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अधर्म का नाश हो* (पार्ट-10)

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संजय कनौजिया की कलम”✍️

डॉ० राममनोहर लोहिया ने लिखा कि राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं..सबका रास्ता अलग-अलग है..राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है, कृष्ण की उन्मुक्त या सम्पूर्ण व्यक्तित्व में और शिव की असीमित व्यक्तित्व में, लेकिन हरेक पूर्ण है..किसी एक का या एक दूसरे से अधिक या कम पूर्ण होने का सवाल ही नहीं उठता..पूर्णता में विभेद कैसे हो सकता है, पूर्णता में केवल गुण और किस्म का विभेद हो सकता है..हर आदमी अपनी पसंद कर सकता है या अपने जीवन के किसी विशेष क्षण से सम्बंधित गुण या पूर्णता चुन सकता है..इन मर्यादित और उन्मुक्त पुरूषों के बारे में दो बहुमूल्य कहानी कही जा सकतीं हैं..राम ने अपनी दृष्टि केवल एक महिला तक सीमित रखी, उस निगाह से किसी अन्य महिला की ओर कभी नहीं देखा, वह महिला सीता थी..सीता का अपहरण अपने में मनुष्य-जाति की कहानियों की महानतम घटनाओं में से एक है..इसके बारे में छोटी से छोटी बात लिखी गई हैं..वह मर्यादित, नियंत्रण और वैधानिक अस्तित्व की कहानी है..राम के मर्यादित व्यक्तित्व के बारे में एक और बहुमूल्य कहानी है, उनके अधिकार के बारे में जो नियम और कानून से बंधें हैं, जिनका उल्लंघन उन्होंने कभी नहीं किया और जिनके पूर्ण पालन के कारण उनके जीवन में तीन या चार धब्बे भी आए..राम और सीता अयोध्या आकर राजा और रानी की तरह रह रहे थे..एक धोबी ने कैद में, सीता के बारे में शिकायत की..शिकायती केवल एक व्यक्ति था और शिकायत गन्दी होने के साथ-साथ बेदम भी थी..लेकिन नियम था कि हर शिकायत के पीछे कोई न कोई दुःख होता है और उसकी उचित दवा या सजा होनी चाहिए..इस मामले में सीता का निर्वासन ही एक मात्र इलाज है..नियम अविवेक पूर्ण था, सजा क्रूर थी और पूरी घटना एक कलंक थी जिसने राम को जीवन के शेष दिनों में दुखी बनाया, लेकिन उन्होंने नियम नहीं बदला..वे पूर्ण मर्यादा पुरुष थे, नियम और कानून से बंधे हुए थे और अपने बेदाग जीवन में धब्बा लगने पर भी उसका पालन किया..!
कृष्ण सम्पूर्ण पुरुष थे, उनके चेहरे पर मुस्कान और आनंद की छाप बराबर बनी रही और ख़राब से ख़राब हालत में भी उनकी आँखें मुस्कुराती रही..चाहे दुःख कितना ही बड़ा क्यों न हो, कोई भी वयस्क होने के बाद अपने पूरे जीवन में एक या दो बार से अधिक नहीं रोता..राम अपने पूरे जीवन में दो या शायद केवल एक बार रोयें..राम, कृष्ण के देश में ऐसे लोगों की भरमार है जिनकी आँखों में बराबर आंसू डबडबाये रहते हैं और अज्ञानी लोग उन्हें बहुत ही भावुक आदमी मान बैठते हैं..एक हद तक इसमें कृष्ण का दोष है, वे कभी नहीं रोए लेकिन लाखों लोगो को आज तक रुलाते रहे..कृष्ण एक महान प्रेमी थे जिन्हे अदूभुत आत्मसमर्पण मिलता रहा और आजतक लाखों स्त्री-पुरुष और स्त्री वेश में पुरुष, जो अपने प्रेमी को रिझाने के लिए स्त्रियों जैसा व्यवहार करते हैं, उनके नाम पर आंसू बहाते हैं और उसमे लीन होते हैं..यह अनुभव कभी-कभी राजनीति में आ जाता है और नपुंसकता के साथ-साथ जाल-फरेब शुरू हो जाता है..कृष्ण चोर, झूठे, मक्कार और खूनी थे और वे एक पाप के बाद दूसरा पाप बिना रत्ती-भर हिचक के करते थे..उन्होंने अपनी पोषक माँ का मक्खन चुराने से लेकर दूसरे की बीवी चुराने तक का काम किया..उन्होंने महाभारत के समय में एक ऐसे आदमी से आधा झूठ बुलवाया जो अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला था..उनके अपने झूठ अनेक हैं, उन्होंने सूर्य को छिपाकर नकली सूर्यास्त किया ताकि उस गोधूलि में एक बड़ा शत्रु मारा जा सके..वीर भीष्म पितामह के सामने उन्होंने नपुंसक शिखंडी को खड़ा कर दिया ताकि वाण न चला सके और खुद सुरक्षित आड़ में रहे..अपने मित्र की मदद स्वयं अपनी बहन को भगाने में की थी..लड़ाई के समय पाप और अनुचित काम के सिलसिले में कर्ण का रथ एक उदाहरण है..कृष्ण के भक्त उनके हर काम के दूसरे पहलू पेश करके सफाई करने की कोशिश करते हैं..उन्होंने मक्खन की चोरी अपने मित्रों में बांटने की के लिए की..उन्होंने चोरी अपनी मां को पहले तो खिझाने और फिर रिझाने के लिए की..उन्होंने मक्खन बाल-लीला के रूप को दिखाने के लिए चुराया, ताकि आने वाली पीढ़ियों के बच्चे उस आदर्श-स्वपन में पलें..उन्होंने अपने लिए कुछ भी नहीं किया, या माना भी जाए तो केवल इस हद तक कि जिनके लिए उन्होंने सब कुछ किया वे उनके अंश भी थे..उन्होंने राधा को चुराया, न तो अपने लिए और न ही राधा की ख़ुशी के लिए बल्कि इसलिए कि हर पीढ़ी की अनगिनित महिलायें अपनी सीमाएं और बंधन तोड़कर विश्व से रिश्ता जोड़ सकें..इस तरह की हर सफाई गैर जरुरी हैं..!
राम और कृष्ण ने मानवीय जीवन बिताया, लेकिन शिव बिना जन्म और बिना अंत के हैं..ईश्वर की तरह अनंत हैं लेकिन ईश्वर के विपरीत उसके जीवन की घटनाएं समय क्रम पर चलतीं हैं और विशेषताओं के साथ के साथ, इसलिए वह ईश्वर से भी ज्यादा असीमित हैं..शायद केवल उनकी ही एक मात्र किवदंती है जिसकी कोई सीमा नहीं है..धर्म और राजनीति, ईश्वर और राष्ट्र या कौम हर ज़माने में और हर जगह मिलकर चलते हैं..हिन्दुस्तान में यह अधिक होता है..शिव के सबसे बड़े कारनामे में एक उनका सती की मृत्यु पर शोक प्रकट करना है..जब तक शिव की लम्बाई-चौड़ाई अनंत में तय न कर उसकी परिभाषा न दी जाए..शिव का एक दूसरा काम है जिसका औचित्य साबित करना कठिन है..उन्होंने पार्वती के साथ नृत्य किया..एक एक ताल पर पार्वती ने शिव को मात किया..तब उत्कर्ष आया..शिव ने एक थिरकन की और अपना पैर ऊपर उठाया..पार्वती स्तब्ध और विस्मयचकित खड़ी रही और वह नारी की मर्यादा के खिलाफ भंगिमा नहीं दर्शा सकीं…

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक- राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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