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 आजादों के आजाद चंद्रशेखर आजाद

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मुनेश त्यागी

1921 के असहयोग आंदोलन में 15 साल के सत्याग्रही से अदालत ने सवाल किया कि तुम्हारा क्या नाम है? इस पर इस सत्याग्रही बालक ने जवाब दिया था,,,,, आजाद, पिता का नाम,,, स्वाधीनता, और घर,,,, जेलखाना. इन जवाबों से चिढकर,मजिस्ट्रेट ने इस बालक को 15 बेंतों की सजा दी थी, तो हर बेंत लगने पर इस बालक ने” महात्मा गांधी की जय” का नारा लगाया था. यही बालक आगे चलकर आजाद नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ. इनका नाम चंद्रशेखर आजाद था. जंगेआजादी के दौरान आजाद का संबंध मेरठ से भी रहा है क्योंकि काकोरी कांड के बाद वे मेरठ के वैश्य अनाथालय में भी आये थे।
मध्य प्रदेश के भावरा ग्राम में 23 जुलाई 1906 को पैदा हुए इस बालक की मां का नाम जगरानी देवी और पिता का नाम पं सीताराम तिवारी था. 1922 में यह बालक क्रांतिकारी पार्टी में प्रवेश करता है.अपनी लगन, अनुशासन और भारत को आजाद कराने के लक्ष्य के कारण हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ के चेयरमैन, नौ साल तक फरारी का जीवन व्यतीत करते हैं और अपने दल के उद्देश्यों को अबाध गति से आगे बढ़ाते हैं. उनकी समझबूझ, सतत चौकसी, और सतर्कता उन्हें आजाद रखती है और वे कभी भी अंग्रेजों के हाथ नही आये और अंततः 27 फरवरी 1931 को ऐल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में अंग्रेजों के जंग करते हुए भारत माता की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
महान क्रांतिकारी और महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद, स्पष्टवादी, कट्टर सिध्दांतवादी और तय किये गये फैसलों को सख्ती से लागू कराने वाले सेनापति थे. उनका कहना था कि हमारा दल आदर्शवादी क्रांतिकारियों का दल है, देशभक्तों का दल है हत्यारों का, डकैतों का नही। उनके दिल में समस्त मानवजाति के लिए श्रध्दा और आदर का अगाध भंडार था। वे सशस्त्र क्रांति के रास्ते पर थे. उनकी क्रांति का उद्देश्य मानव मात्र के लिए, सुख और शांति का वातावरण तैयार करना था। वसुघैवकुटुम्भकम ही उनका उद्देश्य था। वे किसी व्यक्ति विशेष के विरोधी नही थे।
आजाद की मान्यता थी कि जिसकी आंखों में सबके लिए आंसू नही और जिसके दिल में सबके लिए प्यार नही, वह शोषक और अन्यायी व अत्याचारी से घृणा भी नही कर सकता और अंत तक उससे जूझ भी नही सकता। वे आला दर्जे के संगीत प्रेमी थे।
आजाद सबसे ज्यादा पढने लिखने का आग्रह करते थे, कार्ल मार्क्स का कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो, उन्होंने अपने साथी शिववर्मा से शुरू से आखिर तक सुना था .वे उस समय के सवालों और सैध्दांतिक सवालों पर हुई बहसों में जमकर हिस्सा लेते थे. शोषण का अन्त, मानव मात्र की समानता और वर्ग रहित समाज की कल्पना आदि समाजवाद की बातों से वे मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। आजाद अपने को समाजवादी कहलाने में सबसे ज्यादा फक्र मेहसूस किया करते थे।
उन्होंने गरीबी, भुखमरी, मजदूरों और मेहनतकशों की दुर्दशा अपनी आंखों से देखी, समझी और सहन की थी ,अतः इनके खात्मे के लिए वे अपने विचारों में दृढतम थे। इसी कारण वे मजदूरों और किसानों के राज्य के सबसे बड़े हिमायती थे। आजाद अपने दल के सेनापति ही नही बल्कि अपने समाजवादी परिवार के अग्रज भी थे, अतः अपने साथियों की दवाई, कपड़ों, जूतों, पैसे, हथियारों आदि छोटी छोटी जरूरतों का ध्यान रखते थे।
