शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी ने आज मुझे,उनका लिखा व्यंग्य पढ़कर सुनाया। सीतारामजी ने अपने व्यंग्य की शुरुआत जादुई चमत्कारों से की है।
इनदिनों राजनैतिक माहौल भी पूर्णरूप से जादुई हो गया है। देश की तमाम मूलभूत ज्वलंत समस्याएं जादुई करिश्मों की तरह गायब हो गई है।
ज्वलंत समस्याएं सिर्फ विपक्ष के लिए विरोध करने का मुद्दा बन गई है। विपक्ष की विरोध की आवाज भी कुछ एक समाचार चैनलों को छोड़ शेष सभी चैनलों पर गायब है।
यदि भूले भटकें कोई चैनल ज्वलंत समस्याओं उठाता है,
तब देश में जगह जगह शिवलिंग प्रकट होने लगतें हैं।पवनपुत्र,रामभक्त हनुमान की स्तुति सुनाई देने लगती है।
यह सब देख सुन,पढ़,कर देश का माहौल भक्तिमय हो जाता है।
जादुई माहौल में बेरोजगार की समस्या भी सिर्फ विरोधियों के स्वर में अटक कर रह जाती है। व्यवस्था द्वारा बेरोजगर युवाओं के लिए नायाब रोजगार की योजना बनाई जाती है। इस योजना के अंतर्गत देश के युवाओं को मात्र चार वर्षो के लिए रोजगार प्राप्त हो जाएगा और चमत्कारिक तरीके से चार ही वर्षो में युवा सेवनिवृत्त होने के लाभार्थी भी हो जाएंगे। सिर्फ चार वर्षो के कार्यकाल में बारह लाख रुपयों की भारीभरकम रक़म प्राप्त कर जीवन के अंतिम क्षण तक जीवन का आनंद उठाएंगे।
यदि युवाओं को देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व जवाहरलाल नेहरू का यह कथन याद आ गया, आराम हराम है तो युवावस्था में ही वे सेवानिवृत होने के बाद स्वयं को व्यस्त रखने के लिए जनसेवा करने के उद्देश्य से रक्षक ( चौकीदार) का करने के लिए योग्य हो जाएंगे। रक्षक का कार्य करने से तात्पर्य सेवनिवृत्त युवा किसी कार्यलय के द्वार पर रक्षणार्थ मुस्तैद होकर खड़ा रहेगा।
रक्षक का रोजगार प्राप्त करने के लिए उसे ज्यादा मशक्कत करने की आवश्यकता नहीं होगी।
उक्त योजना का क्रियान्वयन होने के पूर्व ही कुछ दूरदृष्टाओं राजनेताओं ने युवाओं को सेवनिवृत्ति के बाद सियासी दफ़्तरों में रोजगार की गारंटी दे दी है।
महंगाई की समस्या भी जादुई करिश्मे की तरह गायब हो गई है।
डायन या चुड़ैल मतलब हमारे समाज के अंदर ऐसी कई बातें है हैं,जो समाज की बुराई का नतीजा है,लेकिन समाज आज भी इनसे सहानुभूति की बजाय घृणा करता है। इन्ही में से एक है डायन और चुड़ैल होती है। चुडैल ताउम्र काले जादू की क्रियाओ में अपना जीवन बिताती है,और इंसानो को भर्मित कर उनके खून का भक्षण करती है। कहने का तात्पर्य यह है कि पूर्व में महंगाई इतनी बुरी थी। आज महंगाई Darling मतलब प्रिय लगने लगी है। Darling के लिए इंग्लिश में समानार्थी शब्द ये हैं। Beloved, Dearest, और Sweetheart वगैराह। समस्या ही इतनी प्यारी हो जाएगी तो उसको कोई समस्या कैसे मानेगा? इसी कारण से आमजन के मानस पटल से महंगाई गायब हो गई है। आमजन को बार बार जादुई करिश्मे देखने की आदत हो गई है। जादूगर आमजन को सम्मोहित कर जो दिखाता है, आमजन उसे ही सच मानने के लिए बाध्य हो जाता है।
जादूगर जिंदा आदमी को काट कर पुनः जस का तस बना देता है। वास्तव में जादूगर किसी आदमी को काटता ही नहीं है,जादू देखने वालों को यह दृष्टि भ्रम होता है।
यही भ्रम आमजन के वास्तविक जीवन में सियासी जादूगर ने फैलाया है।
जादूगर कोरे कागज को रुपयों की मुद्रा में परिवर्तित कर देता है।
साधारण जादूगर सियासी नहीं होता है। इसीलिए वह सार्वजनिक रूप से इस बात को क़बूल करता है,वह जादू से कोरे कागज़ के रुपए जरूर बना लेता है लेकिन गिरतें रुपए को संभालना उसके बस की बात नहीं हैं।
सियासी जादूगर के द्वारा तमाम ज्वलंत समस्याओं के बावजूद सर्वत्र जादुई खेल सफ़ल हो रहा है।
यह सुनकर मैने कहा जादू अंतः जादू ही होता है। हाथ की सफाई और वाकचातुर्य से जादुई करिश्मों की प्रस्तुति। यही तो जादूगर की ट्रिक्स होती है।
जो इन ट्रिक्स में निपुण हो जाता है वह विज्ञापनों के माध्यम से अपना प्रचार करता है और अपने जादुई व्यापार का प्रसार करता है।
सीतारामजी ने कहा उन्हें प्रख्यात व्यंग्यकार स्व.शरद जोशीजी द्वारा पचास वर्ष पूर्व लिखा व्यंग्य *जादू की सरकार,सरकार का जादू याद आ गया।
मैने कहा सच में सरकार का जादू ही है,बगैर बारिश के कीचड़ फैल जाता है। आश्चर्य तो तब होता है जहाँ सूखा पड़ता है, वहाँ भी कीचड़ फैलता है और फूल सिर्फ खिलता ही नहीं फलता फूलता है।
सीतारामजी ने कहा इसका मुख्य कारण, वादों के साथ दावों को जुमलों में परिवर्तित कर जिस शाब्दिक उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है,उसी का परिणाम प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है।
आमजन दल-दल में जीवनयापन करने का आदी हो गया है।
आमजन को पन्द्रहलाख भी जादुई करिश्मे की तरह ही प्राप्त हो गए है।
सुनने में आया है कि,यह जादू सन 2064 तक मतलब पूरे पचास वर्षों तक निरन्तर चलने का दावा किया गया है।
शुभकामनाओं के साथ पूर्ण विराम।
शशिकांत गुप्ते इंदौर