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अधर्म का नाश हो*जाति का विनाश हो* (खंड-1) – (अध्याय-21)

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संजय कनौजिया की कलम”

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    आज इंटेरनेट के युग में सोशल मीडिया के द्वारा धर्मांतरण के पश्चात बौद्ध धर्म में लोग खूब तर्रक्की कर रहें है, अन्य धर्मो के मुक़ाबले तेजी से आगे बढ़ रहें हैं..इस तरह की बाते खूब बताई और दिखलाई जाती है..जबकि यह सब अनर्गल हैं, यह केवल, एक  विशेष प्रकार का प्रचार प्रोपेगेंडा है..शिक्षा व स्त्री को लेकर कुछ स्थिति जरूर सुधरी है, जैसे भूर्ण हत्या पर बौद्ध धर्म में किसी भी तरह की स्वीकार्यता नहीं है, तो नव-बौद्ध नारीयों की संख्या का अनुपात हिन्दू दलित नारियों से, बेहतर हुआ है और नव-बौद्ध पुरुषों के मुक़ाबले, मामूली कम पर है..शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया गया है तो हिन्दू दलित वर्ग से संख्या के अनुपात के आधार पर आंकड़ों में कुछ आगे दिखाई देना शुरू हुए हैं..चूँकि महाराष्ट्र बौद्ध धर्म के पुनर्स्थापन का केंद्र रहा है और नव-बौद्धों की संख्या भी सबसे ज्यादा इसी राज्य में है, अतः में महाराष्ट्र को ही केंद्र में रखकर बात रखना चाहूंगा, जिससे पूरे देश की स्थिति स्पष्ट हो सके..!          

नव-बौद्धों को 1992 में, अल्पसंख्यक वर्ग में स्थान दिया गया था, अतः केंद्र सरकार द्वारा इनको आयोग से केवल सांस्कृतिक मामलों में ही, और स्कूल-विश्विद्यालय के भवन निर्माण तक की मदद का प्रावधान है..किसी भी तरह की सामाजिक और शिक्षण क्षेत्र में केंद्र सरकार की और से कोई मदद नहीं है..देश के राज्य की केवल महाराष्ट्र सरकार ही, नव-बौद्धों की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देती हैं, लेकिन एक दायरे में, अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार..बहुत बड़ा तबका कामगार है लेकिन बौद्ध लिखता है परन्तु महाराष्ट्र के अलावा आरक्षण का लाभ कहीं नहीं मिलता है.

