गांवों में कहावत है – नया बाबाजी टीक में झाल. यानी, जो आदमी नया-नया गवैया बनता है वह जोर से आवाज करने के लिए ज्यादा शोर मचाता है ताकि उसके पुराने सारे पाप ढंक जाये. आज यह कहावत नया-नया देशभक्त बने भाजपा-आरएसएस पर पूरी तरह से चरितार्थ होता है.
जिन्दगी भर जिस भाजपा-आरएसएस भारतीय संविधान, तिरंगा झंडा, महात्मा गांधी जैसों महापुरुषों को गालियां देता आया, पैरों तले कुचलता आया और हत्या करने का सारा सरंजाम रचा, यहां तक कि भारत की राजसत्ता पर जबरन कब्जा करने के लिए सेना में विद्रोह तक करवाने का प्रयत्न किया, भारत की आजादी का मजाक बनाया, आज वही भाजपा-आर एस एस अपने आपको सबसे बड़ा देशभक्त साबित करने के लिए ‘आजादी का महोत्सव’ नामक नौटंकी रच रहा है.
आजादी के इस अमृत महोत्सव के नौटंकी का सीधा सा फलसफा है अमृत अदानी-अंबानियों की झोली में डालकर देश का लाखों करोड़ रुपया का पोटली लेकर विदेश भगा देना और शेष तमाम लोगों के गले के नीचे विष को उतारना. विदित हो कि आज हर साल लाखों लोग इस डुबते देश को छोड़कर भाग रहे हैं. वहीं, देश की सत्ता पर काबिज आरएसएस का ऐजेंट नरेन्द्र मोदी बताता है कि ‘देशवासियों को ‘हर घर तिरंगा’ अभियान से जुड़ने के लिए 13 से 15 अगस्त के बीच अपने घरों में तिरंगा फहराकर इस आंदोलन का हिस्सा बना जा सकता है.’ सवाल पूछा जाना चाहिए कि माल्या, जौहरी, मोदी भी अगर तिरंगा फहरा ले तो क्या उसे भी देशभक्त मान लिया जायेगा न !
इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी का लक्ष्य 20 करोड़ घरों पर तिरंगा झंडा फहराने का है. अगर झंडे की न्यूनतम कीमत 10 रुपये भी मान लिया जाये तो इस अभियान में कुल 200 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे. और ये 200 करोड़ रुपये उन्हीं लोगों से आएंगे जो ये झंडे ख़रीदेंगे. खबरें आ रही है कि इस झंडे की आपूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर बिजनेस का योजना है. यानी, मोदी मित्रों को बैठे-बिठाये यह नया देशभक्ति का धंधा मिल गया है.
नरेन्द्र मोदी की यह तमाम नौटंकी भाजपा-आरएसएस का देश के प्रति गद्दारी को छिपाने और खुद को सबसे बड़ा देशभक्त साबित करने की शोरगुल है, जिसके आड़ में देश को बेचने की तैयारी है. यानी गद्दार जब देशभक्त होने का नौटंकी करने लगे तो समझ लो देश की बाट लगने वाली है. मोदी के इस तिरंगा प्रेम अभियान पर पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं –
पिछ्ले कुछ सालों से अचानक बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ताओं को तिरंगे से भारी प्रेम उमड़ रहा है. इस साल मोदी जी ने अपने करोड़ों बीजेपी कार्यकर्ताओ को 13 से 15 अगस्त के बीच अपने घरों पर तिरंगा फहराने का टारगेट दिया गया है. मोदी भी अपनी डीपी में तिरंगा लगा रहे हैं. आरएसएस बीजेपी को यदि इतना ही प्रेम तिरंगे से है तो पहले एक काम करे ! आरएसएस मुख्यालय और उनकी वेबसाइट पर बनी भारत माता की तस्वीर में भारत माता के हाथ में भगवा झंडे की जगह तिरंगा झंडा थमा दे ! बोलिए, है हिम्मत ?
दरअसल आरएसएस और तिरंगा दोनों विपरीत ध्रुव पर खड़े हुए हैं और ये हम नहीं कह रहे बल्कि इतिहास ही हमें यह बताता है. 1930 से ही आरएसएस को तिरंगा सख्त नापसंद था. तिरंगे ध्वज तले चले 1930 से 1945 तक के आंदोलनों में आरएसएस ने कभी भी भाग नहीं लिया. जब आजादी मिलनी तय हो गई थी तब उसने संविधान सभा का भी कड़ा विरोध किया था.
