संजय कनौजिया की कलम”
दलितों के इन नेताओं ने इनके संघर्ष में बौद्ध केवल एक झांकी के रूप में, और बाबा साहब का चित्र आगे रखकर, दलितों की पीड़ा को कुरेद-कुरेद कर, “जय भीम” और “बाबा साहब अमर रहे” जैसे उद्धघोषों द्वारा सिर्फ सत्ता प्राप्ति को अपना ध्येय बनाया..और दलित नेताओं द्वारा ही दलित वर्ग के खूब इस्तेमाल होने के होड़ की परम्परा शुरू हो गई..सभी दलित नेता अपना-अपना हित साधने में लग गए..लेकिन ऐसा भी नहीं कह सकते की इन नेताओं ने कुछ किया नहीं, कुछ काम किये है जिनके कारण इन नेताओं को भी याद किया जाएगा बल्कि लोग याद करते भी हैं..इन्होने दलित वर्गों के लोगों को संगठित किया है उन्हें लड़ने का, बोलने का अपने हक़ अधिकारों को पहचानने का, जज्बा भरा है..परन्तु बाबा साहब की भांति नेक नियत और दलितों के प्रति ईमानदारी नहीं बरती..समझौते करते रहे और सत्ता में बने रहे..रामविलास पासवान और रामदास अठावले तो इन्ही तरह के समझौते करने के कारण जाने जाते हैं..सिर्फ एक शुद्ध राजनीतिक ऐतिहासिक समझौता, जो वर्ष 1993, में हुआ था..जिसे कह सकते हैं कि वो लम्बा या स्थाई होकर चलता तो शायद आज भारतीय राजनीति की दिशा कुछ और होती..और वह समझौता भी “डॉ० अंबेडकर और डॉ० लोहिया” के विचारों और दिखाई दिशा, और दोनों के अधूरे एजेंडे को पूरा करने के आधार पर ही था..जिन्हे कांशीराम और मुलायम सिंह ने किया था..सिर्फ एक कांशीराम ही जिनकी व्यापक और गंभीर सोच थी, जिनसे उम्मीद की जा रही थी कि वह अपनी सोच द्वारा, बाबा साहब के कुछ छूटे अधूरे काम को ईमानदारी से आगे बढ़ाएंगे..परन्तु उनकी प्रिय शिष्या मायावती ने वह ईमानदारी नहीं बरती..वह कांशीराम की तरह ईमानदार नेता तो साबित नहीं हुईं लेकिन दलित वर्ग की एक ख़ास जाति को एकजुट कर व मूर्ख बनाकर किसी बड़े पूंजीपति की भाँती सौदागर जरूर बन गई..जिनसे उनकी खास जाति का तो कोई भला हुआ नहीं लेकिन उनका व्यक्तिगत हित सधता रहा..वर्तमान में बड़े पैमाने पर उनसे जुडी वो खास जाति भी तेजी के साथ छिटक रही है, ताज़ा उदाहरण 2022 के विधानसभा चुनाव के परिणाम हैं..! जिसे दलितों की आवाज़ उठानी चाहिए थी, वह मायावती जमीन पर ना उतरकर केवल ट्विटर से विरोध जतातीं रही हैं..जिस तरह की निर्ममताओं से, दलित वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ है..सूबे का दलित वर्ग आज भी हाथरस काण्ड को नहीं भूला, जहाँ एक नाबालिक लड़की का गैंग-रेप किया गया, ठीक से जांच करने के बजाए, प्रशासन-पुलिस-अस्पताल और पाखंडी समाज के तानो-बानो ने पूरी तरह से इंसानियत का बलात्कार कर, आधी-रात को चुपचाप दाह-संस्कार कर डाला और अधर्मियों की सरकार चुप्पी साधे रही, बल्कि हाथरस में आरोपियों के समर्थन में ठाकुर समाज उतरकर दबंगई दिखाने लगा..आज हाथरस में वाल्मीकि समाज की इस बेटी के परिजन सिर्फ राशन पर ही जिन्दा हैं,..