.एजुकेशन आरक्षण बहुत जरुरी है आज इंजीनियरिंग में ढाई से तीन लाख और मेडिकल में पांच से छह लाख रुपए फीस है..यदि आरक्षण होता तो इन्हे शिक्षा में केंद्र से सरकारी मदद मिल सकती थी..अब बौद्धों की वजह से महाराष्ट्र में जो गंभीर समस्या अन्य हिन्दू दलितों के लिए खड़ी हो रही है वह चिंता पैदा करती है..जन-संख्या के आधार पर किसी समुदाय का प्रतिशत तय होता है जैसे कि महाराष्ट्र में 65 लाख के लगभग नव-बौद्धिष्ट हैं और म्हार या अन्य हिन्दू दलित जातियां 80 लाख के लगभग हैं..इसप्रकार बौद्धिष्ट लोगों का महाराष्ट्र की जनसँख्या का कुल अनुपात, 11 प्रतिशत हुआ और अन्य 59 हिन्दू दलित जातियों का 16 प्रतिशत हुआ..इसी तरह केंद्र सरकार द्वारा दलित वर्गों के लोगों के उत्थान के लिए एक विशेष फण्ड होता है जो (अनुसूचित जाति कल्याणकारी योजना, आर्थिक सहायता)..करोडो रुपया इसमें इसीलिए कम हो गया कि महाराष्ट्र में हिन्दू दलित आबादी घट रही है..और वह फण्ड, हिन्दू दलित उत्थान हेतू महाराष्ट्र सरकार तक बहुत कम पहुँच पाता है..जिसके कारण महाराष्ट्र में, हिन्दू दलित वर्ग का कोई विशेष उत्थान नहीं हो पा रहा..इसी तरह महाराष्ट्र में ग्राम पंचायत में आरक्षित सीट कम कर दी गई..जहाँ नव-बौद्धिष्ट तो हैं लेकिन हिन्दू दलित की संख्या का अनुपात का पैमाना घट गया, अतः उन सीटों को आरक्षित से सामान्य बना दी गई जिसके कारण उन क्षेत्रों में दलित सुधार परियोजना नहीं आ पाई..जबकि जनगणना का फॉर्मेट, केंद्र सरकार का होता है और जनगणना में दलित जातियों का जाति का कॉलम है लेकिन पिछड़ों का नहीं, उसी प्रकार नव-बौद्धों के कालम में केवल उनके धर्म का परिचय पूछकर कॉलम भरा जाता है जबकि जरुरी है कि उनकी जाति का कॉलम भी भरा जाए ताकि दलितों की संख्या का अनुपात बराबर बना रहे..परन्तु बौद्ध बन जाने के कारण इस धर्म में जाति खत्म हो जाती है अतः वह स्वयं जाति का उल्लेख करना ही नहीं चाहते जैसे डॉ० विजय गायकवाड़ ने अपने (UPSC) के चयन में स्वाभिमानी होने का परिचय देकर किया जिसका उल्लेख में अपने (खंड-1) के (अध्याय-20) में कर चुका हूँ..केवल 20-25 प्रतिशत नव-बौद्धों का कहना है कि फॉर्मेट में हमे केवल अनुसूचित जाति वर्ग का बताया जाए ना की अनुसूचित में किस जाति के उल्लेख से, बांकी 75 से 80 प्रतिशत अनुसूचित जाति का कहना भी पसंद नहीं करते..दरअसल नव-बौद्ध को लगता है कि जब सुप्रीम कोर्ट की दो बेंचों ने भी धर्मान्तरण के बावजूद आरक्षण सुरक्षित रहने की व्यवस्था पर जजमेंट दिया है, तो हमे आरक्षण क्यों नहीं मिलता..लेकिन बाबा साहब द्वारा रचित संविधान की व्याख्याओं को नव-बौद्ध समझे बगैर ही अपनी बातों को बल देते हैं..और वह सुप्रीम कोर्ट की दो बेंचो के जजमेंट का हवाला देते है, वह कोर्ट की संवैधानिक व्यवस्था के अनुच्छेद 342 के जिक्र से सम्बंधित जजमेंट है, जिसमे यह अधिकार केवल “अनुसूचित जन-जाति” (S/T) वर्ग के समुदायों तक ही सीमित है, और यह व्यवस्था है कि (S/T) किसी भी धर्म में जाए उसका आरक्षण बरकरार रहेगा लेकिन (S/T) वर्ग के लोग धर्मांतरण के उपरान्त बौद्धिष्ट नहीं बल्कि ईसाई बने हैं..जबकि दलित आरक्षण के सुरक्षित रखने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 341 में रखी गई है..लेकिन संविधान के अनुच्छेद  366/ उप-अनु०/24, में व्याख्या है कि राष्ट्रपति ने जिन्हे सूची में डाला है वही अनुसूचित जाति (S/C) मानी जायेगी..!        

         देश में नव-बौद्धों की संख्या कागजों में 80 लाख के लगभग आंकी गई है जिसमे अकेले महाराष्ट्र में ही 65 लाख के लगभग हैं, फिर मध्यप्रदेश, कर्णाटक, उत्तर प्रदेश, नार्थ ईस्ट जिसमे सिक्किम में अधिक, लद्धाख, बिहार, हिमाचल, उत्तराखंड और कुछ झारखण्ड, छत्तिश्गढ़ आदि में मिलते हैं..जबकि प्रावधान है कि देश की राज्य सरकारें, अपने राज्य अनुसार केंद्र सरकार को जो अनुसूचित जाति में आतें हैं, उनकी सूची भेजे और बताये की धर्मान्तरण के उपरान्त नव-बौद्ध इन जातियों के, अनुसूचित-जाति के माने जाते हैं..अतः इन्हे आरक्षण दिया जाए..अब समझने वाले समझ लें कि नव-बौद्धों की दशा सरकारी आधार पर कैसे सिदृढ़ हो सकेगी ?..बाबा साहब के बाद दलित हितों की रक्षा के लिए 1970 के दशक से धीरे-धीरे नए नेताओं का उद्धभव होना शुरू हुआ..जबकि उस काल में जगजीवन राम दलित नेता थे लेकिन तब वह कांग्रेस की ब्रहामणवादी सोच के आगे विवश रहते थे..बाद में रामविलास पासवान, कांशीराम, रामदास अठावले आदि नेता सामने आने शुरू हुए…

*धारावाहिक लेख जारी है*

(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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