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लेकिन महंगाई है कहां!

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व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा

देवोपरि मोदी जी को एक भक्त का चरणवंदन पहुंचे। प्रभु, आप तो सर्वज्ञाता हैं। आप को कोई क्या बता सकता है, जो आप को पहले से पता नहीं है। फिर भी आप अगर भगवान की अपनी भूमिका बखूबी निभाह रहे हैं, तो इस भक्त का भी बार-बार भक्ति दिखाना कर्तव्य बनता है। सो आप पूरी करें न करें, एक प्रार्थना प्रभु की सेवा में प्रस्तुत है।

प्रभु, भारत भूमि पर इस समय महंगाई, महंगाई का कुछ ज्यादा ही शोर मच रहा है। विधर्मियों और अभक्तों को तो छोड़ ही दें, आप के पक्के-पक्के भक्त तक, महंगाई की शिकायत करते मिल जाते हैं। कोई डीजल-तेल के महंगा होने की शिकायत करता है, तो कोई आटे-दाल का भाव बताने लगता है। कोई खाने के तेल का रोना रोता है, तो कोई सब्जी-तरकारी की महंगाई का। बाल-बच्चे वाले बच्चों की कॉपी-किताब के दाम की शिकायत करते मिलते हैं, तो बुजुर्ग दवा-दारू के महंगे होने की। और जब से आप का आशीर्वाद लेकर निम्मो ताई ने जीएसटी में बढ़ोतरी का नया एक्सपेरीमेंट किया है, तब से तो कच्चे तो कच्चे, अधपके भक्त तक, बेकाबू हुए जा रहे हैं। कह रहे हैं कि चावल और आटे पर भी टैक्स, दही और लस्सी पर भी टैक्स; खाने-पीने की चीजों पर तो कभी अंगरेजी हुकूमत ने भी टैक्स नहीं लगाया था। बच्चों के पेंसिल-रबड़ पर भी टैक्स। और तो और अस्पताल से लेकर श्मशान तक की सेवाओं पर भी टैक्स। यह अमृतकाल है या पब्लिक का काल। सुना है कि एक भक्त कवि ने तो आधा चोरी का और आधा मौलिक, एक कवित्त ही बना दिया है–मोदी राज सुख साज सजे अति भारी। पै महंगाई बढ़त दिन रात, यही अति ख्वारी॥

वैसे निम्मो ताई भी आपकी पहुंची हुई भक्त हैं। उन्होंने भी दो-टूक कह दी कि संवेदनशीलता के अब तक के सारे रिकार्ड तोडऩे वाली आपकी सरकार ने, अस्पताल के कमरों-वमरों पर भले जीएसटी लगा दी हो, पर मुर्दों पर टैक्स बढ़ाने से साफ इंकार कर दिया है। न श्मशान में और न कब्रिस्तान में, मुर्दों से कोई फालतू टैक्स नहीं वसूला जाएगा। संस्कारी सरकार, मुर्दों के सम्मान में कोताही कभी कर ही नहीं सकती है। हां! श्मशान में कोई मुर्दों के लिए या मुर्दे लाने वालों के लिए, प्लेटफार्म या बैंच वगैरह बनवाएगा, तो जरूर जीएसटी के दायरे में आएगा। मुर्दों से इस खर्चे की वसूली भले ही कोई कर ले, पर अपनी तरफ से सरकार किसी मुर्दे को जीएसटी मांगकर परेशान नहीं करेगी। ताई ने यह भी बता दिया कि न रुपया बैठ रहा है और न इकॉनमी। बस सब अपना रास्ता बना रहे हैं। सत्तर साल दूसरों के दिखाई रास्ते पर चले; अब आत्मनिर्भर बनकर दिखा रहे हैं।

फिर क्या था, आपकी सरकार के एक पूर्व छोटे वित्त मंत्री ने तो सीधे पब्लिक को चलेंज ही कर दिया : किसी को दिखाई दे, तो महंगाई खोज कर लाए और उन्हें भी दिखाए। उन्हें तो महंगाई दिखाई ही नहीं देती। महंगाई है ही नहीं, तो दीखेगी कैसे? पर कलयुगी प्रजा की दुष्टता देेखिए। लोग कहने लगे कि अडानी-अंबानी के प्रेम के अंधों को, महंगाई दीखेगी भी कैसे! वैसे भी आंखें तो प्रभु के चरणों के फिक्स डिपॉजिट में जमा करा रखी हैं। सो पब्लिक में बड़ी ख्वारी हो रही है, प्रभु।

चीजों के नाम समेत, इतना कुछ बदल रहे हैं प्रभु आप, क्यों नहीं महंगाई का नाम बदलकर सस्ताई कर दें। फिर देखते हैं, आप के राज में पब्लिक कैसे महंगाई की शिकायत करती है! और कुछ हो न हो, जयंत सिन्हा जी जरूर सच साबित हो जाएंगे- पर महंगाई कहां है!

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। संपर्क : 098180-97260)*

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