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भावी राष्ट्रपति और आदिवासी वोट का जुगाड़मेंट

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सुसंस्कृति परिहार

भाजपा सरकार इन दिनों अपनी भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की जीत के  ज़रिए आदिवासी वोट के लिए जिस तरह के हथकंडे अपनाने में सक्रिय हैं। उससे यह भली-भांति जाहिर हो रहा है कि महामहिम बनने जा रही पहली बार आदिवासी महिला का चयन क्योंकर भाजपा ने किया है?

सूत्र बता रहे हैं कि देश के सर्वोच्च पद पर पहली बार कोई आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू आसीन होने जा रही हैं। इस खुशी में भारतीय जनता पार्टी देश भर में जनजातीय बहुल क्षेत्रों में इसे उत्सव के रुप में मनायेगी।यह संभवतः पहली बार हो रहा है कि किसी राष्ट्रपति के जातीय लोगों को एक जनजातीय उत्सव में झोंका जा रहा है। राष्ट्रपति तो देश का प्रथम नागरिक होता है इस नाते वह संपूर्ण देश का मुखिया होता है ना कि किसी किसी विशेष जाति का प्रमुख।

राजनैतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि भाजपा यह सब 2024 के संसदीय चुनावों में आदिवासी समुदाय की वोट हासिल करने के लिए इस समाज को यह जताना चाह रही है कि वह आदिवासियों की सबसे हितचिंतक पार्टी है इसीलिए उसने उड़ीसा के संथाल जनजाति की महिला द्रौपदी मुर्मु को अपना उम्मीदवार बनाके जिताया है। यह प्रचार इतने जबरदस्त स्वरुप में किया जाने वाला है कि उसकी तैयारियों को देखकर ना सिर्फ कांग्रेस में अंदरुनी फूट पड़ी है बल्कि शिवसेना जैसी भाजपा विरोधी पार्टी को समर्थन देने मज़बूरी होना पड़ा। कांग्रेस में तो लोग यह कह रहे हैं कि हमें मुर्मु को निर्विरोध चुनने में मदद करनी चाहिए थी वास्तव में इसके पीछे का सच सिर्फ आदिवासी वोट और उन्हें रिझाने हेतु आयोजित उत्सवधर्मिता ही है।अन्य दल भी आदिवासी वोट पर चोट ना पहुंचे इस कारण मुर्मु जी को सपोर्ट कर रहे हैं।

इधर रांची में भाजपा अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रपति पद के लिए किसी जनजाति समाज की महिला को एनडीए ने प्रत्याशी बनाकर इस समाज को बड़ा सम्मान दिया है इसके लिए यह समाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा को आभार व्यक्त करता है।उन्होंने कहा कि जनजातियों के विभिन्न समूहों द्वारा पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष को आभार पत्र लगातार भेजा जा रहा है. इसके अलावे जनजातीय क्षेत्रों के हर गांव से ग्रामसभा से प्रस्ताव पारित कर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को आभार व्यक्त किया जायेगा।ये भी भाजपा के प्रचार का अभियान लगता है।

 विदित हो भारत के 16वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए 18 जुलाई को वोटिंग होनी है। चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत करीब तय मानी जा रही है। यही वजह है कि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने द्रौपदी मुर्मू की जीत की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। बीजेपी ने देश के करीब 1 लाख 30 हजार आदिवासी गांवों और 15 हजार मंडलों में दौपदी मुर्मू की जीत का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है।

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून१९५८को ओड़िशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु था। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे।उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया। उनके दो बेटे और एक बेटी हुए। दुर्भाग्यवश दोनों बेटों और उनके पति तीनों की अलग-अलग समय पर अकाल मृत्यु हो गयी। उनकी सिर्फ एक पुत्री है जो भुवनेश्वर में रहतीं हैं।

द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। उसके बाद धीरे-धीरे राजनीति में आ गयीं।द्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया था।उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। साथ ही वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं है।द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर दो बार जीती और विधायक बनीं। ओडिशा में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार में द्रौपदी मुर्मू को 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था ।

