इजरायल के ऐतिहासिक शहर हाइफा में स्थित बंदरगाह को भारत के अडानी समूह ने खरीद लिया है। अडानी समूह ने गडोट के साथ मिलकर 1.18 अरब डॉलर में हाइफा बंदरगाह को अपने नियंत्रण में ले लिया है। इजरायल के इस दूसरे सबसे बड़े बंदरगाह में 70 फीसदी हिस्सेदारी अडानी समूह की होगी। अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने खुद इस डील का ऐलान किया। इजरायल के इस चर्चित हाइफा शहर से भारतीयों का सैकड़ों साल से गहरा संबंध रहा है। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की ओर से जंग लड़ रहे भारतीय सैनिकों ने इतिहास रच दिया जिसे आज भी दुनिया सलाम करती है। आइए जानते हैं हाइफा के जंग की पूरी कहानी….
अडाणी समूह के साथ इस समझौते के बाद इजरायल के भारत में राजदूत नाओर गिलोन ने प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों की दिलेरी और कुर्बानी को याद किया। दरअसल, आज से करीब 104 साल पहले 23 सितंबर, 1918 को भारतीय सेना के जाबांज घुड़सवार दस्ते ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य से भीषण जंग लड़ी और उन्हें पराजित कर दिया। यह जंग इजरायल के हाइफा शहर में लड़ी गई थी। आधुनिक इतिहास में घुड़सवार दस्ते की जीत के कुछ अंतिम उदाहरणों में यह शामिल है। इस जंग के दो महीने बाद 11 नवंबर 1918 को प्रथम विश्वयुद्ध खत्म हो गया। इस युद्ध ने दुनिया को इस तरह से बदलकर रख दिया जितनी किसी ने कल्पना नहीं की थी। इस जंग में भारतीय सेना ने जिस दिलेरी का प्रदर्शन किया था, इजरायली जनता आज भी उसकी कायल है।
भारत के घुड़सवार दस्ते को दी गई हाइफा विजय की जिम्मेदारी
दरअसल, साल 1918 में हाइफा शहर जर्मनी और तुर्की की सेनाओं के नियंत्रण में था। इस दौरान विश्वयुद्ध अपने चरम पर था। इस दौरान ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के धड़े की कोशिश थी कि किसी तरह से प्रत्येक रणनीतिक रूप से अहम शहर, बंदरगाह और सैन्य अड्डे पर कब्जा कर लिया जाए ताकि विश्वयुद्ध को जीता जा सके। हाइफा बंदरगाह उन सैन्य अड्डों में शामिल था जहां से हथियारों और टैंक की आपूर्ति की जाती थी। यह शहर उस समय रेल और बंदरगाह से दुनिया से जुड़ा हुआ था। ब्रिटेन के नेतृत्व वाले गठबंधन ने हाइफा, नाजरेथ और दमिश्क को काटने की योजना बनाई। हाइफा और नाजरेथ शहर इस समय इजरायल में हैं और दमिश्क सीरिया की राजधानी है।