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क्या शिंदे की बगावत से महाराष्ट्र की सरकार गिर जाएगी? कानूनी दांव पेंच शुरु

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महाराष्ट्र में सियासत में द ग्रेट पॉलिटिकल ड्रामा जारी है। ड्रामे की शुरुआत मुंबई से हुई, फिर ये सूरत होते हुए गुवाहाटी पहुंचा। लेकिन अब मामला देश की सबसे सुप्रीम अदालत में पहुंच चुका है। SC में याचिका लगाकर दलबदल करने वाले विधायकों को 5 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई है। दूसरी तरफ शिंदे भी तैयारी से बैठे हैं। उन्होंने कहा है कि उनके पास 40 वकीलों की टीम भी है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक शिंदे के साथ शिवसेना के 55 में से 33 विधायक मौजूद हैं, वहीं 7 निर्दलीय विधायक भी शिंदे के समर्थन में हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या शिंदे की बगावत से महाराष्ट्र की सरकार गिर जाएगी? शिवसेना टूट जाएगी? लीगल मामलों के एक्सपर्ट का कहना है कि अगर शिंदे दो तिहाई शिवसेना विधायकों को अपने खेमे में नहीं जुटा पाते हैं तो फिर से कानूनी दांव पेंच शुरु हो जाएंगे। ऐसे में क्या शिवसेना सदन भंग करने का प्रस्ताव राज्यपाल को भेजेगी। क्या राज्यपाल सदन भंग कर सकते हैं? अगर बहुमत साबित करने तक बात जाती है तो बहुमत साबित कैसे होगा?…

महाराष्ट्र के सियासी संकट के बीच इसी तरह के कई सवाल हैं, जिनके जवाब कानूनी पेचीदगियों में छिपे हैं। महाराष्ट्र की मौजूदा परिस्थितियों पर हमने सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता और राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई के जरिए पूरे सियासी गुणा-गणित को समझा।

ये हैं परिस्थितियां और उनके कानूनी दांव पेंच-

अगर शिंदे गुट खुद को मुख्य शिवसेना होने का दावा करता है तो…

क्या शिवसेना के बागी विधायक अपने गुट को मुख्य शिवसेना मानकर चल रहे हैं? शिंदे के बयानों से तो ऐसा ही लगता है। यदि ऐसा है तो उनके पास दो तिहाई बहुमत यानी 37 शिवसेना विधायकों का होना जरूरी है। इससे ये विधायक दल-बदल निरोधक कानून के तहत अयोग्य होने से बच जाएंगे। अगर शिंदे अपने पाले में 37 विधायक कर लिए तो बागी गुट के पास दो विकल्प होंगे- पहला, या तो वो एक राय बनाकर किसी दूसरी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाएं, या फिर शिवसेना में ही सेंधमारी कर दें। शिंदे के तेवर से लगता है कि वो शिवसेना को तोड़कर चुनाव आयोग जाकर शिवसेना का चुनाव चिन्ह, झंडा और पार्टी के नाम पर भी दावा ठोक सकते हैं। इसके बाद उद्धव ठाकरे गुट को भी चुनाव आयोग कूच करना होगा। इसके बाद असली शिवसेना कौन है ये फैसला सुनाने का हक निर्वाचन आयोग को ही होगा।

लेकिन अगर शिंदे बागियों की संख्या दो तिहाई से ज्यादा रख पाएंगे तब तक ही उनका दावा मजबूत रहेगा। इसमें सबसे बड़ा पेंच यही है कि क्या शिंदे के पास जरूरी 37 शिवसेना विधायकों का समर्थन है या नहीं। इस परिस्थिति में दल बदल कानून और डिप्टी स्पीकर के फैसले की भूमिका सबसे अहम रहेगी। यदि संख्या 37 से कम हुई तो फिर कानूनी लड़ाई तय है, जो कि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगी। ऐसी परिस्थिति में बागियों की सदस्यता तक जा सकती है।

अगर MVA सरकार गवर्नर से विधानसभा भंग करने की मांग करती है तो..