वे फासीवाद और साम्राज्यवाद के कट्टर दुश्मन थे। वे मानते थे कि फासीवाद क्रांति के पहियों को पीछे खींचता है और साम्राज्यवाद की सत्ता और ताकत को मजबूती प्रदान करता है और जनता की आंखों में धूल झोंककर पूंजीवाद को मरने से बचाता है। फासीवाद, पूंजीवाद और साम्राज्यवादी व्यवस्था का विनाश करके समाजवादी गणतंत्र कायम करना उनके जीवन का परम उद्देश्य था. वे ताउम्र इसी ख्वाब के लिए जिये और इसी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
आजाद और उनके हिन्दुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ के तमाम सदस्य, अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों की हकीकत को जान पहचान गये थे। इसीलिए उनके नारे बदल गए थे जैसे “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” और “इंकलाब जिंदाबाद.” वे भारत की जनता का कल्याण व्यवस्था के क्रांतिकारी परिवर्तन के बाद किसानों मजदूरों की राजसत्ता और सरकार में देखते थे। वे साम्राज्यवादी निजाम का पूर्ण खात्मा करना चाहते थे, इसीलिए भगतसिंह और उनके साथी खुलेआम और अदालत में साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद जैसे नारे लगाते थे।
साम्राज्यवाद, कैसे फासीवादी मानसिकता और नीतियां हासिल कर लेता है, इसका अंदाज उन्हें था। फासीवाद जनता को गाफिल कर देता है, जनता को अपने कल्याण की नीतियों से दूर ले जाता है, भाई को भाई से लडाता है, उसके सोचने की शक्ति में घुन लगा देता है, उसकी एकता को पूरी तरह से नेशनाबूद कर देता है और उसे पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का आसान शिकार बना देता है। उनकी और उनके साथियों की दूर दृष्टि कितनी गजब की और सटीक थी, उसका नमूना हम आज देख रहे हैं। फासीवाद किस जालिमाना तरीकों से साम्राज्यवाद की सेवा करता है और जनता को बांटकर आपस में लडवाता है, इसका बहुत ही सटीक नमूना हम आज अपने देश में देख रहे हैं, जिसे मोदी सरकार बखूबी अंजाम दे रही है और जनता की एकता तोड़कर देश और दुनियाभर के लुटेरे पूंजीपतियों की मदद कर रही है और भारत को उनका एक चारागाह बना दिया है।
परिस्थितियों, साजिश, बेइमानी ,मुकबरी और घात का खेल देखिये की आजाद के पिताजी का नाम पं सीताराम तिवारी था. दल का यानी,,, एच एस आर ए,, के चंदे का पैसा, उन्हीं के दल के परिचित वीरभद्र तिवारी के पास जमा था, अपनी गतिविधियों के अंजाम देने के लिए शहीद आजाद यह पैसा लेने ही वीरभद्र तिवारी के यहाँ गये थे और एलफ्रेड पार्क में इंतजार कर ही रहे थे कि पैसा तो आया नही, अंग्रेजों की पुलिस जरूर आ गयी, जिससे आजाद को अकेले ही लडना पडा और लडते लडते वीर गति को प्राप्त हो गए। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अंग्रेज जीते जी, आजाद को हाथ न लगा सके, वे शहीद होने तक “आजाद” ही रहे।
यहां पर यह जानना भी जरूरी है कि जिस हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के चंद्रशेखर आजाद अध्यक्ष और कमांडर इन चीफ थे, वह क्या चाहती थी, उसके क्या उद्देश्य और लक्ष्य थे? और इसी के साथ साथ उसके तमाम सदस्य और हमारे दूसरे शहीद क्या चाहते थे? यहां पर यह जानना सबसे जरूरी है कि हिंदुस्तानी समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के समस्त सदस्य कैसे देश का नजारा देखते थे, कैसे समाज का नजारा देखते थे? आइए जानें कि हमारे शहीद और चंद्रशेखर आजाद के सारे साथी कैसे देश का और समाज का नजारा देखते थे। वे चाहते थे कि,,,
जहां न भूख हो, न नग्नता हो
जहां न गरीबी हो, न अमीरी हो
जहां ने जुल्म हों, न अन्याय हो
जहां प्रेम हो, एकता हो
जहां इंसाफ हो, आजादी हो
जहां सुंदरता हो, जहां सुख हो
समता हो और समानता हो।

