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जनपक्षीय पत्रकारिता कोई फूलों का सेज नहीं है

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तन्हा सेल में रखे गए हैं जनपक्षीय पत्रकार रूपेश कुमार सिंह

इलिका प्रिये

रूपेश जी ने यह ठीक ही कहा था जब पीछले साल पेगासस जासूस मामले में उनका नाम आया था। हम इसे प्रूफ होता लगातार 17 जुलाई 2022 से देख सकते हैं, हमनें देखा किस तरह से एक जमीनी पत्रकारिता करने वाले पत्रकार के घर में बिल्कुल सुबह 5:25 बजे भारी संख्या में पुलिस फोर्स पहुंचती है, बड़ी विनम्रता के साथ वे सर्च वारंट दिखाकर पूरे घर का समान उथल पुथल कर देती है और अंत में अपनी धोखेबाज नीति के तहत अरेस्ट वारंट दिखाकर एक पत्रकार को अपने साथ ले जाती है  जिस अरेस्ट वारंट को उन्हें पहले दिखाना चाहिए था। कहने को और दिखाने को तो वे सरायकेला खरसावां की पुलिस रहती है पर उसी छल नीति के तहत उनके पीछे आईबी, एसआईबी, एनआईए की टीम घुसी रहती है जो बाद में पूछताछ भी करती है।  /

27 घंटे के बाद कोर्ट में पेश करने के बाद जब जेल भेजा जाता है तब एक अज्ञानी इंसान की तरह जेल प्रशासन उन्हें उनलोगों के बीच रख देता है जो टीबी, हेवेटाइटस बी, और कुष्ठ रोग जैसी संक्रामक बिमारी से ग्रसित है गोया इन्हें उन बिमारियों के संक्रामण की कोई जानकारी ही न हो हमारे आब्जेक्शन करने का उन्हें इंतजार करना पड़ा। 

खैर फिर चार दिन का रिमांड.. और उसके बाद शनिवार 23 जुलाई  से जेल में.. लेकिन अबकी जब वे जेल गए जेल प्रशासन पूरी जागरूक हो गई है, इसलिए अब उन्हें ऐसी जगह रखा गया जहां एक भी इंसान नजर न आए, जेल प्रशासन का कहना है कि उन्हें कोरेंटाइन में रखा गया है, अगर यह सच भी है तो कारेंटाइन के लिए उन्हें ऐसी जगह रखा गया है जहां दूर दूर तक एक भी इंसान नजर नहीं आते, चाहे तो हम उसे तन्हां सेल भी कह सकते हैं, कैदी उन्हें भूतबंगला कहते हैं। बहुत पहले वह महिला वार्ड था पर अब जर्जर स्थिति में हैं। बिना इंसानी दुनिया के सामाजिक प्राणी का एकदम तन्हा रहना कितना मुश्किल हो सकता है हम समझ सकते हैं, उस जगह पर रूपेश जी को 15 दिनों तक रखा जाएगा या आगे भी हमें पता नहीं। 

साथी ही खाने की भी व्यवस्था भी बिल्कुल खराब है जेल मेन्युअल के हिसाब से कुछ नहीं है साथ ही क्वालिटी भी एकदम खराब है।

जेल प्रशासन के इस मुश्तैदी के, कोरेंटाइन के तरीके के पीछे का सच हम समझ सकते हैं। एक जनपक्षधर पत्रकार पर झूठे आरोप लगाकर उसके मस्तिष्क के साथ मानसिक प्रताड़ना का यह खेल हम समझ सकते हैं। जब पुलिस प्रशासन सत्ता के इशारे पर एक पत्रकार पर झूठे आरोप लगाकर, कुख्यात नाम देकर, एक बड़े अपराधी की तरह व्यवहार करके भी उसकी हिम्मत को ,अपनी लेखनी के प्रति ईमान को, साहस को न तोड़ सकी तो मानसिक तनाव पैदा करने के ऐसे तरीके अपना रही है। आगे और क्या तरीके अपनाए जाएंगे हम वे भी देखने को तैयार हैं। 

हम देखेंगे कि विचारों से, कलम से डरी सत्ता किस हद तक गिर सकती है और अपनी छल नीति को कब तक नियम कानून के आवरण में छुपा सकती है।  

क्योंकि हमें उम्मीद है हमें हमेशा ऐसा ही नहीं देखना पड़ेगा।  वह दिन भी आएगा जब इस छल का पर्दाफाश हो जाएगा, हम  अपने इन जनपक्षधरों को आजाद देखेंगे, इन्हें प्रताड़ित करने वाले को सजा का हकदार देखेंगे, तमाम पक्षधरों को वाकई में स्वतंत्र देखेंगे, उम्मीद है वह सुबह कभी तो आएगी। वह सुबह हमीं से आयेगी। 

अपने साथी रूपेश कुमार सिंह की लेखनी पर हमें गर्व है, और हम उनके और उनके जैसे तमाम जनपक्षधरों की रिहाई के लिए आवाज और बुलंद करेंगे।

*इलिका प्रिये*

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