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भाजपा व कांग्रेस को पार्षदों को कराना पड़ रहा राजनैतिक पर्यटन

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भोपाल। जिला पंचायत व जनपद पंचायत अध्यक्षों की ही तरह अब भाजपा व कांग्रेस नेताओं को नगर निगमों से लेकर नगर परिषदों तक में अपने पार्षदों पर भरोसा नही है, यही वजह है की उनकी बाड़ेबंदी करने के लिए उन्हें राजनैतिक पर्यटन पर ले जाने को मजबूर हो गए हैं। इस तरह की स्थिति उन शहरों में अधिक है, जहां पर भाजपा व कांग्रेस के पार्षदों में अंतर बहुत कम है या फिर निर्दलीयों के हाथ में अध्यक्ष चुनने की कमान बनी हुई है। इसके अलावा कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के जिन नगर निगमों में भाजपा के अलावा अन्य दलों के प्रत्याशी महापौर निर्वाचित हुए हैं। इस मामले में ग्वालियर व मुरैना में सबसे पहले पार्षदों की बाड़ेबंदी की गई हैं।
अब नई नगर सरकार के आकार लेने का समय आ गया है। इसकी वजह से भाजपा-कांग्रेस में नगर निगम अध्यक्ष पद को लेकर जोड़तोड़ पूरे शबाब पर है। ग्वालियर में तो कांग्रेस की जोड़तोड़ से बचने के लिए भाजपा ने अपने 34 पार्षदों को दिल्ली भेज दिया है। खास बात यह है की इसके लिए भाजपा द्वारा आठ बसों का इंतजाम किया गया था। इन बसों में पार्षदों के अलावा उनकी पत्नीयों को भी साथ में भेजा गया है। यह सभी वहां वरिष्ठ नेता केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के अलावा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ मुलाकात करेंगे। दरअसल ग्वालियर में अधी शदी के बाद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है , जिसकी वजह से भाजपा को बहुत बढ़ा धक्का लगा है।  हालांकि कांग्रेस नेताओं पर भाजपा का आरोप है की भाजपा पार्षदों से हॉर्स ट्रेडिंग के प्रयास किए जा रहे थे, जिसके तहत किसी को सभापति तो किसी को एमआईसी सदस्य बनाने तक का ऑफर दिया जा रहा था।  इस प्रलोभन से बचाने के लिए जहां पार्षद 4 अगस्त तक दिल्ली में रहेंगे और वहां से 4 अगस्त की देर रात या 5 अगस्त की सुबह लौटेंगे। इसी तरह से मुरैना के भी महापौर पद के परिणाम रहे हैं। भाजपा अब महापौर का पद गंवाने के बाद यहां पर भी किसी तरह से अध्यक्ष पद अपने पास लाना चाहती है। इस वजह से मुरैना के भी पार्षदों को भी दोनों दल अपने -अपने साथ रखने की कवायद में राजनैतिक पर्यटन पर ले गए हैं।  खास बात यह है की इनमें कुछ निर्दलीय व अन्य दलों के पार्षद भी बताए जा रहे हैं। भाजपा-कांग्रेस दोनों अपने-अपने सभापति और परिषद बनाने का दावा कर रहे हैं। इस बीच कुछ निकायों में इन दिनों निर्दलीय पार्षदों की भी जमकर पूछ परख हो रही है। इसकी वजह है उनकी संख्या बल। कई निकायों में कांग्रेस व भाजपा के पास इतने पार्षद नही हैं की वे अपने -अपने अध्यक्ष बनवा सकें , लिहाजा उन्हें निर्दलीय पार्षदों पर फोकस करना पड़ रहा है। इनमें कई पार्षद ऐसे हैं जो अपने-अपने दलों से बागी होकर निर्वाचित हुए हैं। यही वजह है की भाजपा को इसके लिए स्थानीय विधायकों के अलावा प्रभारी मंत्रियों तक को जिम्मेदारी देनी पड़ी है।
कांग्रेस के राजस्थान तो भाजपा पार्षद भोपाल में  
गुना नगर पालिका में भी अध्यक्ष पद को लेकर जोड़तोड़ के बीच निकायों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनने की तारीख की घोषणा की वजह से हो गयी है। दोनों ही दलों ने अपने-अपने पार्षदों को सुरक्षित रखने के लिए जिले से बाहर भेजना शुरू कर दिया है। भाजपा जहां पार्षदों को भोपाल या इंदौर भेजने की तैयारी कर रही है, तो वहीं कांग्रेस के पार्षद राजस्थान पहुंच गए हैं। हालांकि, सभी यही कह रहे हैं कि वे अपनी मर्जी से घूमने आए हैं। गुना नगर पालिका के 37 वार्डों में 19 पर भाजपा प्रत्याशी जीतकर आये हैं। वहीं 12 पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। 6 वार्ड निर्दलीयों के खाते में गए। 5 निर्दलीय पार्षदों ने कुछ दिन बाद ही भाजपा की सदस्यता ले ली। इससे भाजपा के पास अब 24 पार्षद हो गए हैं। यह तय माना जा रहा है कि अध्यक्ष भाजपा का ही बनेगा।
डबरा के पार्षद भी दिल्ली में
डबरा नगर पालिका के पार्षदों को भी दिल्ली ले जाया गया है। डबरा में भाजपा के ही अंदर दो नेताओं के गुटों के बीच अध्यक्ष पद को लेकर मची रार के बीच श्रीमंत समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी पार्षदों  को लेकर दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। इसी तरह के हालात कई नगर परिषदों में भी बने हुए हैं।
5 अगस्त को होना है सभापति का चुनाव
 नगर निगम के पहले सम्मेलन में 5 अगस्त को सभापति का चुनाव होना है। इसके बाद एक सप्ताह के अंदर यानी 12 अगस्त तक महापौर को मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) का गठन करना है। एमआईसी कम से कम पांच और अधिकतम दस सदस्यों की हो सकती है। खास बात यह है कि इस बार एमआईसी में अधिकांश चेहरे नए रहेंगे। निकाय चुनाव के इतिहास में 57 साल बाद कांग्रेस की महापौर बनी हैं। ऐसे में एमआईसी  का गठन डॉ. शोभा सिकरवार के हाथों में है।  कांग्रेस के 25 पार्षद चुनाव जीते हैं, तीन निर्दलीय उनके साथ आ गए हैं। इनमें से सिर्फ 2 पुराने चेहरे हैं, शेष सभी पहली बार के पार्षद हैं। ऐसे में एमआईसी में 60 फीसदी चेहरे नए ही रहेंगे। पर इस सबसे पहले अपना सभापति बनाना दोनों दलों के लिए चुनौती और तनाव भरा रहने वाला है।
कांग्रेस पार्षद भी हुए अंडरग्राउंड
कांग्रेस के भी ज्यादातर पार्षद अंडरग्राउंड हो गए हैं। निर्दलीय भी किसी की पकड़ में नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस ने भी अध्यक्ष के चुनाव को लेकर कमर कस ली है। निर्दलीय जीत करने वाले पार्षद भी शपथ लेने के बाद तीर्थ यात्रा पर निकल गए हैं। इससे यह तो साफ है कि 5 अगस्त से पहले यह तीन दिन दोनों दलों के लिए काफी जोड़तोड़ और तनाव भरे हो सकते हैं।

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