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राजनीति होगी धर्म की और आस्था की. बेरोज़गारी और महंगाई की राजनीति समाप्त हो गई है

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रविश कुमार

आस्था आहत होने लगी है, इसका मतलब है आफत आने लगी है. बेहतर है, लिखने-बोलने में सावधान रहें. प्राइम टाइम में हमें भी सही ग़लत छोड़ कर राजा और रानी की कहानी का वाचन करना चाहिए. ध्यान रहे कहानी में राजा और रानी भारत के न हों. भारत में आज भी कई लोग ख़ुद को किसी राजा का वंशज मानते हैं, राजा और महाराजा कहलाते हैं, उनकी आस्था आहत हो गई तो संकट हो सकता है, ज़मानत रद्द हो सकती है इसलिए मेरी मानिए तो राजा और रानी का चुनाव इंडोनेशिया से करें, माली से करें या रवांडा या ग्रीक कथाओं से करें. वहां के राजा की जाति और धर्म के समर्थकों या उनके वंशजों को पता ही नहीं चलेगा कि प्राइम टाइम में उनके राजा रानी की कहानी सुनाई गई है, वो भी हिन्दी में. हम लोग गूगल ट्रांसलेशन डिसेबल करवा देंगे.

एक बात का ध्यान रखिए कि कहानी में ख़तरा नहीं होता है लेकिन कहानी से ख़तरा हो सकता है. कहानी सुनाने से आप जेल जा सकते हैं, जानलेवा हमला हो सकता है. आप पर आरोप लग सकता है कि इस कहानी को सुनाकर दो समुदायों के बीच शत्रुता भड़काने की कोशिश की गई. इससे बचने का एक तरीका है कि कहानी में धर्म का ज़िक्र न हो, उस धर्म का तो बिल्कुल नहीं, जिसे मानने वाले इस धरती पर मौजूद हों. भले ही वो छुट्टी मनाने पहाड़ों पर चले गए हों, लेकिन वे लौट कर आएंगे तो दो साल पहले आपने जो कहानी सुनाई होगी, उसमें से कुछ निकाल लेंगे और एलान कर देंगे कि उनकी आस्था आहत हो गई है. अब चलो इसे जेल भेजो, जानलेवा हमला करो. कहानियां सुनाते वक्त कमरे की बत्ती बंद कर दें. कान बंद कर दें, केवल खुली आंखों से कहानी सुनें.

इसलिए मैं दुनिया के सभी लेखकों से आह्वान करता हूं कि वे अपनी कहानी में ज़िक्र करने के लिए एक नए धर्म की कल्पना करें, उसकी स्थापना करें, उस धर्म की सबसे बड़ी शर्त यह हो कि उसे कोई नहीं मानेगा, अगर मानने वाला पैदा हो गया तो उसके साथ आस्था भी पैदा हो जाएगी और आस्था आएगी तो आहत होने लग जाएगी. फिर आप अपनी कहानी में धर्म का ज़िक्र नहीं कर पाएंगे. ऐसी कहानी सुनाएंगे तो पुलिस आएगी, जेल जाएंगे. ध्यान रहे आहत आस्था के नाम पर पुलिस ही नहीं, हत्यारे भी आ जाते हैं. जब तक ऐसी कोई कहानी नहीं मिल जाती, जब तक आप किसी ऐसे धर्म की खोज नहीं कर पाते हैं, मेरी मानें तो धर्म की कहानी कहने के लिए ग्रीक देवी देवताओं की मदद लें.

