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 “क्रांति” से ही देश का कल्याण हो सकता है

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मुनेश त्यागी 

     क्या इंकलाब यानी क्रांति, आक्रामक और उकसाने वाले शब्द हैं? क्या ये शब्द हिंसा, हंगामा और उपद्रव करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं? पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने भाषण में कहे गए शब्दों इंकलाब और क्रांति को आपत्तिजनक माना है और कहा है कि ये दोनों शब्द आक्रामक और उकसाने वाले हैं। अदालत की टिप्पणी अभूतपूर्व और हैरान करने वाली है। अदालत की यह मान्यता सामाजिक विकास, इतिहास, अर्थशास्त्र और राजनीतिक शास्त्र के विश्वविख्यात विचारों और मान्यताओं के बिलकुल खिलाफ है। अदालत के इन विचारों को एकदम प्रतिगामी और क्रांति विरोधी ही कहा जा सकता है।

     क्रांतियां यानि सामाजिक परिवर्तन मानव इतिहास का नियम है। बिना क्रांतियों के यानी सामाजिक परिवर्तन के, समाज आगे नहीं बढ़ सकता अगर सामाजिक परिवर्तन होते न तो आज पूरा समाज आदिम साम्यवादी व्यवस्था में ही जीता रहा होता। समाज परिवर्तन के द्वारा ही मानव आदिम साम्यवाद, गुलाम दास व्यवस्था, सामंती व्यवस्था और पूंजीवादी व्यवस्था से होता हुआ आधुनिक समाज की सबसे विकसित और सबसे ज्यादा मानवीय व्यवस्था वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था को देख पाया है।

     दुनिया में सबसे पहले विश्व विख्यात फ्रांसीसी क्रांति का नाम आता है जो सामंतवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके पूंजीवादी क्रांति के रूप में पूरी दुनिया में मशहूर हुई थी। उसके बाद 1848 में मार्क्स और एंगेल्स, दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” की रचना करते हैं और दुनिया को बताते हैं पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण, अन्याय, गैर बराबरी और भेदभाव से परेशान होकर, किसान मजदूर एकजुट होकर, इस मानव विरोधी व्यवस्था का अंत, क्रांति यानी इंकलाब के द्वारा ही करेंगे और इसके बाद जो व्यवस्था जन्म लेगी उसे समाजवादी व्यवस्था कहा जाएगा।

    मार्क्स और एंगेल्स के विचारों को सबसे पहले 1917 में महान लेनिन और रुस की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में रूस में, किसानों और मजदूरों ने एकजुट होकर, रूसी जार की जनविरोधी शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंका और दुनिया में सबसे पहली समाजवादी क्रांति को जन्म दिया। दुनिया के इतिहास में सबसे पहले किसान और मजदूरों का राज कायम किया, उनकी सरकार और सत्ता कायम की और मजदूरों किसानों को अपना भाग्य विधाता बनाया। इस क्रांति ने दुनिया में सबसे पहले जनता को बुनियादी अधिकार मोहिया कराएं। सबको शिक्षा, सबको काम, सबको स्वास्थ्य, सबको घर दिए गए, प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पूरी जनता के विकास के लिए किया गया।

     इसके बाद पूरी दुनिया में इंकलाब यानी क्रांतियों का तांता लग गया। चीन, वियतनाम, कोरिया, पूर्वी यूरोप के देश और क्यूबा समेत दुनिया में क्रांतिकारी समाजवादी व्यवस्था कायम हो गई और दुनिया में हजारों साल के शोषण, अन्याय, अत्याचार, भेदभाव और गैरबराबरी को देश निकाला दे दिया गया और इन तमाम देशों में समता, समानता, न्याय, बराबरी भाईचारा और आपसी सौहार्द के समाज की स्थापना की गई। यह सब इंकलाबी और क्रांतिकारी नीतियों की बदौलत ही संभव हो पाया और बहुत सारे देशों से सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा और विनाश किया गया और किसानों मजदूरों की सरकार और राजसत्ताएं कायम की गई।

     भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में “हिंदुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ” के सदस्यों ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में, इंकलाब यानी क्रांति को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया। भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी शहीद, शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपने लेखों में और अदालत में दिए गए बयानों में, इंकलाब यानी क्रांति को परिभाषित किया है। आइए देखें क्रांति से उनकी क्या मुराद थी। भगत सिंह का कहना था कि हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रांति से है जो मानव द्वारा मानव के शोषण का अंत कर देगी। वे आगे कहते हैं क्रांति के लिए खूनी लड़ाई जरूरी नहीं है और वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है। हमारा अभिप्राय है कि अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करना।

       वे कहते हैं कि क्रांतिकारियों का कर्तव्य है कि वे मार्क्सवादी सिद्धांतों पर आधारित समाज का पुनर्गठन करें, निर्माण करें। वे कहते हैं कि  क्रांति से प्रकृति स्नेह करती है जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती, क्रांति ईश्वर विरोधी तो हो सकती है लेकिन मानव विरोधी कतई नही। क्रांति एक नियम है, एक आदेश है, एक सत्य है, इसके बिना सुव्यवस्था, कानूनपरस्ती, शांति और प्यार स्थापित नहीं किया जा सकता। वे आगे कहते हैं क्रांति कुछ लोगों के विशेषाधिकार खत्म कर देगी। क्रांति से ही देश को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी मिलेगी। वे आगे कहते हैं क्रांति का अर्थ है मौजूदा सामाजिक ढांचे में पूर्ण परिवर्तन करके समाजवादी व्यवस्था करना। हम सरकारी व्यवस्था और मशीनरी अपने हाथों में लेना चाहते हैं और नए ढंग की सामाजिक रचना यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना चाहते हैं।

