संजय कनौजिया की कलम” ✍️
हिन्दू धर्म में बुनयादी दृष्टि-भेद के चार ठोस कारण डॉ० राममनोहर लोहिया जी अपने लिखित लेख, वर्ष 1950 जुलाई, “हिन्दू बनाम हिन्दू” में, वर्ण-स्त्री-सम्पति-सहिष्णुता को विस्तार से बतलाया है..मैंने अपने इस धारावाहिक लेख “अधर्म का नाश हो” (पार्ट-4) में वर्ण-स्त्री-सम्पति का, डॉ० लोहिया के मुख्य अंशों का उल्लेख कर चुका हूँ..सहिष्णुता पर डॉ० लोहिया ने जो प्रकाश डाला है उसके मुख्य अंश प्रेषित कर रहा हूँ..!
सहिष्णुता:- आमतौर पर यह माना जाता है कि सहिष्णुता हिन्दुओं का विशेष गुण है, यह गलत है..सिवाए इसके कि खुला रक्तपात इसे पसंद नहीं रहा..हिन्दू धर्म में कट्टरपंथी हमेशा प्रभुताशाली मत के अलावा अन्य मतों और विश्वासों का दमन करके एकरूपता के द्वारा एकता कायम करने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली..उन्हें अब तक आमतौर पर, बचपना ही माना जाता था क्योकिं कुछ समय पहले तक विविधता में एकता का सिद्धांत हिन्दू धर्म के अपने मतों पर ही लागू किया जाता था, इसलिए हिन्दू धर्म में लगभग हमेशा ही सहिष्णुता का अंश बल प्रयोग से ज्यादा रहता था लेकिन यूरोप की राष्ट्रीयता ने इनसे मिलते जुलते जिस सिद्धांत को जन्म दिया है, उससे इसका अर्थ समझ लेना चाहिए..वाल्टेयर जानता था कि उसका विरोधी गलती पर ही है, फिर भी सहिष्णुता के लिए, विरोध के खुलकर बोलने के अधिकार के लिए लड़ने को तैयार था..इसके विपरीत हिन्दू धर्म में सहिष्णुता की बुनियाद यह है कि अलग-अलग बातें अपनी जगह पर सही हों सकती है..वह मानना कि अलग-अलग क्षेत्रों और वर्गों में अलग-अलग सिद्धांत और चलन हो सकते हैं और उनके बीच वह कोई फैसला करने को तैयार नहीं..वह आदमी की जिंदगी में एकरूपता नहीं चाहता, स्वेच्छा से भी नहीं, और ऐसी विविधता में एकता चाहता है जिसकी परिभाषा नहीं की जा सकती, लेकिन जो अब तक उसके अलग-अलग मतों को एक लड़ी में पिरोती रही है..अतः उसमे सहिष्णुता का गुण इस विश्वाश के कारण है कि जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, इस विश्वाश के कारण कि अलग-अलग बातें गलत ही हों यह जरुरी नहीं हैं, बल्कि वह सच्चाई को अलग-अलग ढंग से व्यक्त कर सकती है..!
केवल उदारता ही देश में एकता ला सकती है..हिन्दुस्तान बहुत बड़ा और पुराना देश है..मनुष्य की इच्छा के अलावा कोई शक्ति इसमें एकता नहीं ला सकती..कट्टरपंथी हिंदुत्व अपने स्वभाव के कारण ही ऐसी इच्छा नहीं पैदा कर सकता, लेकिन उदार हिंदुत्व कर सकता है, जैसा पहले कई बार कर चुका है..हिन्दू धर्म, संकुचित दृष्टि से, राजनैतिक धर्म, सिद्धांतों और संगठन का धर्म नहीं है..लेकिन राजनैतिक देश के इतिहास में एकता लाने की बड़ी कोशिशों को इससे प्रेरणा मिली है और उनका यह प्रमुख माध्यम रहा है..हिन्दू धर्म में उदारता और कट्टरता के महान युद्ध को देश की एकता और बिखराव की शक्तियां का संघर्ष भी कहा जा सकता है..लेकिन उदार हिन्दू पूरी तरह समस्या का हल नहीं कर सका..विविधता में एकता के सिद्धांत के पीछे सड़न और बिखराब के बीज छिपे हैं..कट्टरपंथी तत्वों के अलावा, जो हमेशा ऊपर से उदार हिन्दू विचारों में घुस जाते हैं और हमेशा दिमागी सफाई हासिल करने में रूकावट डालते हैं, विविधता में एकता के सिद्धांत ऐसे दिमाग को जन्म देता है जो समृद्ध और निष्क्रिय दोनों ही हैं..!
उदार और कट्टरपंथी हिंदुत्व के महायुद्ध का बाहरी रूप आजकल यह हो गया है कि मुसलामानों के प्रति क्या रुख हो..लेकिन हम एक क्षण के लिए यह ना भूलें कि यह बाहरी रूप है और बुनयादी झगडे जो अभी तक हल नहीं हुए हैं, कहीं अधिक निर्णायक हैं..महात्मा गांधी की हत्या, हिन्दू-मुस्लिम झगडे की घटना उतनी नहीं थी, जितनी हिन्दू धर्म के उदार और कट्टरपंथी धाराओं के युद्ध की..इसके पहले कभी किसी हिन्दू ने वर्ण-स्त्री-सम्पति-सहिष्णुता के बारे में कट्टरता पर इतनी गहरी चोटें नहीं की थी..इसके खिलाफ़ सारा ज़हर इक्कट्ठा हो रहा था..एक बार पहले भी गांधी जी की हत्या करने की कोशिश की गई थी..उस समय उसका खुला और साफ़ उद्देश्य यही था की वर्ण व्यवस्था को बचाकर हिन्दू धर्म की रक्षा की जाए..आखिरी और कामयाब कोशिश का उद्देश्य ऊपर से दिखाई पड़ता था कि इस्लाम के हमले से हिन्दू धर्म को बचाया जाए, लेकिन इतिहास के किसी भी विद्यार्थी को कोई संदेह नहीं होगा कि यह सबसे बड़ा और सबसे जघन्य जुआ था, जो हारती हुई कट्टरता ने उदारता से अपने युद्ध में खेला..गांधी जी का हत्यारा वह कट्टरपंथी तत्व था जो हमेशा हिन्दू दिमाग के अंदर बैठा रहता है, कभी दबा हुआ और कभी प्रकट, कुछ हिन्दुओं में निष्क्रिय कुछ में तेज….
धारावाहिक लेख जारी रहेगा
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)