शशिकांत गुप्ते
मराठी भाषा की इस कहावत का यकायक स्मरण हुआ बोलायचाच भात, बोलायचीच कढ़ी
इस कहावत का अर्थ है सिर्फ कल्पनातीत प्रलोभन देना।
सिर्फ बातों बातों में भात और कढ़ी परोसना। वैसे भी सिर्फ भात और कढ़ी से किसी व्यक्ति का पेट भरता नहीं है।
उक्त कहावत के स्मरण होने का कारण, काठ की हंडी वाली कहावत है।
काठ की हंडी बार बार नहीं चढ़ती है। इस कहावत में बार बार शब्द का महत्व है। पिछले आठ वर्षों से तो काठ की हंडी चढ़ी हुई ही है उतरती ही नहीं है।
इस मुद्दे पर प्रख्यात व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदीजी के एक व्यंग्य का स्मरण हुआ।
चतुर्वेदीजी ने इक्कीसवीं सदी की बालभारती शीर्षक से व्यंग्य लिखा है।
व्यंग्य का आशय प्रस्तुत है।
लगंडे और अंधे की कहानी।अंधे ने लगंडे को अपने कांधे पर उठाया और इक्कीसवीं सदी का मेला देखने के निकल पड़े। वर्षों तक चलने पर भी इक्कीसवीं सदी के मेले वे दोनों पहुँच ही नहीं पाए? अंतः अंधे और लंगड़े में झगड़ा हो गया। अंधे ने लगंडे पर बेवक़ूफ़ बनाने का आरोप लगया।
समाचार पत्रों में खबर छपी अंधा और लंगड़ा दोनों नशे में धुत्त होकर आपस में लड़कर मर गए।
सीतारामजी ने कहा इक्कीसवीं सदी का मेला ठीक उस Restaurants रेस्टोरेंट्स जैसा है,जहाँ विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों की सूची लिखी हुई है। रेस्टोरेंट्स की सजा सज्जा तो देदीप्यमान है। नाम भी बहुत आकर्षक है।
अच्छेदिन जलपानगृह
इस जलपानगृह के विज्ञापन भी लोकलुभावन होतें हैं।
सबकुछ है सिर्फ खाना बनाने वाले रसोइये नदारद है।
जलपानगृह के द्वार पर चौकीदार का पुतला है। पुतले हाथों में एक सूचना बोर्ड है। उस लिखा है, जल्दी ही अच्छेदिन नामक जलपानगृह खुलने वाला है। यदि कोई जोर की आवाज में पूछता है, यह जलपानगृह कब खुलेगा? एक अदृश्य आवाज गूंजती है।
विरोधियों को यहाँ आने सख्त मनाई है।
मुझे इस चर्चा के दौरान शायर शम्सी मीनाई का इस शेर का स्मरण हुआ।
सब कुछ है मेरे देश में, रोटी नहीं तो क्या
वादे ही लपेट लो लंगोट नहीं तो क्या
यह सुनकर सीतारामजी ने एक सलाह दी। अंत में यह स्पष्टिकरण
अनिवार्य रूप से लिखना।
उक्त लेख काल्पनिक है। इस लेख का किसी भी वास्तविकता से कोई सम्बंध नहीं है।
यह स्पष्टिकरण पूरे होश हवास में और किसी तरह मद्यपान के सेवन बगैर लिखा है।
सीतारामजी ने स्पष्टिकरण पढ़ने के बाद कहा हम दोनों सहिष्णु भारतीय का अभिनय करते हुए निम्न पँक्तियों को गुनगुनाते हैं।
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
शशिकांत गुप्ते इंदौर