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बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की ज़रूरत होती है

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सत्य वीर सिंह

आज़ादी आन्दोलन की हमारी गौरवशाली क्रांतिकारी विरासत के अमर क्रांतिकारी सेनानी बटुकेश्वर दत्त का आज स्मृति दिवस है. ‘ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट’ तथा ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पास किए जाने के विरोध में 8 अप्रैल 1929 के दिन, शहीद ए आज़म भगतसिंह और उनके प्रिय साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली असेंबली में बम फेंके थे, पर्चे गिराए थे और गिरफ़्तारी दी थी. उसमें उन दोनों क्रांतिकारियों को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी. 

 मेरठ षडयंत्र मामला (Meerut Conspiracy Case)

लोगों, खासतौर पर मज़दूरों के अधिकारों को कुचलने वाले दो कानूनों, ‘ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट’ तथा ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’, को लाने की वज़ह थी, मेरठ षडयंत्र मामला. कॉमरेड लेनिन द्वारा प्रस्थापित, तीसरा कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (Commintern) दुनियाभर में मेहनतक़श अवाम में लोकप्रिय होता जा रहा था, सर्वहारा वर्ग 1917 की बोल्शेविक क्रांति से पूरी दुनिया में पूरे जोश में था. 1921 में इंग्लॅण्ड की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने दो साथियों, फिलिप स्प्रिट तथा बी एफ ब्रैडली को औपनिवेशिक भारत में कम्युनिस्ट आन्दोलन को मज़बूत करने और कोमिनटर्न की शाखा खोलने के उद्देश्य से भारत भेजा. उन्होंने यहाँ क्रांतिकारी मज़दूरों और किसानों के साथ मिलकर ‘वर्कर्स एंड पीजेन्ट्स पार्टी’ का गठन किया जिसका पहला अधिवेशन मेरठ में रखा गया. ख़ुफ़िया विभाग द्वारा ये सूचना मिलते ही अंग्रेजों के होश फाख्ता हो गए. उस अधिवेशन में छापा मारा गया जिसमें कुल 31 लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें उक्त दोनों अँगरेज़ कॉमरेड भी शामिल थे. उनपर मुक़दमा चला. उन पर बाकायदा ‘बोल्शेविक’ होने और भारत में ‘बोल्शेविक क्रांति’ लाने के प्रयास का आरोप लगा. उनके बचाव के लिए लड़ने वाले वकीलों के नाम थे, सर तेज़ बहादुर सप्रू तथा श्री के एन काटजू, जिनके अथक प्रयासों से उन क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं में किसी को भी फांसी नहीं हुई. मुकदमे का फैसला तो 1933 में आया लेकिन मुकदमे की कारवाही के दौरान जो हकीक़त सामने आई, उससे ना सिर्फ़ अँगरेज़ लुटेरों बल्कि देसी भूरे पूंजीपति लुटेरों के पेट में भी गुड़गुड़ शुरू हो गई थी जिसे शांत करने के लिए अँगरेज़ उक्त दोनों काले क़ानून लेकर आए. 

‘आज़ाद’ भारत में भी महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को ज़लील होना पड़ा. उनके आखिरी वक़्त में शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की माताश्री श्रधेय विद्यावती मौजूद थीं जो उन्हें अपने बेटे जैसा प्यार करती थीं. बटुकेश्वर दत्त की तमन्ना थी कि वे अपनी मौत के बाद अपने कामरेडों भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव साथ ही चिर-विश्राम करना चाहते हैं. इसलिए उनका अन्तिम संस्कार हुसैनीवाला के शहीद स्थल के बिलकुल साथ ही किया गया. 

*अमर स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त (18.11.1910- 20.07.1965) को उनकी स्मृति दिवस पर सादर नमन लाल सलाम*

*सत्य वीर सिंह*

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