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किसी भी अहम धर्मग्रन्थ में नहीं है ‘हिंदू या हिंदुत्व’ शब्द

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डॉ. प्रिया मानवी 

       _चारो वेद, 13 उपनिषदों, 18 पुराण, पांचवां वेद महाभारत, श्रीमद्भागवत, देवी भागवत, वाल्मीकि रामायण और यहाँ तक की  तुलसीदास रचित रामचरित मानस तक में हिंदू केंद्रित धर्म का उल्लेख नहीं है।_

      हिन्दू धर्म को मानने वाले या हिंदुत्ववादी इसे सनातन धर्म कहने लगते हैं उसमें सनातन धर्म का कोई उल्लेख नहीं है। पहली बार आदि शंकराचार्य ने धर्म को ‘सनातन धर्म’ की संज्ञा दी।

      _शंकराचार्य का आशय यह था कि जो धर्म मानव की उत्पत्ति के साथ है उसे सनातन माना गया। वास्तव में हिन्दू धर्म  अस्तित्व में नहीं है। हिन्दू धर्म है ही नहीं। शंकराचार्य ने भी हिन्दू धर्म की बात नहीं कही थी। पांच देवों के प्रतीक उपासना आदि शंकराचार्य ने शुरू की थी।_

         राम कृष्ण परमहंस, विवेकानंद तथा दक्षिण के संतों ने अपने ग्रंथों में लिखा है कि किसी भी ग्रंथ में हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है। हिन्दू धर्म है ही नहीं। इसी के साथ हिन्दू , हिंदुत्व की उत्पत्ति होती है।

हालांकि हिन्दू व हिंदुत्व का कोई अस्तित्व नहीं है। कृष्ण दौपायन व्यास ‘ वेदव्यास’ की माता सत्यवती निषाद कन्या थीं। आज भी उत्तर प्रदेश के कालपी में यमुना नदी के किनारे व्यास गद्दी बनी हुई है। वहां  उनका जन्मस्थान माना जाता है।

      _उत्तर प्रदेश सरकार से प्रमाणित वहां की गद्दी पर निषाद ही पुजारी होता है। व्यास पांच शिवाय हुए । सुमन्तु मुनि, जैमिन, पैल, वैश्यम्पायन, रोमहर्षण  सूत। सूत अश्पृश्य शुद्र थे। नैमिषारण्य में 88 हज़ार शौनकादि  अभ्यर्थियों को पुराणों का उपदेश दिया है।_

        ब्रम्हर्षि ‘ ऋषियों में सर्वोच्च  स्थान में माने जाते हैं। वेदों, उपनिषदों, पुराणों , रामायण में किसी की सहायता करना, बीमारों, वृद्धों,असहायों की सेवा करना,  सत्य वचन  बोलना यही धर्म की व्याख्या है। 

रामचरित मानस में ‘ परहित सरिस धर्म नहि’ भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ।” चौपाई  में धर्म की व्याख्या की गई है।  यही धर्म है।

     _आदि शंकराचार्य  काशी की दश्मेश्व घाट पर गंगा स्नान कर विश्वनाथ मंदिर की ओर जा रहे थे, तभी उन्हें  एक चांडाल  बीच मार्ग पर मिला। आदि गुरु ने कहा तुम हटो । चांडाल ने  हाथ जोड़ कहा ‘ क्या हटाऊँ, शरीर या आत्मा, आकार या निराकार। ‘_

         इस गहन तथ्य को शंकराचार्य सुनते ही  चकित हो गये और चांडाल में उन्हें साक्षात बाबा विश्वनाथ नजर आए।  उन्होंने कहा कि काशी में गुरु चांडाल से मुझे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। यतो धर्मस्य ततो जयः। पुराणों में यही व्याख्या धर्म की है। 

विष्णु के उपासक  रामचंद्र ने कबीर को शिष्य बनाया।  रामचंद्र ब्राह्मण और कबीर जुलाहा थे। रामचंद्र ने धर्म का भेद नहीं देखा।  रामचंद्र हिन्दू तथा कबीर मुस्लिम थे। कबीर ‘राम राम ‘ जपते थे । कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर, पीछे पीछे हरि फिरे कहत कबीर।”

     _मानस में चौपाई है कि ‘ निर्मल मन  जन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र न भावा।’ रामकृष्ण परमहंस शिष्यों के साथ सत्संग चल रहे थे, जहां जीवों पर दया करो  पर चर्चा की जा रही थी । परमहंस ने प्रतिवाद किया कि ‘तुम ही  खुद जीव हो , किसी पर दया की भावना मन में न लाओ। “_

         जीव प्राणियों की शिव भाव से सेवा करो। विवेकानंद ने इसी मूलमंत्र को माना तथा इसी पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण परमहंस मंच ने ऊंच -नीच, धर्म , जातिवाद को नहीं देखा। विवेकानंद इसी अवधारणा पर चले। स्वामी विवेकानंद ने  अमेरिका से लौटकर खेतड़ी ( राजस्थान) के राजा अजित सिंह के महल में ठहरे थे।

       _मैना बाई नर्तकी का कार्यक्रम हुआ। स्वामी आग्रह के बाद भी नहीं गए। नर्तकी ने भक्त मीरा वाद्य का भजन ‘ प्रभुजी मेरे अवगुण चित्त न धरो ” गाया। इस भजन को सुनकर स्वामी अपने आप को नहीं रोक सके। समारोह स्थल पर आकर नर्तकी को प्रणाम किया और कहा  कि ‘ संन्यासी धर्म का सच्चा अर्थ अब आपने सिखाया है।_

        अब आज से कोई भेद नहीं करूंगा। महाराष्ट्र में भगवान विठ्ठल -देवी रुक्मिणी के अधिकांश भक्त हिन्दू जिनको अछूत मानते हैं। कुछ तो मुसलमान भी थे। गोरा कुम्हार, सदन कसाई , कर्मा बाई मुख्य थे।  दक्षिण के संत ने जाति और धर्म मे भेद नहीं किया।

आज हिन्दू समाज में राजनीति जात , धर्म आधारित है। राजवंश, मुगलों, अंग्रेजों ने जाति-धर्म में बंटवारा किया। ‘ बांटो और राज करो ” यही सिद्धान्त था।महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों की संख्या में अनुयायी बनाए, जहां जाति और धर्म में भेद नहीं था। 

      _आज़ादी के 25 वर्ष बाद वोट बटोरने की राजनीति में धीरे- धीरे जाति धर्म की यह गंदगी शुरू हुई। अब यह प्रबल होने लगी है। हिंदुत्व वादी संगठनों ने इसे और आगे बढ़ाया। अपने को प्रासंगिक बनाने के लिए कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन इसी में लिप्त हैं।_

       इसी आधार पर राजनीति में कट्टरपंथी संगठनों का अस्तित्व बना रहता है। यह आधार नहीं रहा, तो संगठन खत्म हो जाएंगे। गांधीजी ने कहा था कि ‘ रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम… ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान। ” इसी सिद्धान्त पर  मानव चलेगा, तभी मानव का भला होगा। 

       रामकृष्ण परमहंस ने ईसा मसीह, अल्लाह की साधना की थी। उन्होंने कहा था कि सभी के मार्ग अलग अलग हैं, जो एक ही स्थान पर लोगों को पहुंचाते हैं।

    _हिन्दू और हिंदुत्व वाद कट्टरपंथ का आधार है। संगठनों के कृत्यों ने यही दिखाया है।_

    {चेतना विकास मिशन}

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