ग्रीस के लोग वैसे ही आर्थिक संकट में फंसे हैं, उन्हें फुर्सत ही नहीं है कि प्राइम टाइम देखकर या कोई हिन्दी फिल्म देखकर अपने देवी देवताओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आहत होते रहें. आप इन ग्रीक देवी-देवताओं के बारे में जैसे चाहें वैसे दिखा सकते हैं, लिख और बोल सकते हैं. ज़्यूस, पोसाईडन, एफ्रोडाइटी, हियेरा, डिमिटह, अथीना, अपोलो, आरटेमिस, हमीज़, डाईनाईसास, एरीज़ ये सभी ग्रीक देवी देवता हैं. मैं गारंटी देता हूं कि देवी हियेरा और देवी अथीना किसी बात का बुरा नहीं मानेंगी. अगर कोई आहत हो भी गया तो वह थाने में इनके सही नाम तक नहीं बोल पाएगा. पुलिस भी FIR की कॉपी में सही-सही नहीं लिख पाएगी. ज़्यूस देवता का नाम गन्ने का जूस लिख देगी.

राजाओं में आप आगस्टस, टाइबेरियस, क्ला़डियस, कैलिगुला, जूलियस सीज़र, डमीशन, कोमोडस की कहानी ही सुनाया कीजिए. इनकी जाति और धर्म को लेकर कोई भी सड़क पर नहीं आएगा, न ही बसें जलाई जाएंगी. इन्हें कुछ भी बोलिए, किसी की मूंछ और पूंछ में आग नहीं लगेगी. वैसे तो चंगेज़ ख़ान, कुबलाई ख़ान और तोलोई ख़ान की कहानी शानदार है मगर ये लोग मंगोलिया के हैं तो इनकी बहादुरी के किस्से छोड़ दीजिए, कोई इन्हें मुगलसराय का समझ कर आप पर अपनी बहादुरी आज़मा सकता है.

चाहें तो आप फ्रेंच राजा लूई 16 और महारानी मेरी अंत्वानेत की कहानी सुना सकते हैं. कम से कम ब्रेड, केक, पेस्ट्री का तो ध्यान आएगा और फ्रेंच बेकरी की खुश्बू नाक से होते हुए कानों से बाहर आने लगेगी. जापानी राजा ओकिको, कोतोहितो, तोमिहितो, गोतोबा इन सब के बारे में जो बोलना है, बोलिए, पटना में बोलना है या पालीगंज में बोलना है, बोलिए. किसी जापानी को फर्क नहीं पड़ेगा. वैसे भी जापान की मुद्रा येन 24 साल में सबसे नीचे हैं. जापान की जनता महंगाई से परेशान हैं, कहां वह हिन्दी में प्राइम टाइम देखेगी.

आने वाले दिनों में धर्म को लेकर बहुत से मुद्दे खड़े किए जाएंगे. आज जितने हो रहे हैं, उससे भी ज़्यादा. हर दूसरा आदमी अपनी आहत आस्था को लेकर अस्पताल की जगह अदालत जा रहा होगा. अगर आपको यहां की कहानी सुनाने से ख़तरा लगता है तो आप वहां की कहानी सुनाइये. ख़तरे बढ़ गए हैं तो इसका मतलब नहीं कि कहानियां घट गई हैं. भारत की राजनीति में परिवारवाद का खूब ज़ोर चल रहा है. इसे राजनीति का सबसे बड़ा ख़तरा बताया जा रहा है.

पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ने लिखा है कि दुनिया के कई तानाशाह परिवार की विरासत से नहीं आए थे. वही जैसे कि हिटलर, मुसोलिनी, स्तालिन वगैरह-वगैरह. बेसिकली आपका ध्यान बड़े ख़तरे पर न जाए और छोटे ख़तरे में ही उलझा रहे इसके लिए ज़रूरी है कि आप परिवारवाद को बड़ा ख़तरा मानते रहें और और पैसावाद की तरफ न देखें. राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए इतना पैसा कौन दे रहा है, यह न पूछें. आप इसी से मतलब रखिए कि सैंकड़ों और हज़ारों करोड़ के इलेक्टोरल बान्‍ड किसी एक दल को मिले हैं. किस किस ने पैसे दिए हैं, आप नहीं जान पाएंगे. अगर पूछेंगे तो जनता आपको पत्रकार समझ सकती है और जेल भिजवा सकती है.