इसी के साथ यानी हिंदुस्तानी समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के उद्देश्य भी कमाल के थे। आइए जाने उनके क्या उद्देश्य थे? उनके उद्देश्य थे,,,,
,,सशस्त्र क्रांति द्वारा गणराज्य की स्थापना,
,,शोषण आधारित व्यवस्था का खात्मा,
,,विश्व में मेलजोल कायम हो,
,,किसानों मजदूरों की एकता हो,
,,राष्ट्रीय मुक्त के लिए क्रांति हो,

प्रकृति की देन पर और प्राकृतिक संसाधनों पर सबका अधिकार हो और इनका प्रयोग पूरे के पूरे हिंदुस्तानियों के विकास के लिए किया जाए, चंद धन्ना सेठों के विकास के लिए ही नही,

,,पंचायती राज्य कायम हों,

,,गुलामी का खात्मा हो, 

,,हिंदू मुस्लिम एकता हो,

,,राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप ना हो और 

,,आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक असमानता का खात्मा हो।

     आज आप देखिए, उनके जो उद्देश्य आज से 100 साल पहले थे, वे आज भी प्रासंगिक है। उन उद्देश्यों को आज भी अमल में उतारना जरूरी है, तभी हमारा देश असलियत में आजाद होगा और तभी यह देश एचएसआरए के सदस्यों का और हमारे शहीदों  के सपनों का देश होगा।

       आज जब हम देखते हैं कि यह चंद्रशेखर आजाद के सपनों का हिंदुस्तान नही है। यहां का फासीवादी और पूंजिवाद का गठजोड़, लुटेरी राजसत्ता और  देशी विदेशी पूंजीपतियों लुटेरों का खैरख्वाह बना हुआ है। अब यह भारत की जनता, किसानों, मजदूरों, नौजवानों और विद्यार्थियों का गणराज्य नहीं रह गया है। यह सब देखकर ही, आजाद के सपनों के सामने शीश नवाना ही पडता है। आज उस अमर स्वतंत्रता सेनानी के सपनों  पर चलना और उन्हें पूर्ण करना, यहां के मजदूरों, किसानों, छात्रों और नौजवानों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, तभी आजाद के सपनों का भारत बन सकता है, तभी उन्हें हजारों साल पुराने अन्याय, गुलामी, शोषण, जुल्मो सितम, अत्याचार और भेदभाव से मुक्ति मिल सकती है, निजात मिल सकती है।

    लगभग 100 साल के बाद भी यह बात पूरे इत्मीनान और यकीन के साथ कहीं जा सकती है कि लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था, जनता के दुख दर्द को दूर नहीं कर सकती, उनकी परेशानियों का हल उसके पास नहीं है और उनकी समस्याओं का हल और समाधान केवल और केवल क्रांति द्वारा स्थापित समाजवादी व्यवस्था और विचारधारा में है। 

    आज हम सबका यही सबसे बड़ा कर्तव्य है कि हम चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के कार्यक्रम और विचारों पर चलकर, एक नए समाजवादी भारत का निर्माण करें, तभी शहीदों के सपनों का भारत बन सकता है और तभी भारत के अरबों गरीब लोगों को, हजारों साल पुराने दुख दर्द, परेशानियों, अन्याय, शोषण, जुल्म ओ भेदभाव से मुक्ति मिल सकती है और भारत में एक सच्चे समतावादी, समानतावादी, संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, गणराज्य की स्थापना की जा सकती है।  आजाद की याद में हम तो यही कहेंगे,,,, 

हर सितम का हिसाब  लेके उठो

फैसलाकुन  जवाब   लेके   उठो, 

खुद बदल जायेगा निजामे कुहन, 

कुव्वते   इंकलाब   लेके     उठो।

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