शशिकांत गुप्ते
सन 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म मधुमती के इस गीत का स्मरण हुआ। यह गीत लिखा है गीतकार शैलेन्द्रजी ने और इसे गाया है स्व. लता मंगेशकरजी ने।
पीपल छैयां बैठी पल भर
हो भर के गगरिया हाय रे
हाय हाय दय्या रे, दय्या रे
चढ़ गया पापी बिछुआ
इस गीत में बिछू का प्रतीक के रूप में प्रयोग किया है।
फिल्मों के गीतों में जो भाव प्रकट किए जातें हैं, वे कल्पनातीत होतें हैं। मतलब कल्पना से परें होतें हैं।
जिस युवती को बिछू डंक मारे गा, क्या उसके लिए मैदान में जन समूह के समक्ष नाचना संभव है?
बिछू डंक मारता है तो उसका इलाज डॉक्टर ही कर सकता है।
मतंर से बिछू के डंक का ज़हर निकल सकता है यह अंध विश्वास है?
जनता के मनोरंजन के लिए यह सब लिखना, गाना और नाचना जरूरी हो जाता है।
इस तरह का मनोरंजन इनदिनों सियासत में चल रहा है। जैसा गीत की पंक्तियों में वर्णित है।
मतंर फेरूं कोमल काया
छोड़ के जारे छू
मतंर फूँकने के बाद अभिनेत्री जोर जोर से गाती है। गाती है मतलब सिर्फ होंठ हिलाती है गाती तो गायिका है।
और भी चढ़ गयो
न गयो पापी बिछुआ
कैसी आग लगा गयो पापी बिछुआ
सारे बदन पे छा गयो पापी बिछुआ
मंतर झूठा वैद्य भी झूठा
गीतकार ने दर्शकों के सिर्फ मनोरजंन के लिए गीत लिखा है।
आज सियासत में यही सब हो रहा है।
दावें के साथ किए जा रहे वादें कल्पनातीत होतें हैं।
जिस तरह बिछू की कईं प्रजातियां होतीं हैं। उसी तरह वादें भी विभिन्न प्रकार के होतें हैं।
जस जस वादें पूरे करने दावें किए जातें हैं, तस तस जनता की समस्याएं बढ़ती जा रही है।
बिछू की एक प्रजाति ऐसे होती है। इस प्रजाति की मादा-बिछू Female Scorpion एक साथ सात या आठ बच्चों को देती हैं। जबतक बच्चे बड़े नहीं होते,माँ बच्चों को अपने पेट के नीचें दबा कर ही रखती है।
बिछू की एक प्रजाति बहुत विचित्र होती है। इस विचित्र प्रजाति की मादा बिछू Female Scorpion एक साथ लगभग सौ बच्चों को जन्म देती है।
सौ बच्चें एक साथ माँ के पेट से बाहर आने के लिए इतने उतावले होतें हैं कि, माँ का पेट ही फट जाता है। मादा बिछू मर जाती है।
माँ के पेट से बाहर निकले हुए बच्चें माँ के मृत शरीर को खाकर ही बड़े होतें हैं।
सियासत में भी ऐसे ही हो रहा है। एक दल में पले बढ़े लोग दल के बाहर आकर दल को कमजोर करने की साज़िश रचतें हैं।
बिछू और मानव में इतना ही फर्क है कि, बिछू के बच्चें प्राकृतिक रूप से अपनी माँ के मृत शरीर को खाकर बड़े होतें हैं।
मानव, जानबूझकर अमानवीयता आचरण करता है। मानव को ऐसे कार्य करने के लिए सहयोगियों द्वारा धन मुहैया करवाया जाता है।
सहयोगी बहुत ही प्रसन्न होकर ऐसे लोगों को विलासितापूर्ण वातावरण में संरक्षण प्रदान कर गौरव का अनुभव करतें हैं।
बिछू के डंक का इलाज चिकित्सा विज्ञान में हो सकता है।
सियासी क्षेत्र का व्याप्त आर्थिक और मानसिक भ्रष्ट्र आचरण का इलाज जनता को स्वयं अपने विवेक को जागृत कर, करना पड़ेगा। जनता के पास एक बहुत ही अमूल्य मंत्र है। यह मंत्र मतलब अपना अमूल्य मत
Vote.
इस एक मत रूपी मंत्र से जनता सियासत में व्याप्त दूषित व्यवस्था का स्थाई इलाज कर सकती है। इस मंत्र को फूंकना नहीं पड़ता है बस इविम मशीन पर एक बटन दबाना पड़ता है।
वो सुबह कभी तो आएगी।
शशिकांत गुप्ते इंदौर