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कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला जिसने संजय गांधी को नहीं दी तवज्जो

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भोपालः तीन बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ल अपने दौर के स्टाइलिश नेताओं में गिने जाते थे। प्रिंस चार्मिंग के नाम से मशहूर शुक्ला ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग और नागपुर यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली थी। उनके पिता रविशंकर शुक्ल मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। श्यामाचरण शुक्ल अक्खड़ स्वभाव के थे और कांग्रेस के उन गिने-चुने नेताओं में शामिल थे जिन्होंने संजय गांधी को कभी खास महत्व नहीं दिया। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा और वे कभी गांधी परिवार के विश्वासपात्र नहीं बन सके, लेकिन शुक्ल ने कभी किसी के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया।

इमरजेंसी के दौरान दूसरी बार बने मुख्यमंत्री
श्यामाचरण शुक्ला दिसंबर, 1975 में दूसरी बार एमपी के मुख्यमंत्री बने, तब इमरजेंसी लागू हो चुका था। पूरे शासन तंत्र में संजय गांधी की तूती बोलती थी। 20 सूत्री और पांच सूत्री कार्यक्रमों के चलते संजय गांधी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा था, लेकिन शुक्ल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अलावा किसी की नहीं सुनते थे। उस दौरान कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपने राज्यों में संजय की यात्रा के लिए पलक-पांवड़े बिछाए रहते थे, लेकिन शुक्ल उनसे अलग थे। वे संजय के लेने तक नहीं जाते थे।

संजय गांधी के पीछे-पीछे घूमते थे कांग्रेसी मुख्यमंत्री
ये वो दौर था जब कांग्रेसी मुख्यमंत्री अक्सर संजय गांधी के पीछे-पीछे घूमते नजर आते थे। इसमें सबसे आगे थे आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जे वेंगलराव। संजय गांधी राजस्थान की यात्रा पर गए तो उन्होंने हाथी की सवारी की। इस दौरान वे मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के कंधे पर पैर रखकर हाथी पर चढ़े। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी तो संजय गांधी की टूटी चप्पल हाथ में लिए चलते नजर आए थे।

संजय को अपने साथ लाने दिल्ली जाते थे सीएम
कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री संजय गांधी को अपने राज्य में लाने के लिए सरकारी विमान से दिल्ली जाते थे। संजय की यात्रा को लेकर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के बीच होड़ लगी रहती थी। सभी खुद को संजय के सबसे करीबी होने का दावा करते थे। यह उस समय कांग्रेसी संस्कृति का हिस्सा था, लेकिन श्यामाचरण शुक्ल इन सबसे अलग थे। संजय का मध्य प्रदेश आने का कार्यक्रम बना तो शुक्ला उन्हें लेने खुद नहीं गए। उन्होंने अपनी कैबिनेट के मंत्री कृष्णपाल सिंह को सरकारी विमान से दिल्ली भेजा।

मारुति को एमपी में नहीं दिया काम
संजय गांधी ने जब मारुति उद्योग स्थापित किया तो मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसों के लिए बॉडी बनाने का काम पाने की कोशिश में लग गए। वे इस पर अपना एकाधिकार चाहते थे और इसके लिए प्रदेश सरकार पर दबाव बना रहे थे। मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक आर एस खन्ना मारुति कंपनी को यह काम देने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि यह नियमों के खिलाफ था। बात जब मुख्यमंत्री शुक्ला के पास पहुंची तो उन्होंने अधिकारियों से कहा कि इसके लिए प्रधानमंत्री आवास से उन पर दबाव डाला जा रहा है। अधिकारियों ने उन्हें नियमों के बारे में बताया तो उन्होंने तय कर लिया कि मारुति को यह काम नहीं दिया जाएगा। तमाम दबाव के बावजूद उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला।

बेमन से किया स्वागत
इसके कुछ दिन बाद संजय गांधी की भोपाल यात्रा का कार्यक्रम बना तो श्यामाचरण शुक्ल ने इसका विरोध किया। इंदिरा गांधी के कारण वे बड़ी मुश्किल से इसके लिए राजी हुए, लेकिन उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट भी नहीं गए। इसके कुछ महीने बाज संजय का बस्तर दौरे का कार्यक्रम बना तो शुक्ला ने फिर विरोध जताया। हालांकि, संजय नहीं माने। भोपाल और बस्तर की यात्राओं में उन्हें बेमन से संजय गांधी का स्वागत करना पड़ा।

प्रोटोकॉल के खिलाफ काम क्यों करूं
शुक्ला को मध्य प्रदेश का एकमात्र विजनरी मुख्यमंत्री माना जाता है। राजनीतिक परिवार का होने के कारण वे पद की गरिमा को काफी महत्व देते थे। उनका मानना था कि संजय गांधी किसी पद पर नहीं हैं। ऐसे में किसी राज्य के मुख्यमंत्री का उनका स्वागत करना प्रोटोकॉल के विरुद्ध है।

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