द्रौपदी मुर्मू मई 2015 में झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनाई गई थीं। इस तरह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का खिताब भी द्रौपदी मुर्मू के नाम रहा।  साथ ही वह किसी भी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली आदिवासी भी हैं।

विशुद्ध तौर पर भाजपा की सक्रिय सदस्य रहीं भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आदिवासियों की भलाई के लिए  कोई महत्वपूर्ण कार्य किए हों ऐसा कहीं उल्लेख नहीं मिलता ना ही देश के तमाम आदिवासी समाज में उनकी कोई ख़ासी पृष्ठभूमि रही है।

उल्टे जिस भाजपा सरकार से वे आती हैं उसने आदिवासियो के बीच उनके कल्याण हेतु कार्यरत कवि,वारबर राव, एडवोकेट सुधा भारद्वाज वा अन्य अनेक साथियों के साथ जो सलूक किया है वह चिंता जनक है। इसी तरह पिछले दिनों मेधा पाटकर और उनके एनजीओ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने 13 करोड़ का गबन किया है। इसे लेकर उनके खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया है। मेधा पाटेकर ने अपनी पूरी जिंदगी पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने में लगा दी। सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को न्याय दिलाने के लिए मेधा पाटेकर एकमात्र आवाज रहीं। उन्होंने सैकड़ों आदिवासियों गरीबों और और कमजोर लोगों को उचित मुआवजा भी दिलवाया लेकिन आज उन्हें भ्रष्ट बताकर उन्हें जेल में डालने की कवायद चल रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में 17आदिवासियों के नरसंहार की जांच की मांग करने वाले हिमांशु कुमार पर कोर्ट ने 5 लाख का जुर्माना लगा दिया है।यह आश्चर्यजनक है और सरकार की आदिवासियों के प्रति दुर्भावना को अभिव्यक्त करता है।जांच की मांग भी आज अपराध हो गया है।

ऐसी हालत में देश के आम नागरिकों की भावी राष्ट्रपति से उम्मीद यह होगी कि भाजपा द्वारा छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर झारखंड , उड़ीसा मयूरभंज और मध्यप्रदेश के आदिवासियों के हित में काम करने वाले तमाम गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर आरोपित मामलों को वापस लेने की पहल करेंगी क्योंकि उनके बीच काम करने वाले लोग भली-भांति जानते हैं कि  पुलिस और सरकार उनका दमन किस तरह कर रही है। छत्तीसगढ़ में तो सरकार सलवाजुडूम बनाकर परस्पर भोले भाले आदिवासियों को भी लड़ाती रही। सरकार नेअपनी छवि बनाए रखने के लिए कितने भोले भाले महिला पुरूष को नक्सलवादी कहकर उड़ा दिया या जेल में डाला है यह भी बड़ा सवाल है।सत्ता शोषण और उत्पीड़न के जरिए खुद मानवाधिकार का हनन कर रही है. पहले दास समाज में एक दास के मारे जाने से उनके कोर्ट में कोई नहीं केस नहीं बनता था। पुलिस आज बेकसूर आदिवासी को मार डालती है, पुलिस पर कोई केस नहीं हो सकता है। ये कैसा कानून यहां चल रहा है?

इन पीड़ित आदिवासियों की आवाज़ जब सरकारी दमन चक्र में दफ़न हो रही हो तो  बुद्धिजीवी आवाज नहीं उठायेंगे तो कौन उठाएगा? उन्हें भी जेल में डाला गया है। यह अच्छी बात नहीं।भावी राष्ट्रपति यदि वास्तव मेंअब आदिवासियों की सेवा करना चाहती हैं तो उन्हें इन विषयों पर गंभीरता से सोचना होगा। राष्ट्रपति बनना फिर उत्सव मनाना महत्वपूर्ण नहीं है ज़रुरी है एक नई इबारत लिखकर आदिवासियों का कल्याण किया जाए। आदिवासी वोट की चाहत ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए।यह एक राष्ट्रपति के पद की गरिमा के खिलाफ के साथ साथ उसकी अवमानना भी होगी।

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