अग्नि आलोक
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प्रण

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मंजुल भारद्वाज

ओ धर्म से मूर्छित जनता
अब तो होश में आओ
खोल के अब तो आंखें
नागरिक का फर्ज़ निभाओ!

ओ जात में बंटने वालों
ओ झूठ में खपने वालों
छोड़ के पाखंड अब तो
सच की राह बनाओ !

बहुत हुई जुमलेबाजी
बहुत सही धोखेबाजी
ओ भूख से मरने वालों
अब खुद इक़बाल जगाओ !

मंहगाई में लुटने वालों
कमाई में पीसने वालों
अब विकार की नींद से जागो
विचार का अलख जगाओ!

देश के तुम हो मालिक
अधिकार को अब पहचानों
ओ हम भारत के लोगों
अब भारत देश बचा लो !

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