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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की किताब में दिलचस्प किस्से

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चंद्रशेखर, पूर्व प्रधानमंत्री
मैं मानता था कि चुनाव में हराने के बाद इंदिरा गांधी को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए। मैं इस राय का था कि चुनाव में हार जाना ही सबसे बड़ी सजा है। लेकिन कई लोग सरकार में इस राय के खिलाफ थे। खुद प्रधानमंत्री, गृहमंत्री वगैरह। ये लोग इंदिरा गांधी को जेल भेजना चाहते थे। शाह आयोग बनाते वक्त किसी ने मुझसे बात नहीं की। एक दिन मैं प्राण सब्बरवाल के दफ्तर में था। वहां कई पत्रकारों ने मुझसे पूछा कि क्या इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी चल रही है? मैंने कहा कि मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है।

इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई
पत्र-प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा कि आजकल गृह मंत्रालय में यह चर्चा जोरों पर है। मैंने वहां कुछ नहीं कहा, वहां से सीधे मोरारजी भाई के घर गया और उनसे पूछा कि क्या गृहमंत्री इंदिरा जी को जेल भेजने की तैयारी कर रहे हैं? प्रधानमंत्री ने इस संभावना को नकारा। इसके राजनीतिक दुष्परिणामों से मैंने मोरारजी भाई को आगाह किया। इसके बाद मैं मुंबई चला गया। शरद पवार के यहां रात्रिभोजन के लिए गया था, सूचना वहीं मिली कि इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया गया है। मुझे बुरा लगा। मैं दूसरे दिन सवेरे हवाई जहाज से दिल्ली वापस आने ही वाला था। विधायक निवास में अपना सामान लेने गया। वहां से जब सामान लेकर नीचे आया तो कुछ युवक खड़े थे, उनमें से एक ने पूछा कि क्या इंदिरा गांधी गिरफ्तार कर ली गई हैं ? मैंने उनसे कहा कि मैंने सुना है, पर विवरण मुझे मालूम नहीं। वे युवक कांग्रेस के थे। वे इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी पर अपना विरोध जताने के लिए आए थे। उन्हें पता था कि मैं वहां ठहरा हुआ हूं। जब मैं गाड़ी में बैठ गया तो उन्होंने कुछ नारे लगाए।

मीटिंग से बार-बार उठ रहे थे चौधरी साहब
दिल्ली पहुंचने पर सीधे मोरारजी भाई के यहां गया और उनसे पूछा कि यह कैसे हो गया? उन्होंने कहा, ‘फैसला गृहमंत्री जी का है, पर मैंने फाइल देख ली है।’ मैं उनकी बात सुनकर हैरान रह गया। दूसरे दिन मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा जी को रिहा कर दिया। उस दिन किसी मंत्री के यहां केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनौपचारिक मीटिंग थी। उसमें मैं भी आमंत्रित किया गया था। मीटिंग के बीच से चौधरी साहब बार-बार बाहर जाकर यह पता लगा रहे थे कि उस केस में इंदिरा जी का क्या हुआ। एक बजे जब वह फिर गए और लौटकर आए तो बहुत उदास थे।

इंदिरा गांधी को मीसा के तहत जेल भेजना चाहते थे
उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया। सब लोग भोजन के लिए उठे। मैं थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर गया, जब लौटकर आया तो चौधरी साहब और राजनारायण जी की बात सुनकर हैरान रह गया। राजनारायण जी कह रहे थे, ‘उसे मीसा में बंद करा दीजिए’। चौधरी साहब ने अपनी राय बताई कि वह तो चाहते हैं, पर प्रधानमंत्री तैयार नहीं होंगे। मीसा अभी समाप्त नहीं हुआ था। मैंने दूसरे कमरे में जाकर मोरारजी भाई से पूछा कि क्या ऐसा भी कोई इरादा है? उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं। गृहमंत्री जी की योजना असफल हुई, वह उससे परेशान हैं और कोई बात नहीं।’ मैं सोचता रहा, पहले तो कह रहे थे कि गिरफ्तारी सही है मजिस्ट्रेट की हैसियत से उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए हैं, उनका हवाला दे रहे थे और आज ऐसी बातें? इन दो बुज़ुर्गों के बीच काम करना बहुत कठिन था। उनसे कितनी बार मुझे बातें सुननी पड़ती थीं।

बड़ी मुश्किल में मानें थे मोरारजी देसाई
चुनाव नतीजे आने के बाद मैं एक बार इंदिरा गांधी से मिला। मुझे वहां सब जानते थे। सुरक्षा में तैनात ऑफिसर और कर्मचारियों ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कोई भूत आया हो। यह बात लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद की है। उन दिनों इंदिरा जी सफदरजंग की अपनी सरकारी कोठी में ही थीं। 12, विलिंग्डन क्रिसेंट तो वह बाद में गईं। बात करते हुए मैंने महसूस किया कि इंदिरा गांधी बेहद परेशान हैं। उनको अपनी और परिवार की चिंता सता रही है। कहने लगीं, ‘बहुत परेशानी है, लोग आकर बताते हैं कि संजय गांधी को जलील किया जाएगा। दिल्ली में घुमाया जाएगा। मुझे मकान नहीं मिलेगा। हमारी सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी।’ इंदिरा गांधी की बात सुनकर मुझे हैरानी हुई। मैं सीधे वहां से मोरारजी भाई के यहां गया। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप उनको मकान भी नहीं देंगे? मोरारजी भाई ने कहा कि नहीं देंगे क्योंकि नियम में नहीं आता। मैंने उन्हें बताया कि जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र के परिवार को मकान मिला हुआ है। मोरारजी भाई ने कहा कि उनका भी कैंसिल कर दूंगा। मैंने उनसे कहा कि जिस परिवार ने स्वराज भवन और आनंद भवन देश को दे दिया, जो महिला 17 साल प्रधानमंत्री रहीं, उनको रहने के लिए आप मकान तक नहीं देंगे? मोरारजी भाई से बड़ी बहस हुई। अंत में वह माने, यह कहते हुए कि ‘जब आप कहते हैं तो मकान दे दूंगा।’

फाइल दिखाकर डराने की कोशिश
एक किस्सा तो मुझसे ही जुड़ा हुआ है। मैं उनसे मिलने गया था, जब उठकर चलने लगा तो वह बिना कारण बोले, ‘चंद्रशेखर जी, यह एक फाइल है, जरा देखिएगा।’ मैंने गाड़ी में उस फाइल को सरसरी तौर पर देखा। राजनारायण ने वह फाइल प्रधानमंत्री को दी थी। मैं पलटा और प्रधानमंत्री से पूछा कि ‘मोरारजी भाई, आपने यह फाइल मुझे क्यों दिखाई?’ मोरारजी भाई ने कहा, ‘मेरे पास आई थी तो मैंने सोचा कि आपको दे दूं। आपकी जानकारी में रहनी चाहिए।’ मैंने उनसे कहा, ‘मोरारजी भाई, किसी और के साथ यह तमाशा करिएगा। आपको जांच करवानी है तो करवा लीजिएगा। ऐसी फाइलें मैंने बहुत देखी हैं।’

(स्वर्गीय चंद्रशेखर की पुस्तक ‘जीवन जैसा जिया’, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन से साभार)

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