     भगत सिंह कहते हैं कि क्रांति करना, एक आदमी के बस की बात नहीं है। यह सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से पैदा होती है और जनता को उसके लिए तैयार करना होता है। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में, आम जनता ही, किसान मजदूर और मेहनतकश ही क्रांति करते हैं। समाजवादी सिद्धांतों के बारे में जनता को सचेत बनाने के लिए सादा और स्पष्ट लेखन बहुत जरूरी है। वे आगे कहते हैं क्रांति पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है जिसमें लोग आपस में मिलजुल कर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आजाद हो जाएंगे। यह भी बेहद अहम बात है कि हमारे शहीदों के इन्हीं विचारों को, आजादी के बाद भारतीय संविधान में शामिल किया गया।

     और आज देखिए, भारत और पूरी दुनिया में सबसे मुख्य अंतर्विरोध, पूंजीवाद और समाजवाद के बीच में ही है। पूरी दुनिया की जनविरोधी ताकतें,,, पूंजीपति, सामंती, जातिवादी, सांप्रदायिक, धर्मांध, अपराधी, फासीवादी और भ्रष्टाचारी ताकतें, समाजवादी समाज और इंकलाबियों यानी क्रांतिकारियों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती हैं।

    भारत को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए हैं आजादी के बाद भारत में पूंजीवादी राज्य की व्यवस्था की गई। पूंजीवादी व्यवस्था को अपनाया गया और आज इस व्यवस्था का हाल यह है कि आज हमारे देश में 77 फ़ीसदी लोगों की आमदनी ₹20 पर डे भी नहीं हैं। वर्तमान सरकार खुद ही मान रही है कि हमारे देश में 80 करोड़ से ज्यादा लोग विद्यमान हैं। हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा बीमार, सबसे ज्यादा बेरोजगार, सबसे ज्यादा पीड़ित, वंचित, अभावग्रस्त और भूखे लोग हैं। आजादी के 75 वर्षों के बाद भी भारत में आर्थिक असमानता दुनिया में सबसे ज्यादा तेज गति से बढ़ रही है। आज यहां 1 परसेंट बनाम 99 परसेंट की लड़ाई है। इस स्थिति को देखते हुए हम कह सकते हैं की पूंजीवादी व्यवस्था के पास, भारत की जनता की बुनियादी समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। भारत की जनता को उसकी बुनियादी समस्याएं दिलाने के लिए, उसको रोजी रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य की सुविधाएं देने के लिए, इंकलाब यानी क्रांति की जरूरत है, समाजवादी व्यवस्था की जरूरत है।

     हमारा दृढ़ विश्वास और कहना है कि दुनिया और हमारे देश में फैले अन्याय, शोषण, बेरोजगारी, गरीबी, गैरबराबरी, जुल्मों सितम, युद्ध और सारी की सारी पूंजीवादी व्यवस्था, दुनिया के लोगों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनके रहते दुनिया में अमन चैन और शांति कायम नहीं हो सकती। हम यहीं पर पूरी दृढ़ता के साथ कहेंगे कि इंकलाबी यानी क्रांतिकारी लोग ही, पूरी दुनिया में समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी समाज और आपसी भाईचारा स्थापित करना चाहते हैं और यह सब केवल और केवल इंकलाब यानी क्रांति से ही संभव है।

      और हम माननीय और सम्मानित न्यायमूर्ति साहब से कहना चाहते हैं कि केवल और केवल  इंकलाबी यानी क्रांतिकारी ताकतें  ही शोषित, पीड़ित, वंचित और गरीब जनता को रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा और बुढ़ापे की पेंशन मुहैया करा सकते हैं और हम पूरे इत्मीनान के साथ कह सकते हैं कि समस्त इंकलाबी और क्रांतिकारी लोग ही, दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सच्चे दोस्त हैं।

     और योर ऑनर “इंकलाब और क्रांति” आक्रामक और भड़काने वाले शब्द नहीं हैं “इंकलाब यानी क्रांति” से ही यानी सामाजिक, समाजवादी परिवर्तन से ही, समाजवादी सरकार और सत्ता से ही और समाजवादी व्यवस्था अपनाने से ही, भारत की जनता की बुनियादी समस्याओं ,,,,, सबको शिक्षा, सबको काम, सबको रोटी, सबको मकान, सबको स्वास्थ्य, सबको रोजगार, सबको सामाजिक सुरक्षा और सबको बुढ़ापे की पेंशन का,हल हो सकता है।

       योवर ओनर, “इंकलाब यानी क्रांति” से ही हमारे मुल्क में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आजादी मिल सकती है, शोषण जुल्म अन्याय अत्याचार भेदभाव का विनाश किया जा सकता है और “इंकलाब यानी क्रांति” से ही पूरे देश में अमन, शांति, आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द कायम किया जा सकता है और “इंकलाब यानी क्रांति” से ही, देश में दिनों दिन बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता, प्राकृतिक संसाधनों की निजी व्यक्तियों के द्वारा लूट और देश की बर्बादी को रोका जा सकता है।

      हमारे देश को गरीबी, शोषण, रोज रोज बढ़ रही बेरोजगारी और बढ़ती असमानता से बचाने के लिए आज इंकलाब यानी क्रांति, इस देश के लिए छात्रों, नौजवानों, किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हो गए हैं। अब क्रांति यानी इंकलाब से ही इस देश को गर्त में जाने से, बचाया जा सकता है। इंकलाब यानी क्रांति जिंदाबाद।

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