अग्नि आलोक
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सिंहासन खाली करों कि जनता आती है

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शशिकांत गुप्ते

त्रेतायुग में श्रीलंका में दैत्यराज रावण का अधिपत्य था। रावण महान पंडित था। त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण का वध किया।
भगवन राम ने रावण के ही सगे भाई बिभीषण को श्रीलंका की राजगद्दी पर विराजित किया।
आज की तरह यह सत्ता परिवर्तन नहीं था, यह तो महज हस्तांतरण था।
कलयुग में श्रीलंका पर्यटन का दर्शनीय छोटा सा द्वीप बन गया।
त्रेतायुग में रावण का भाई बिभीषण दैत्यकुल में जन्म लेने के बाद भी भगवान का भक्त था। रावण के अन्याय,अत्याचार और दुर्गोणो के विरुद्ध बिभीषण ने रावण को नीति पर चलने का उपदेश दिया।
रावण ने अहंकारवश नीतिगत उपदेश को ठुकराया साथ बिभीषण पर पदप्रहार किया।
राष्ट्रकवि दिनकरजी की इन पंक्तियों को चरितार्थ किया।
जब नाश मनुज पर छाता है
पहले विवेक मर जाता है

अस्तु,युग का परिवर्तन हो गया पर दानवी प्रवृत्ति जस की तस विद्यमान है।
त्रेतायुग में दानव नरभक्षी थे। कलयुग में मानव ही मानव के साथ क्रूरता कर रहा है।
कलयुग में मानव नरभक्षी तो नहीं है,लेकिन धनभक्षी जरूर हो गया है।
इक्कीसवीं सदी में जो श्रीलंका में जो कुछ हुआ है, वह दुनिया के सभी देशों के सत्ताधीशों लिए बहुत बड़ा सबक है।
श्रीलंका की घटना पर महान कवि स्व.रामधारी सिंह दिनकरजी की कविता का स्मरण होता है।
सदियों की ठण्डी-बुझी रख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह,समय के रथ के घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
लेकिन होता भूडोल,बवण्डर उठते हैं
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती है
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख
मन्दिरों,राजप्रासादों में,तहखानों में?
देवता कहीं सडकों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में,खलियानों में
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
घुसरता सोने से श्रृंगार सजाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

दिनकरजी की कविता कुछ बन्द ही प्रस्तुत किए है। वैसे तो दिनकरजी की पूर्ण कविता ही प्रासंगिक है।
श्रीलंका हमारा पड़ौसी देश है। वर्तमान में श्रीलंका में घटित घटना ने इस लोकोक्ति पर प्रश्न उपस्थित कर दिया है, हरएक व्यक्ति इसलिए दुःखी है कि,पड़ौसी सुखी है। जिस पड़ौसी को सुखी समझने की भूल की जाती है। वह भी यही तो इसलिए दुःखी होता है, कि उसका पड़ौसी सुखी है। दोनों ही आसपड़ौसी एक दूसरें के सुख से जलते हैं?
बहरहाल अहम प्रश्न तो यह है कि, क्या पड़ौसी की गलतियों से कुछ सीख मिलेगी?या यूँ पूछा जाए कि सीखना चाहिए? भाइयों और बहनों सीखना चाहिए कि नहीं?
श्रीलंका में जो विद्रोह की स्थिति बनी उसका मुख्य कारण साम्प्रदायिक सौहाद्र, वैमनस्यता में बदल रहा था।
जब पूंजी,सत्ता और व्यक्ति केंद्रित राजनीति की पराकाष्ठा होती है, तब श्रीलंका जैसी स्थिति बनना स्वाभाविक हो जाती है।
इतिहास गवाह है, तानाशाही प्रवृत्ति के हुक्मरानों का हश्र कैसे हुआ?
तुलसीबाबा रचित यह चौपाइयां उक्त संदर्भ में प्रासंगिक हैं।
जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना
जहाँ कुमति तहाँ विपत्ति निदाना

जब मानव के जहन में भ्रम छा जाता है,तब भ्रम, मानव को हर तरह के अमानवीय कर्म करने के लिए उकसाता है।
श्रीकृष्ण भगवान ने शिशुपाल से कहा था,सौ गालियां देने तक बक्श दूंगा। सौ से एक भी गाली ज्यादा बोलेगा तो तेरा वध कर दूंगा।
जब भ्रमवश शिशुपाल गालियां देने तब श्रीकृष्ण भगवान शिशुपाल के द्वारा दी जा रही गालियों सिर्फ गिन रहें थें। भगवान ने उसे रोका नहीं।
समझने वालें समझ जाएंगे।
भाइयों और बहनों समझना चाहिए कि नहीं…..

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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