कल तक जो पब्लिक दल के हिसाब से सच सुनने लगी थी, आज वह धर्म के हिसाब से सुनने लगी है. वह देखना चाहती है कि कोई पत्रकार धर्म को लेकर क्या स्टैंड ले रहा है. उसे अब सरकार से सवाल और सच नहीं चाहिए,ज्यादा बताएंगे तो पब्लिक ही घेर लेगी. इसी संदर्भ में हम आपको एक एनिमेशन दिखाना चाहते हैं,रोहितचश्मे से बने इस एनिमेशन में पब्लिक ही पुलिस लेकर आ गई है कि शहर में सच बताने वाला एक पत्रकार बच गया है उसे जेल भेजो. भारत में खबरों की कमी नहीं है लेकिन खबरों को बताने वाले कम हो गए हैं. इसलिए भी हम यह एनिमेशन दिखा रहे हैं ताकि हमारी खबरों से पब्लिक नाराज़ न हो और साथ का साथ प्राइम टाइम का पन्ना भर जाए.

एनिमेशन की कहानी बारबाडोस की है लेकिन एनिमेशन के कैरेक्टर किसी और देश के लगते हैं.इस एक कमी के लिए आप मुझे माफ भी कर सकते हैं. ऐसा नहीं है कि आज ख़बरें कम हैं, लेकिन ख़बरों को बताना,ख़तरों से खेलना हो गया है.
अगर गहराई से घबराहट है तो मत ही झांकिए. आपके पास जो भी ख़बर है इस कुएं में दफन कर दीजिए. एक डॉलर 79 रुपये से अधिक का हो जाए तो होने दीजिए, इस ख़बर को कुएं में डाल दीजिए.किसी को बताने की ज़रूरत नहीं कि गैस सिलेंडर 50 रुपया महंगा हो गया और दिल्ली में दाम 1053 रुपया हो गया है. बार-बार बताने से जनता भड़क सकती है. बेरोज़गारी की दर 7.8हो गई, 1 करोड़ 30 लाख रोज़गार के अवसर कम हो गए, क्यों बार-बार बताना, क्यों सबको बताना है कि बहुत सारे स्टार्ट अप स्टार्ट होते ही फेल कर रहे हैं और 12000 की नौकरियां जा चुकी हैं.

ठीक है कि अख़बारों में भीतर के पन्नों पर ऐसी ख़बरें छपी हैं लेकिन इसे पढ़ कर आप कुएं में डाल दीजिए.कुछ साल बाद इस ख़बर को उठाकर पढ़िएगा जो आज के टेलिग्राफ में छपी है जो कल के इंडियन एक्सप्रेस में छपी थी. कर्नाटक हाईकोर्ट के जज की मौखिक टिप्पणी की ख़बर.कर्नाटक हाई कोर्ट के जज ने खुली अदालत में कहा है कि एंटी करप्शन ब्यूरो के एक मामले में सुनवाई के दौरान उन्हें परोक्ष रुप से धमकी दी गई कि तबादला कर दिया जाएगा. इस ख़बर के मुताबिक जस्टिस एच पी संदेश ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि आपके ADGP (Seemanth Kumar Singh) लगता है कि काफी पावरफुल हैं. किसी ने हमारे एक जज से कहा है और उन जज साहब ने मुझे बताया कि वह एक जज के तबादले का उदाहरण दे रहा था.मुझे उन जज का नाम लेने में कोई डर नहीं है, मैं जज की अपनी कुर्सी दांव पर लगा कर भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करूंगा. यह नहीं होना चाहिए, मैं इसे रिकार्ड करूंगा.

