बर्मिंघम: कॉमनवेल्थ गेम्स के दूसरे दिन मेडल टैली में भारत का खाता खुला। पहला मेडल संकेत महादेव सरगर ने वेटलिफ्टिंग के 55 किग्रा कैटेगरी में दिलाया। उन्होंने 248 किलो (113 और 135 किलो) का वजन उठाया। वह एक किलो के अंतर से गोल्ड मेडल चूक गए। देश को दूसरा मेडल भी वेटलिफ्टिंग में मिला। इस बार गुरुराज पुजारी ने 61 किग्रा वर्ग में ब्रॉन्ज जीता। उन्होंने 269 किग्रा का वजन उठाया और भारत को दूसरा मेडल दिलाया। इसके बाद ओलिंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट मीराबाई चानू ने देश के लिए गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने कुल 201 किग्रा का वजन उठाया। सिल्वर मेडल जीतने वाली वेल्टलिफ्टर उनसे 29 किलो पीछे थी।
इन तीनों एथलीट ने भारत के लिए कमाल किया। पूरा देश इनके मेडल जीतने पर खुशी में झूम रहा है। लेकिन इनके यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं है। हम आपको इनकी संघर्ष की कहानी बताते हैं।
बेहद गरीब परिवार की मीराबाई चानू
मीराबाई चानू ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड जीता था। तोक्यो 2020 में उन्हें सिल्वर मिला। अब एक बार फिर CWG में गोल्ड जीता है। उनकी सफलता सभी को दिख रही है लेकिन इसके पीछा का संघर्ष काफी कम लोगों को पता है। चानू काफी गरीब परिवार से आती हैं। वह बचपन में अपने भाई-बहनों के साथ लकड़ी बिनती थी। जंगल में जाकर वह लड़की चुनने के बाद उनका गठ्ठर बनाकर घर लाती थीं। इसकी वजह से उन्हें बचपन से ही वजन उठाने की आदत हो गई। मीरा के भाई सैखोम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक दिन मैं लकड़ी का गठ्ठर नहीं उठा पाया, लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा किया। फिर दो किमी चलकर घर भी आ गई। उस समय मीराबाई चानू सिर्फ 12 साल की थी।
पान की दुकान चलाते हैं संकेत के पिता
21 साल के संकेत महाराष्ट्र के हैं। उनके पिता पान की दुकान चलाते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले संकेत ने कहा था कि वह गोल्ड जीतते हैं तो अपने पिता की मदद करेंगे। संकेत भी पिता के साथ कई बार पान की दुकान पर बैठते हैं। इसके साथ ही उनकी एक छोटी खाने की दुकान भी है। कॉमनवेल्थ गेम्स के शुरू होने से पहले संकेत ने कहा था कि उनके पिता ने काफी मुश्किल समय देखा है। वह उन्हें अब सिर्फ खुशियां देना चाहते हैं। उनके पिता ने बेटे के मेडल के बाद कहा, ‘मेरे बेटे ने भारत को पहला मेडल दिया है। मैं इससे बहुत खुश हूं। मेरी चाय और पान की दुकान है, जिससे मैं अपना खर्चा चलाता हूं। बेटे ने लंदन में रजत पदक जीता है जिससे मैं खुश हूं।’
गुरुराज के पिता ट्रक ड्राइवर
गुरुराज पुजारी की कहानी भी काफी हद तक संकेत और मीराबाई चानू जैसी ही है। 29 साल के गुरुराज के पिता ट्रक ड्राइवर थे। ट्रक ड्राइवर होने के बाद भी उन्होंने हमेशा बेटे का साथ दिया। कभी उन्होंने बेटे के सामने पैसे की परेशानी नहीं आने दी। कई बार गुरुराज की टाइट को मैनेज करना उनके लिए मुश्किल हो जाता था। गुरुराज ने गोल्ड कोस्ट 2018 में सिल्वर मेडल जीता था। वह पहले पहलवान बनना चाहते थे। अखाड़ा भी जाते थे, लेकिन उनके टीचर ने वेटलिफ्टिंग की सलाह दी और वहीं से उनकी किस्मत बदल गई।