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चंबल को थर्राने वाला डकैत जगजीवन….कसाई से ‘कठोर’ दिल, 151 ब्राह्मणों को मारने की कसम… 

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इटावा और भिंड जिले की सीमा पर एक गांव ललूपुरा चौरेला है। चकरनगर के पास बसे इस गांव में ही खूंखार दस्यु जगजीवन परिहार का जन्म हुआ था। जगजीवन पढ़ाई लिखाई में फिसड्डी था, जिस समय वह जवान हुआ, उस समय यमुना और चंबल के बीहड़ों में गुर्जर डकैतों की तूती बोलती थी। पुलिस डाकुओं के मूवमेंट के बारे में जानकारी जुटाने के लिए जगजीवन का उपयोग करने लगी। जगजीवन को पैसा मिलने लगा तो डकैतों के बारे में जानकारियां जुटाने के लिए गिरोह में भी जाने लगा।

इस दौरान कुछ पुलिस अधिकारी उस पर शक करने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि जगजीवन परिहार के खिलाफ कई केस दर्ज हो गए। इसके बाद तो जगजीवन डकैतों का अपहरण में सहयोग करने लगा। अपहरण के बदले में जगजीवन को मोटा कमीशन मिलता था। 2003 तक उसका बड़ा नाम हो गया था। जगजीवन परिहार उस इलाके का बड़ा दस्यु बन गया और जंगल उसका नया ठिकाना हो गया था। उसने अपनी जाति के लोगों के साथ मिलकर एक गिरोह बनाया। कुछ दिनों बाद उसने अपना बड़ा गिरोह खड़ा कर लिया।

जगजीवन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा
जगजीवन परिहार ने अपना गिरोह बना लिया था। जंगल में ठिकाना बनाने के बाद अपराध की दुनिया में उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इटावा, भिंड और मुरैना में उसके नाम की तूती बोलने लगी थी। जगजीवन के नाम से चंबल इलाके में लोग खौफा खाते थे। बात 13 मार्च 2007 की है। जगजीवन अपने कुछ साथियों के साथ मुरैना और भिंड के बॉर्डर पर स्थित गढ़िया गांव में डेरा डाले थे। मुरैना के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक हरि सिंह यादव को मुखबिर से सूचना मिली तो वे भारी पुलिस बल लेकर गांव पहुंच गए।

पुलिस ने जगजीवन को चारों ओर घेर लिया
गांव में डेरा डाले जगजीवन को मुरैना पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया। दोनों ओर से फायरिंग शुरू हो गई। भिंड से भी भारी पुलिस बल को गढ़िया गांव के लिए रवाना कर दिया गया। 18 घंटे तक चली मुठभेड़ में पुलिस के एक इंस्पेक्टर की शहादत हो गई जबकि तत्कालीन डीएसपी केडी सोनकिया भी घायल हो गए। वहीं, जगजीवन परिहार भी अपने 5 साथियों के साथ मारा गया।

युवक को जला दिया था जिंदा
ललूपुरा चौरेला के ग्रामीणों की मानें तो जगजीवन की गांव के ही एक व्यक्ति से रंजिश थी। आरोप था कि ये शख्स पुलिस से मिला हुआ है। 2005 में जगजीवन होली के दिन गांव में आ धमका और अपने दुश्मन को जिंदा आग में झोंक दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। किडनैपिंग के अलावा जगजीवन और उसका गिरोह 50 से ज्यादा हत्याओं में भी शामिल रहा। अकेले जगजीवन पर कुल मिला कर 5.75 लाख का इनाम था। उसके भाई परम सिंह, भारत और गिरोह के दूसरे सदस्यों पर घोषित इनामों को मिलाकर, यह गिरोह 15.5 लाख का इनामी था।

151 ब्राह्मण को मारने की खाई थी कसम
चंबल के बीहड़ों में अपना आतंक बरपाने वाले कुख्यात डकैत जगजीवन परिहार ने 151 ब्राह्मणों मारने की कसम खा ली थी। इसके बाद पूरे ब्राह्मण समाज में हड़कंप मच गया था। जगजीवन परिहार की वजह से चंबल अंचल के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ब्राह्मणों में दहशत फैल गई थी। ब्राह्मण समाज का विरोध जगजीवन परिहार ने ले लिया था। इसलिए ब्राह्मण समाज भी इस प्रयास में जुट गया था कि किसी भी तरह जल्द से जल्द जगजीवन परिहार का खात्मा हो।

जगजीवन ने साल 2005 में ललूपूरा चौरेला में खौफनाक खेल खेला था। इस भयानक हत्याकांड के बाद जगजीवन और उसके गिरोह के खिलाफ पुलिस ने अभियान तेज कर दिया था। आखिर में पुलिस ने एक संयुक्त मुठभेड़ में आतंक का सदैव के लिए खात्मा कर दिया।

स्कूल में चपरासी था जगजीवन
लोग बताते हैं कि जगजीवन परिहार शुरुआत में अपने गांव में ही एक स्कूल में चपरासी का काम करता था। स्कूल निर्माण के लिए जमीन उसके पूरखों ने दी थी। बताया यह भी जाता है कि गांव में उसे कुछ लोगों ने सताया था, इसके बाद वह डकैत बनने का फैसला लिया था।

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