इस खबर को टेलीग्राफ, इंडियन एक्सप्रेस, स्क्रोल, हिन्दुस्तान टाइम्स कईयों ने छापा है. न जाने ऐसी कितनी ख़बरें सेफ रहने के लिए कुएं में छोड़ दी गई होंगी. कौन है जो हाईकोर्ट के जज का ट्रांसफर कराने की धमकी दे सकता है ? मुझे डर है कहीं वो प्राइम टाइम तो नहीं देखने लगा है. ऐसे पावरफुल लोगों से बचने की सलाह हमें भी लोग देते रहते हैं. इसी कारण हमने प्राइम टाइम में कहानी शुरू कर दी है. हम खबरों का ज़िक्र भी इस तरह से करेंगे कि लगे कि ख़बर पाताललोक के स्मार्ट सिटी की हो, इसका संबंध भारत के किसी भी प्रदेश से न हो.

अमर उजाला की इस खबर की हेडलाइन प्रेरित करने वाली है. प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 133 करोड़ भारतीय हर बाधा से कह रहे हैं कि दम है तो हमें रोको. सरकार ने सीनियर सिटिज़न की सब्सिडी रोकी तो सीनियर सिटिज़न ने दो साल में 1500 करोड़ का टिकट खरीद कर दिखा दिया कि उनमें कितना दम है. ये RTI की सूचना है. अस्पतालों में पांच हज़ार से अधिक के कमरे पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगी, इसे सुनकर मिडिल क्लास भी कहने लगेगा कि दम है तो रोको हमें, हम 5000 क्या, कुछ भी देने को तैयार हैं.

दम है तो दही, लस्सी, पनीर के अलावा जलेबी, भुट्टा, हवा और पानी सब पर जीएसटी लग जाए, हम देकर दिखा देंगे. अगर गैस का कनेक्शन कॉस्ट 1450 रु. से बढ़ाकर 2200 रुपये, सिक्योरिटी 2900 से बढ़ाकर 4400 किया गया है तो और बढ़ जाए, लोग देकर दिखा देंगे. ये सब अब बाधाएं हैं तो हैं. वरुण गांधी ट्विट करते हैं तो करने दो, हममें दम है, हम देकर दिखा देंगे. प्रियंका गांधी कहती हैं तो कहती रहें.

राजनीति होगी धर्म की और आस्था की. बेरोज़गारी और महंगाई की राजनीतिक कहानी समाप्त हो गई है. मगर जो कहानियां बची हुई हैं वो तो हम सुना ही सकते हैं. प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब तो पढ़ी होगी. बड़े भाई साहब का यह प्रसंग इसलिए चुना क्योंकि इसमें सारे नाम वहां के हैं, यहां के नहीं. इसे सुनाने और सुनने से किसी की आस्था आहत ही नहीं होगी. इस कहानी के बड़े भाई साहब को आप साहब से कंफ्यूज़ न करें. कहानी में बड़े भाई साहब फेल हो जाते हैं, लेकिन आप इसे साहब के फेल हो जाने से कंफ्यूज़ न करें. ध्यान रहे यह प्रसंग साहब से संबंधित नहीं है, बड़े भाई साहब से है.

तो प्रेम चंद की कहानी में बड़े भाई साहब छोटे भाई साहब से कहते हैं, ‘मेरे फ़ेल होने पर न जाओ. मेरे दरजे में आओगे, तो दांतों पसीना आ जायगा. जब अलजेबरा और जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे और इंगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा, बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं. आठ-आठ हेनरी ही गुज़रे है. कौन-सा कांड किस हेनरी के समय हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो ? हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवां लिखा और सब नंबर गायब ! सफ़ाचट, सिफ़र भी न मिलेगा, सिफ़र भी ! हो किस ख्याल में ! दरजनों तो जेम्स हुए हैं, दरजनो विलियम, कोड़ियों चार्ल्स ! दिमाग चक्कर खाने लगता है. आंधी रोग हो जाता है. इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे ! एक ही नाम के पीछे दोयम, सोयम, चहारुम, पंजुम लगाते चले गये. मुझसे पूछते, तो दस लाख नाम बता देता.’

