस्तुओं का समागम दुनिया में सर्वत्र पाया जाता है।अरस्तू ,उदयन और गजाली जैसे दार्शनिक विचारकों ने यह माना था कि विश्व में दिखने वाली सर्वव्यापी गति का श्रोत ईश्वर है ।द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद यह मानता है कि दो परस्पर विरोधी शक्तियों (वस्तुओं ,घटना प्रवाहों ) का आपस में मिलना ही गति पैदा करने के लिए पर्याप्त है तथा गति ही परिवर्तन या विकास है।
_दूसरे शब्दों में विरोधों का संघर्ष ही विकास है ।विरोधी शक्तियों के मिलने पर उनमें संघर्ष अवश्यंभावी है और यह संघर्ष नए स्वरूप ,नई गति ,नई परिस्थिति अर्थात विकास को अवश्य पैदा करता है। इस प्रकृया से ही प्रकृति खुद को नित नूतन करती हुई , चिरंतन गतिशील रहते हुए विकसित होती है। यह सिद्धान्त प्रकृति के जड -चेतन दोनों ही स्वरूपों के लिए लागू होता है।_
वस्तुओं का मात्रात्मक परिवर्तन एक तय सीमा के बाद गुणात्मक परिवर्तन उत्पन्न कर देता है। बीज का पहले अंकुरण और फिर पौधे का रूप ग्रहण कर लेना ,पानी की बर्फ़ में बदलना ,पानी का वाष्प में बदलना मात्रात्मक परिवर्तन से गुणात्मक परिवर्तन के कुछ साफ़ दिखने वाले उदाहरण हैं।
अगर गहराई से परखा जाय तो पाएँगे की प्रकृति में होने वाले समस्त बदलावों के मामले में यह सिद्धान्त लागू होता है।वस्तु का क्रमिक रूप से हो रहा मात्रात्मक परिवर्तन एक सीमा के बाद अचानक वस्तु के गुण रूप /स्वभाव को बदल डालता है।पानी पहले 0डिग्री सेल्सियस तक धीरे -धीरे ठंडा होता है और थोड़ा सा और ठंडा करने पर 0 डिग्री तापमान पर ही पानी गुणात्मक रूप से बदल कर अचानक बर्फ़ बन जाता है। अचानक घटित होने वाला यह परिवर्तन मेंढक कुदान (leap frog ) की तरह होता है।
विनष्ट हुई वस्तु /परिघटना की जगह नई वस्तु का पैदा होना और पुन:इस नई वस्तु की जगह नई वस्तु द्वारा ग्रहण कर लेना प्रतिषेध का प्रतिषेध (negation ) है। विरोधि संघर्ष के बाद उनके समागम से गुणात्मक बदलाव के बाद पैदा होने वाली नई वस्तु /परिघटना भी स्थिर नहीं रहती अपितु आगे भी बदलाव की इसी प्रकृया से गुजरते हुए इस नई वस्तु /परिघटना का भी प्रतिषेध करती हुई पुन:नई वस्तु /परिघटना प्रस्तुत कर देती है।
_विरोधी समागम ,गुणात्मक परिवर्तन और प्रतिषेध का प्रतिषेध की उक्त तीन सीढ़ियों से गुजरते हुए परिवर्तन शील जगत में सभी वस्तुओं ,जीवन और समाज का विकास होता है। भौतिकवाद का उच्चतम स्तर यही द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है।_
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का दार्शनिक विचार मार्क्स व एंजेल्स द्वारा प्रतिपादित विशुद्ध रूप से मौलिक विचार नहीं था।जैसा कि मैंने अपनी विगत दो पोस्टों में स्पष्ट किया है ,भौतिकवाद और द्वन्द्ववाद दोनों ही पुराने विचार थे। आधुनिक समय में जर्मनी के विख्यात दार्शनिक फ्रेडरिक हेगल (Fredrik Hegel ) ने द्वन्द्वात्मकता का सिद्धान्त पहली बार मानव मस्तिष्क की विचारात्मक अवधारणाओं व तत्संबंधी अनुभूतियों (idealist observations related to mind’s perception )के मामले में लागू किया था।
_मार्क्स और एंजेल्स ने द्वन्द्वात्मक भाववाद (dialectical idealism )की जगह द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।हेगल से द्वन्द्वात्मकता का सिद्धान्त प्राप्त करने के कारण वे खुद को हेगल का शिष्य कहते थे। उनका कहना था कि हेगल ने द्वन्द्वात्मकता को उल्टा लटका दिया था जिसे उन्होंने सीधा कर दिया है।_
कुछ हीगलवादी यह मानते थे कि धर्म से विमुखता सामाजिक बुराइयों के लिए ज़िम्मेदार है ।इसके उलट मार्क्स और एंजेल्स शोषण और दरिद्रता के लिए सामाजिक -आर्थिक विषमता को ज़िम्मेदार समझते थे।
द्वन्द्वात्मक भौतिक वाद का दार्शनिक विचार अब तक का सर्वाधिक वैज्ञानिक व यथार्थ परक विचार रहा है ।यह सभी तरह के प्राकृतिक ,सामाजिक व आर्थिक बदलावों की व्याख्या के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रविधि (methodology ) है।
_यह प्रविधि तब तक वैध रहेगी जब तक कि ब्रह्मांड को संचालित करने वाले प्लेटो द्वारा परिकल्पित किसी डेमीअर्ज या दे कार्त के घडीसाज ईश्वर की तलाश न कर ली जाय।_
[चेतना विकास मिशन]