दलितों कि रहनुमाई का दावा करने वाली मायावती सीबीआई और इंफोर्स्मेंट के डर एवं अपनी भ्रष्ट राजनीति के कारण ना सिर्फ सरकार द्वारा प्रायोजित हमलों के खिलाफ़ चुप रहती हैं बल्कि वह तो अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी तरह के धरने-प्रदर्शनों या आंदोलन करने पर भी रोक लगाती आई हैं..वर्तमान के 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में वह अनुसूचित जनजाति की महिला “द्रोपदी मुर्मू जी” का राजनीतिक समर्थन कार्ड खेलतीं तो हैं..लेकिन जैसा कि वर्ष 2019 में सोनभद्र जिले के मुर्तिया गांव में हुए जनसंहार, जो कि 32 ट्रेक्टरों में सवार 200 दबंगों ने आधे घंटे गोलियां बरसाकर 10 “आदिवासियों” कि लाशें बिछा दी थीं, तब मायावती ने केवल मौखिक विरोध जताया था..अनुसूचित जनजाति के लिए तब वह क्यों नहीं उतरीं ?..इसके अलावा कुछ और अन्य दलितों की बात करें तो कौशाम्बी में अपने मवेशियों को नहर का पानी पिलाने गई सुनीता देवी और उसके बच्चों को केवल इसलिए पीट दिया जाता हैं, क्योकिं गांव के दबंग कहते हैं कि ये नहर उनकी सम्पति हैं..इलाहाबाद में महज 4 रुपए के लिए दो दलित की हत्या कर दी जाती हैं..सोनभद्र में ही अगड़ी जाति के लोग महिला को डायन करार देकर मार डालते हैं..अंतरर्जातीय वैवाहिक संबंधों की वजह से दलित युवक को बंधक बनाकर पहले पीटा जाता हैं फिर जिन्दा जला दिया जाता हैं, सदमे से माँ की भी मौत हो जाती हैं..महिलाओं को मंदिरों में घुसने नहीं दिया जाता हैं..खेत में शौच के लिए गई दलित महिला का गैंग-रेप कर दिया जाता हैं..आजमगढ़ जिले में दलित प्रधान की हत्या कर दी जाती हैं..दलित महिला की जीभ काट दी जाती हैं..अमेठी जिले में दलित ग्राम प्रधान के पति को जिन्दा जला दिया जाता हैं..फतेहपुर में दो दलित बहनो की हत्या कर लाश को तालाब में फेंक दिया जाता हैं..सरकारी हैंडपंप छूने पर दलित की पिटाई कर दी जाती हैं..बांदा जिले में दबंगों की पिटाई से डरे दलित परिवारों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता हैं..चारा लेने गई तीन दलित बहनो में दो की संदिग्ध मौत हो जाती हैं तीसरी नाजुक हालत में पहुंचकर अपाहिज हो जाती हैं..दलित दूल्हे को धमकी दी जाती हैं कि घोड़ी चढ़ा तो हमला सहना होगा..धोबी समाज के युवा-युवती को सवर्ण दबंग, सिर्फ इसलिए जान से मार डालते हैं कि वह अंतर्जातीय विवाह कर लेते हैं..दबंगों द्वारा गरीब कमजोर वर्ग के धोबी समाज के लोगो की जमीन और मकान पर जबरन कब्ज़ा कर लेते है और कोई विरोध करे तो मारपीट कर हाँथ-पाँव तोड़ डालते हैं, जबकि इन निर्ममताओं का सिलसिला आज भी जारी है, आदि-आदि ऐसे अनगिनित मामले हैं, जिसपर शीशमहल में बैठी मायावती की चुप्पी, तमाम दलित वर्ग के लिए प्रश्न-चिन्ह बनकर रह गई हैं..क्या मैला ढोने वाले समाज, मैला धोने वाले समाज, मरे पशु की खाल उतार कर सफाई करने वाले समाज व इसी तरह के काम से जुड़े अन्य दलित वर्गों के लोगों की अहमियत, मायावती की नज़रों में कुछ भी नहीं ?….. *धारावाहिक लेख जारी है* (लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)