अंतिम पंक्ति ठीक से सुनी है न आपने ! नाम दस लाख बताने की बात हो रही है, खाते में पंद्रह लाख भेजने की बात नहीं हो रही है. हर कोई मुझसे कहता है कि सेफ रहना चाहिए. संभल कर लिखना चाहिए, मतलब लिखना ही नहीं चाहिए तो हमने सोचा कि ग़मे रोज़गार की ख़ातिर प्रयोग करते हैं. क्या ऐसा किया जाए कि कई हफ्तों तक के लिए प्राइम टाइम में घटनाओं और ख़बरों का विश्लेषण ही बंद कर दिया जाए ? वैसे ऐसा करने के लिए हमारे पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही क्षमता. वाकई योग्यता की घोर कमी है. इसलिए कुछ-कुछ खबरें तो रखनी पड़ेंगी लेकिन उन घटनाओं के विश्लेषण से दूर ही रहा जाए जिनसे सेफ रहने के लिए कहा जाता है.

जब समाज के बड़े हिस्से में बुज़दिली भर जाए और बुज़दिल शातिर हो जाएं तो बहादुरी से नहीं अक्ल से काम लेना चाहिए. काम ही नहीं करना चाहिए. सच बताने के लिए जंगल जाना चाहिए. ये कैंची देख रहे हैं न, बाल काटने से पहले उंगलियों में फंसाकर कतरने के लिए तैयार की जा रही है. कहानी उस राजा की है, जिसके सर पर सींगे उग आई थी.

किसी को पता न चले कि राजा ने बाल कटाने बंद कर दिए तो बाल झाड़ियों की तरह ऊंचे हो गए. काटने वाले को बुलाया गया तो वह चौंक गया, राजा से बोला, ‘महाराज ! आपके सिर पर तो सींगें हैं.’ राजा ने कहा ‘ख़बरदार किसी को यह सच बताया तो गर्दन काट ली जाएगी.’ उसने भी कहा विद्या कसम हुज़ूर, नहीं बताएंगे.’ मगर उसके पेट में बात नहीं पची. मचलने लगा कि इस सच को कैसे बता दें, बता दें तो गर्दन कट जाएगी. बस एक दिन बाल काटने वाला छुट्टी पर जाता है. इन पेड़ों को देखकर उसकी जी मचलने लगता है कि जंगल में कौन सुनेगा, इन्हें ही बता देते हैं.

बाल काटने बाला एक पेड़ के पास गया और बोला, ‘अरे ! सुनते हो ! हमारे राजा के सिर पर सींगें हैं.’ अब पेड़ों के मन में हलचल शुरू हो गयी. पर वह बताएं तो किससे बताएं. पेड़ जो ठहरे. एक दिन जंगल कट गए. उसी शीशम की लकड़ी से एक सारंगी बनायी गई. जब एक फ़कीर ने, इस फ़कीर ने नहीं, उस फ़कीर ने सारंगी बजाई तो आवाजें आने लगीं – ‘राजा के सिर पर सींग है, राजा के सिर पर सींग है.’ इस तरह से सच सामने आ गया. बस सच के सामने आने के लिए पूरा जंगल कट गया, पेड़ कट गया. अगर आपके पास ख़बर है तो अख़बार के पास मत जाइये, जंगल में जाइये. पेड़ों को सुना दीजिए.

पता नहीं कब कोई ट्विटर पर गिरफ्तारी का अभियान चला दे और अरेस्ट हो जाएं. आज हम एक महापुरुष के संदेश से प्रेरित होकर प्राइम टाइम को एक ऐसे कास्मिक टाइम ज़ोन में ले गए हैं, जहां गर्वनमेंट और ग्रैविटी का फोर्स काम नहीं करता. जहां कोई भी मन की शक्ति से मॉलिक्यूल के एटॉमिक स्ट्रक्चर को बदल देता है. आर्थिक संकट और बेरोज़गारी बढ़ने के साथ-साथ ऐसी घटनाएं और बढ़ेंगी, लोग अपना विवेक खो देंगे. बदहवास हो जाएंगे. चेतावनियों पर यकीन करना छोड़ देंगे. इस माहौल में दो चार बचे हुए पत्रकारों का हाल कसैंड्रा की तरह हो जाएगा. हो ही गया है, वे खोजी ख़बरें करते हैं, मगर कोई पढ़ता नहीं, फारवर्ड करते रहते हैं, कोई पढ़ता नहीं.