भारत की आजादी की पूर्वसंध्या पर 14 अगस्त, 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में एक लेख छपा, जिसका शीर्षक था ‘भगवा ध्वज के पीछे रहस्य.’ इस लेख में दिल्ली के लाल किले के प्राचीर पर एक तिरंगे के बजाए भगवा ध्वज के लहराने की मांग करते हुए राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे के चुनाव की निम्न शब्दों में अपमान किया गया –
‘जो लोग किस्मत के दांव से सत्ता में आ गए हैं, हमारे हाथ में तिरंगा दे सकते हैं, लेकिन इसको हिंदुओं द्वारा कभी अपनाया नहीं जाएगा और न ही इसका कभी हिंदुओं द्वारा सम्मान होगा. शब्द तीन अपने आप में एक बुराई है, और तीन रंगों वाले एक झंडे का निश्चित रूप से एक बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव होगा और यह देश के लिए हानिकारक है.’
आरएसएस ने सरसंघ संचालक गोलवलकर ने अपनी किताब ‘विचार नवनीत’ जिसे अंग्रेजी में ‘बंच ऑफ थाट्स’ के नाम से अनुवादित किया गया, उसमें साफ़-साफ़ लिखा –
‘हमारे नेताओं ने हमारे लिये एक नया ध्वज चुनने का फैसला किया है. उन्होंने ऐसा क्यों किया ? यह हमारी समृद्ध विरासत को अस्वीकृत करने और बिना सोचे-समझे दूसरों की नकल करने का एक स्पष्ट उदाहरण है.’
वो आगे लिखते हैं –
‘कौन इसे सही और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण मानेगा ? यह सिर्फ एक जल्दबाजी में लिया गया राजनीतिक समाधान है. हमारा देश समृद्ध विरासत से भरपूर प्राचीन और महान देश है. क्या तब भी हमारे पास अपना एक झंडा तक नहीं है ? बेशक हमारे पास है तो फिर यह दिवालियापन क्यों ?’
आरएसएस के परम पूज्य नेता सावरकर के हिसाब से भी ‘हिंदू किसी भी कीमत पर वफादारी के साथ अखिल हिंदू ध्वज यानी भगवा ध्वज के सिवा किसी और ध्वज को सलाम नहीं कर सकते. वे कहते हैं –
‘भारतीय संघ द्वारा अपनाये गए नए ध्वज में मौजूद अच्छाईयों, जो कम आपत्तिजनक हैं, का उल्लेख करते हुए मैं जोरदार ढंग से यह बात कहना चाहता हूं कि इसे कभी भी हिंदुस्तान के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी.’
30 जनवरी 1948 को जब नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की ह्त्या कर दी गयी तो इस तरह की खबरें आई कि आरएसएस समर्थक मिठाई बांट रहे हैं और तिरंगे झंडे को पैरों से रौंद रहे हैं. यह खबर उन दिनों के अखबारों में खूब छपी थी.
24 फ़रवरी 1948 को एक भाषण में, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि ‘कुछ स्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि झंडा नीचा दिखाकर वे खुद को गद्दार साबित कर रहे हैं.’
सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर 1948-49 के दौरान लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए रखी शर्तों के बीच ‘राष्ट्रीय ध्वज की स्पष्ट स्वीकृति’ को भी जगह दी. उस वक्त के गृह सचिव H.V.R. आयंगर ने गोळवलकर को मई 1949 में, लिखा था – ‘संघ का राष्ट्रीय ध्वज की स्पष्ट स्वीकृति देश को संघ की राज्य के लिए निष्ठा के बारे में संतुष्ट करने के लिए आवश्यक होगा.’
प्रतिबंधों से घबरा कर गोलवलकर जी को तिरंगे को राष्ट्रध्वज मानना पड़ा और उन्होंने बाकी शर्ते भी मान ली.
11 जुलाई 1949 को आरएसएस पर प्रतिबंध हटा दिया गया था. आरएसएस अपने मुख्यालय में पहली बार 26 जनवरी 1950 पर तिरंगा फहराया. उस वर्ष 15 दिसंबर को सरदार पटेल का निधन हुआ, और फिर आरएसएस ने 2002 तक कभी अपने मुख्यालय में तिरंगा झंडा नहीं फहराया. 2002 के बाद आरएसएस को अपने मुख्यालय पर तिरंगा क्यों फहराना पड़ा, उसका भी एक कारण है.
