अग्नि आलोक
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उनको आपने ताक़त सौंप दी…इसलिए वह लिंच कर रहे हैं.

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मयंक सक्सेना

लिंचिंग…अख़लाक़, पहलू, जुनैद, उना…वगैरह…से पहले शुरु हो चुकी थी…बहुत पहले…याद कीजिए…2012 के अंत का वक़्त…जब पहली बार मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के बेहद अश्लील पोस्टर सोशल मीडिया और व्हॉट्सएप वगैरह पर फैलना शुरु हुए थे…

इसके बाद 2013 में बाक़ायदा एलान हो गया कि भगवान ख़ुद चुनाव लड़ेंगे और प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे…और फिर ऑनलाइन लफंगों की सेना बना कर, उसे आईटी सेल का नाम दिया गया…और वह भगवान के ख़िलाफ़ बोलने वाले हर देशद्रोही को कांग्रेसी एजेंट बताने लगे…
स्त्री अधिकारों, बच्चों के अधिकारों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों, दलितों के अधिकारों, मनुष्य के अधिकारों की बात करने वाले हर व्यक्ति को गालियां दी जाने लगीं…उनको आपिया, कांग्रेसी, लिबटार्ड, कौमनष्ट, सिकुलर कहा जाने लगा…

2013 से 2014 में जाते वक्त मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की अश्लील तस्वीरें सोशल मीडिया पर हर जगह-जगह दिखती थी…चुटकुले अश्लील से हिंसक हो चले थे…अब कांग्रेस अकेला निशाना नहीं थी…निशाने पर आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आर जे डी, जे डी यू, समाजवादी पार्टी, वाम दल वगैरह हर पार्टी तो जाने दीजिए…अमर्त्य सेन तक थे…इनका हर समर्थक देशद्रोही ही नहीं था…वह, वो हर कुछ था, जिसके नाम पर उसे क़त्ल भी किया जा सके…लोकतंत्र की बात करने वाला हर व्यक्ति देशद्रोही होने लगा था…जबकि मज़े की बात ये थी कि ये चुनाव लड़ा भी लोकतंत्र की वजह से ही जा रहा था…

2014 से 2015 तक में ट्विटर पर न जाने कितनी महिलाओं को भद्दी-भद्दी गालियों से लेकर बलात्कार की धमकियां तक दी गई…ट्रॉल किया गया…ये करने वाले सत्ताधारी पार्टी के समर्थक भर नहीं थे, ये कार्यकर्ता, सदस्य, नेता तक थे…इनमें से कई को देश के प्रधानमंत्री ट्विटर पर फॉलो तक करते हैं.,..गिरिराज सिंह जैसों ने विरोध करने वाले हर शख्स को पाकिस्तान भेज देने का एलान कर दिया…

लेकिन काश कि ये सब भाजपा नाम की गुंडों की फौज कर रही होती…टीवी पत्रकारों ने भी ऐसा ही बर्ताव शुरु कर दिया…अर्णब गोस्वामी, अमीश देवगन, सुधीर चौधरी, रोहित सरदाना और अंजना कश्यप समेत तमाम पत्रकारों का ऑन स्क्रीन से लेकर सोशल मीडिया तक रवैया बेहद सामंती और आवाज़ बंद कराने वाला हो गया…

2013 के बीच, मोदी समर्थकों की ऑनलाइन सेना आती है और सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वाले हर व्यक्ति को गाली देकर, धमकी देकर, अपमानित कर के, हिंसक चुटकुले बाज़ी कर के और बदनाम कर के, उसकी आवाज़ का क़त्ल कर रही है…उसके ही लोग हैं अभिजीत और अनुपम खेर…यहां उसके का अर्थ मोदी सरकार मान लें…और मान लें कि ये भीड़ उसकी इजाज़त से ही ऐसा कर रही है…

सोशल मीडिया से लेकर टीवी की बयानबाज़ी में अनुपम खेर, परेश रावल से आम समर्थक तक, लगातार भीड़ बन कर आ रहे हैं और आवाज़ों का क़त्ल कर रहे हैं… Shruti Seth Aslam Arundhati Roy से लेकर GurMehar Kaur तक के उदाहरण आपके सामने हैं…ये भीड़ आती है और आपकी आवाज़ की हत्या करती है…आपके विचारों की हत्या करना चाहती है…लोकतंत्र की हत्या करना चाहती है…

क्या आप इसे लिंचिंग नहीं मानते…ये लिंचिंग ही है जनाब…बस इसमें आपको मारा नहीं जाता…लेकिन जब आवाज़ ही नहीं रहेगी, तो आप ज़िंदा रह के, कर क्या रहे हैं…ये लिंचिंग ही है…

आपको पता है कि इस लिंचिंग का अख़लाक़ से लेकर किसी भी लिंचिंग से बड़ा गहरा रिश्ता है…क्योंकि सड़क पर लिंचिंग करने वालों की हिम्मत, इस वर्चुअल दुनिया में लिंचिंग कर के ही इतनी बढ़ी है…क्योंकि यहां उसका कोई विरोध नहीं होता, इसलिए उसे लगातार हिम्मत मिलती है कि उसका कहीं कोई विरोध नहीं होगा…और वह पहले आवाज़ की हत्या, यहां करता है और फिर उसी उन्माद में पगलाया, सड़क पर निकल पड़ता है, अपनी खून की प्यास बुझाने…क्योंकि वे जानते थे कि जब ट्विटर पर वह बलात्कार और हत्या की धमकी दे कर भी बच गए…तो जो उनकी ट्वीट से डर गए…वह क्या खा के उनको कन्फ्रंट कर सकेंगे????

और आप क्या कर रहे थे…आप चुप थे…आप वह हिम्मत दे रहे थे, इस भीड़ को…जब वह सोशल मीडिया पर आपको या किसी और को लिंच कर रही थी…आप चुप थे कि ये सिर्फ बोल सकते हैं…नहीं साहब…बोलने की ताक़त से ही बाकी सारी हिम्मत भी आती है…चूंकि आप के पास वह नहीं रही…इसलिए आप लिंच हो रहे हैं…उनको आपने ताक़त सौंप दी…इसलिए वह लिंच कर रहे हैं…और बोल…बोल तो देश में सिर्फ एक आदमी रहा है…

उदय प्रकाश की एक कविता है…सोशल मीडिया लिंचिंग पर समझने की कोशिश कीजिएगा…

आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता.

आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता.

कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी
मर जाता है.

नहीं साहब, लिंचिंग सरकार आने के बाद नहीं शुरु हुई…लिंचिंग 2012 से चालू है…बस अब यह और बढ़ रही है…और क्योंकि आप चुप रहेंगे, इसलिए ये और बढ़ृेगी…एक दिन सब बोलने वाले मार दिए जाएंगे…और फिर चुप रहने वालों का नम्बर होगा.

सुनिए, आप सब मर क्यों नहीं जाते ?

मयंक सक्सेना

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