कसैंड्रा ट्रॉय की राजकुमारी थी, प्रायम और हक्यूबा की बेटी. तब वहां ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नाम का अभियान लांच नहीं हुआ था. कसैंड्रा की ख़ूबसूरती के सभी दीवाने थे. ग्रीक देवता अपोलो को कसैंड्रा से प्यार हो गया. प्यार में अपोलो ने कसैंड्रा को भविष्य देखने की शक्ति का वरदान दे दिया. कसैंड्रा ग्रीस से थी इसलिए इसके प्रमाण है कि वह प्राइम टाइम नहीं देखती थी. एक दिन कसैंड्रा ने अपोलो के प्यार को ठुकरा दिया. गुस्से में आकर अपोलो ने कसैंड्रा को अभिशाप दे दिया कि ‘तुम्हारी भविष्यवाणियों पर कोई यक़ीन नहीं करेगा.’ हुआ भी यही. कसैंड्रा ने भविष्यवाणी की थी कि ट्रॉय का साम्राज्य युद्ध में तबाह हो जाएगा और यही हुआ.

कसैंड्रा को पहले ही इल्म हो गया था कि ग्रीक लोग ट्रॉय को बर्बाद कर देंगे. ग्रीक सिपाही लकड़ी के बड़े से घोड़े में छिपकर ट्राय में आ गए और ट्राय को तबाह कर दिया. ठीक ऐसा ही हुआ था, धर्म के नाम के बने लकड़ी के घोड़े में छिप कर बहुत से नफरती पत्रकार मीडिया में आ गए, पहले मीडिया को बर्बाद कर दिया, फिर समाज को तबाह कर दिया. कसैंड्रा ने मना किया था कि लकड़ी के इस घोड़े को ट्रॉय शहर के अंदर ना लाएं, इसमें ग्रीक सिपाही छिपे हुए हैं. किसी ने उसकी बात नहीं मानी और घोड़े को शहर के अंदर ले आए. ट्रोजन हार्स की कहानी से किसी की आस्था आहत नहीं होगी. अपोलो के नाम से टायर बनाइये या अस्पताल किसी को ठेस नहीं पहुंचने वाली है.

कैसेंड्रा को ही लोगों ने पागल करार दे दिया. उसके अपने रिश्तेदार ही कसैंड्रा के खिलाफ खड़े हो गए. कई जगहों पर कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एच. पी. संदेश की मौखिक टिप्पणी छपी है कि मेरा कोई निजी हित नहीं है. मैं डरा हुआ नहीं हूं. जज बनने के बाद मैंने एक ईंच ज़मीन नहीं ख़रीदी. ऐसे जज का होना कितनी राहत की बात है. मुझे यकीन है, आप भी इन बातों पर यकीन नहीं करेंगे लेकिन करोड़पति होते ही भारत छोड़ कर जाने की तैयारी ज़रूर करेंगे. कोई 8000 उन करोड़पतियों को रोक क्यों नहीं लेता जो भारत छोड़ कर जाने की तैयारी में है ?

क्या आपको नहीं लगता कि यही वो समय है कि हम कहानियों के जंगल में खो जाएं. दिक्कत है कि ख़तरा तो जंगलों को भी हैं. जंगल भी काटे जा रहे हैं. आल्ट न्यूज़ को रेज़र पे नाम के प्लेटफार्म से चंदा मिलता था. स्क्रोल में ख़बर छपी है कि आल्ट न्यूज़ ने आरोप लगाया है कि उसे बिना बताए, रेज़र-पे नाम के प्लेटफार्म ने पुलिस को कथित रुप से डोनर का डेटा दे दिया है. रेज़र-पे का कहना है कि कानून के हिसाब से ही कदम उठाए गए हैं. जिन लोगों ने चंदा दिया है वो इस ख़बर से चिन्तित हैं कि क्या उनकी जानकारी पुलिस के पास होगी, पुलिस उसका क्या मतलब निकाल सकती है ?