2002 के बाद आरएसएस को अपने मुख्यालय पर तिरंगा क्यों फहराना पड़ा ?
26 जनवरी 2001 को आरएसएस मुख्यालय नागपुर में तीन युवक बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी घुस गए और उन्होंने वहा तिरंगा फहराने की कोशिश की. राष्ट्रप्रेमी युवा दल के यह तीनों सदस्य दरअसल इस बात से क्षुब्ध थे कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर भी आरएसएस के दफ्तरों में कभी तिरंगा नहीं फहराया जाता. जबकि फ्लैग कोड के अनुसार भी इन विशिष्ट दिनों पर सभी संस्थाओं को तिरंगा फहराने की छूट मिली होती है.
इस जुर्म के लिए आरएसएस ने उन्हें गिरफ्तार करवाया और उस पर मुकदमा चलाया गया, जिसे केस नंबर 176, नागपुर, 2001 के नाम से जाना जाता है. अगस्त 2013 को नागपुर की एक निचली अदालत ने तीनों आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया.
यह है इतिहास आरएसएस और उनकी राजनितिक इकाई बीजेपी का. इसलिए बीजेपी और आरएसएस जो अभी जुम्मा-जुम्मा 20 साल पहले ही देशभक्त हुए हैं, वे पहले अपने गिरेबान में झांक ले और हमें तिरंगे फहराने या देश भक्ति के पाठ न पढ़ाए !
कैसा है भाजपा-आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र ?
प्रभाकर गौल लिखते हैं – जिस GST को पूरे देश ने नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री के साथ विरोध किया, उस GST को क्रूर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री ने लागू कर दिया है, यही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. बैंक घोटाला होना व सरकार का चुप रहना, उल्टे घोटालेबाजों को सरकार का संरक्षण मिलना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. जनता का गरीब, बेबस, लाचार होना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है.
देश के धन व पूंजी को विदेश लेकर भाग जाना और भाजपा, आरएसएस को चंदा देना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र हैं. आपका बच्चा व भूपेश बघेल, मोहन भागवत, अमित शाह का बच्चा एक स्कूल, एक शिक्षा, एक ही गुण धर्म के शिक्षक से नहीं पढ़ना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र हैं.
जिस मंहगाई का विरोध कर सत्ता में आना व स्वयं उससे बढ़ी महंगाई कर देना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. सारे अच्छी वस्तुओं को विदेश भेज देना आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. आरएसएस, भाजपा, समर्थित लोगों के द्वारा मुस्लिम पहनावे पहनकर, मुस्लिम समाज को बदनाम करने के लिए हत्या व हिंसा करने के लिए आगे आना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है.
संविधान का पालन नहीं करना, नियम क़ानून का पालन नहीं करना, थाना में कार्यवाही नहीं होना, अदालत में न्याय नहीं होना, शासकीय कार्यालय में पक्षपात व घुस देना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. सारा मेहनत आप करें व फल कोई दूसरा खाये, ये सब आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है.
सरकारी नौकरी में आपको सलेक्ट नहीं होने देना, बिना परीक्षा सचिव बनना, इंटरव्यू में आपको कम नम्बर देना, भेदभाव करना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र हैं. सभी हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में सभी वर्ग के लोगों को न्यायाधीश बनने नही देना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है.
किसानों के खिलाफ गलत कानून बनाना और फिर पिछले दरवाजे से तीनों किसान विरोधी कानूनों को लागू करने का प्रयास करना ही यही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. सरकारी स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी, अस्पताल, सरकारी कम्पनियों, सरकारी उद्योगों को बर्बाद होने देना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है.
1000 रुपये गैस के दाम, 200 रुपये खाद्य तेल, 100 रुपये ईंधन बेचना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. पानी बेचना, रास्ते पर चलने पर टोल टैक्स लेना व देना ही असली हिन्दू राष्ट्र है. ऐसे घटिया व अमानवीय सामाजिक व्यवस्था को ही नए लिखित नियम कानूनों को लागू करने के लिए आरएसएस, भाजपा सबको गुमराह कर रहे हैं.
मैं, हम, आप, सबको बराबर का इंसान नहीं होने की व्यवस्था को लागू करना ही आरएसएस, भाजपा का हिन्दू राष्ट्र है. अतः आरएसएस, भाजपा को छोड़ कर इनके क्रूर, अमानवीय हिन्दू राष्ट्र को लागू नहीं होने देकर देश, धरती, जीवन को बचा लीजिए
‘प्रतिभा एक डायरी’ से साभार