अगर महाविकास अघाड़ी सरकार गवर्नर के सामने मांग रखती है कि मौजूदा सदन को भंग कर दिया जाए, तो इस परिस्थिति में गवर्नर इसे मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। मान लीजिए अगर उद्धव सरकार मांग करती है कि विधानसभा भंग कर दी जाए, तो उस कैबिनेट की मांग को स्वीकार करना राज्यपाल के लिए जरूरी नहीं है। राज्यपाल सरकार को भी बर्खास्त नहीं कर सकते। राज्यपाल को अपने विवेक से देखना है कि सरकार ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कहीं अपना बहुमत खोने के डर से तो नहीं की है? क्या मौजूदा सरकार पास बहुमत बचा है?

ऐसी स्थिति में राज्यपाल विधानसभा को भंग करने की बजाय दूसरे संभावित विकल्पों पर भी विचार कर सकते हैं। यानी बीजेपी भी बागी विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के सामने पेश कर सकती है।

क्या मौजूदा स्थिति में गवर्नर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं?

महाराष्ट्र में जो सियासी संकट तैयार हुआ है उसमें राष्ट्रपति शासन लगने की भी ठोस संभावना बनती दिख रही है। अगर उद्धव सरकार की तरफ से सदन को भंग की मांग की गई और राज्यपाल को ऐसा लगा कि सरकार बहुमत खो चुकी है। अगर कोई दूसरा गुट बहुमत के आसपास नहीं दिखता है तो ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भी कर सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अगर राज्यपाल सदन भंग करते हैं तो इसका असर राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पर होगा, वहीं अगर राष्ट्रपति शासन लगेगा तो विधायक राष्ट्रपति चुनाव में वोट कर सकेंगे।

बहुमत का फैसला कैसे होगा?
MVA सरकार को गिराना हो या फिर नई सरकार बनाना ये दोनों ही काम करने के लिए बीजेपी को सदन में बागी विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक बहुमत का फैसला राजभवन की बजाय सदन में होगा। बहुमत की जरूरत दो तरीके से पड़ती है, अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो अल्पमत की सरकार को अपनी सरकार बचाने के लिए बहुमत साबित करना होगा है। दूसरा, अगर कोई सरकार बनाने का दावा कर रहा है तो उसे भी बहुमत साबित करना होता है।

अगर एकनाथ शिंदे बीजेपी के साथ सरकार बनाना चाहते हैं तो…
शिवसेना के बागी विधायकों को एक नए दल के तौर पर मान्यता नहीं मिलती है और अगर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाए। सत्ता का सपना देख रही बीजेपी के लिए ये सबसे बड़ा रोड़ा होगा। अगर विधायकों के बयानों के आधार पर बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिलता है, तो फिर नई सरकार को सदन में बहुमत साबित करना होगा।

नई सरकार बनने के बाद अगर स्पीकर उनके पक्ष में नहीं है तो स्पीकर को बदला जाएगा। इस पर भी विवाद होने की संभावना है। इस परिस्थिति में भी मामला कोर्ट में जाएगा।

बागी विधायकों की योग्यता पर फैसला डिप्टी स्पीकर को करना है…

महाराष्ट्र में दो साल से स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका है। फिलहाल कार्यवाहक स्पीकर ही विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। डिप्टी स्पीकर एनसीपी के विधायक हैं। अगर शिंदे गुट के बागी विधायक 37 का मैजिक फिगर क्रॉस नहीं कर पाते हैं। तो ये बागी विधायकों पर दल-बदल कानून लग जाएगा और बात विधायकों की सदस्यता जाने पर आ जाएगी। अब स्पीकर को ही इन बागी विधायकों की योग्यता और अयोग्यता पर फैसला लेना होगा। चूंकि डिप्टी विधायक एनसीपी के हैं, ऐसे में वो इन बागी विधायकों पर क्या फैसला करते हैं ये देखना भी दिलचस्प हो जाएगा।

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