अमेरिका का एक पेमेंट प्लेटफार्म है पेपाल. 2018 की खबर है कि उसने अपने प्लेटफार्म से लेन-देन करने वालों का डेटा 600 कंपनियों को दे दिया था. इसी साल मई की ख़बर है कि कंसोर्टियम न्यूज यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका की नीतियों के खिलाफ लिख रहा था, पे-पाल ने इसका खाता ही बंद कर दिया. वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट पर खबर छपी है. इसी तरह मिंट प्रेस की संपादक एम. एड्ले ने ट्विट किया था कि पे-पाल ने उनके खाते बंद कर दिए हैं. यह एक तरह की सेंसरशिप है.

राजनीतिक दलों को इलेक्टॉरल बॉन्ड के ज़रिए सैंकड़ों करोड़ों का चंदा कौन दे रहा है, आप नहीं जान सकते, लेकिन रेज़र-पे और पेपॉल से आप किसी को चंदा देंगे तो जांच हो सकती है. कानून को किससे ज़्यादा ख़तरा है, बहस हो सकती है. मध्य प्रदेश में तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ FIR दर्ज हुआ है. देवी काली पर उनकी टिप्पणी को लेकर विवाद हो गया है. तृणमूल कांग्रेस ने उनके बयान से किनारा कर लिया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि महुआ मोइत्रा के बयान से हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है, हिंदू देवी देवताओं का अपमान किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसलिए सावधान रहिए. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट किया है.

हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जहां कोई भी धर्म के किसी भी पहलू के बारे में पब्लिक में नहीं बोल सकता है. कोई न कोई दावा कर ही देगा कि उसकी आस्था आहत हो गई है. यह साफ है कि महुआ मोइत्रा किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहती थीं. मैं सभी से अपील करता हूं कि थोड़े नरम बनिए, धर्म के मामले को किसी व्यक्ति के निजी दायरे तक सीमित रहने दीजिए.

अच्छी बातों का ज़माना चला गया है. जल्दी ही ऐसा दिन आएगा जब आस्था को मानने वालों से ज्यादा उस आस्था के नाम पर आहत होने वाले हो जाएंगे. अमरावती की घटना की जांच NIA कर रही है. अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या के मामले में एनआईए अब पीएफआई के सदस्यों से पूछताछ कर रही है, उसके रडार पर रहबर संस्था के भी कुछ और लोग हैं.

उधर अमरावती पुलिस ने उस थ्योरी को नकार दिया है कि हत्याकांड और नुपूर शर्मा के बयान के रिश्ते को उसने दबाया. पुलिस कमिश्नर ने एनडीटीवी से कहा है कि राज्य पुलिस ने ही जून के आखिरी हफ्ते में एनआईआए को पूरी जानकारी दी है. इस तफ्तीश में एक और नाम की भूमिका पर सवाल हैं क्योंकि पीड़ित परिवार को भी इस पर पूरी तरह यकीन नहीं है – वो नाम है उमेश कोल्हे के दोस्त डॉ. यूसुफ खान का. आहत होने वालों से सावधान रहिए. कन्हैयालाल और उमेश कोल्हे की हत्या का असर बहुत गहरा है.

अमरावती के हत्यारे ने सात-सात लोगों को हत्या का आरोपी बना दिया. क्या इससे आस्था का भला हो गया ? सहारनपुर में इसके नाम पर कई लोग बिना सबूत के हफ्तों जेल में बंद कर दिए गए. उन पर मुकदमें की तमाम धाराएं लाद दी जाती हैं. हिन्दू और मुसलमान का यह झगड़ा बंद होना चाहिए लेकिन कोई यह बात सुनने को तैयार नहीं. सब पहले ‘वो’ तो पहले ‘वो’ का हिसाब चाहते हैं.

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