दिव्यांशी मिश्रा
_जब अंदर सेक्स की पशुविक कामना उठे, तो वहां उसकी तीन सम्भावनाएं है :_
पहली है, उनको तुष्ट करने में लग जाओ.
सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति यही कर रहा है.
दूसरी है, उसका दमन करो, उसे बलपूर्वक अपनी चेतना के पार अचेतन के अंधकार में नीचे धकेल दो, उसे अपने जीवन के अंधेरे तलघर में फेंक दो।
कथित असाधारण लोग, महात्मा, संत और भिक्षु यही कर भी रहे हैं।
यह दोनों ही प्रकृति के विरुद्ध हैं। ये दोनों ही रूपांतरण के अंतर्विज्ञान के विरुद्ध हैं।
तीसरी सम्भावना है : जिसका बहुत थोड़े से लोग प्रयास करते हैं। जब भी अतिसेक्स की कामना उठे, अपनी आंखें बंद कर लो।
यह बहुत मूल्यवान क्षण है: कामना का उठना ऊर्जा का जाग जाना है। यह ठीक सुबह सूर्योदय होने जैसा है। अपनी दोनों आंखें बंदकर लो, यह क्षण ध्यान करने का है।
अपनी पूरी चेतना को काम केंद्र पर ले जाओ, जहां तुम उत्तेजना, कम्पन और उमंग का अनुभव कर रहे हो। वहां गतिशील होकर केवल एक मौन दृष्टा बने रहो।
उसकी निंदा मत करो, उसकी साक्षी बने रहो। उसकी निंदा करते हो, उससे बहुत दूर चले जाते हो।
उसका मजा भी नहीं लो, क्योंकि जिस क्षण उसमें मज़ा लेने लगते हो, मूर्च्छा में होते हो।
केवल सजग, निरीक्षणकर्ता बने रहो, उस दीये की तरह जो अंधेरी रात में जल रहा है। केवल अपनी चेतना वहां ले जाओ, चेतना की ज्योति, बिना हिले डुले थिर बनी रहे।
आप देखते रहो कि कामकेंद्र पर क्या हो रहा है, और यह ऊर्जा है क्या?
Vइस ऊर्जा को किसी भी नाम से मत पुकारो, क्योंकि सभी शब्द प्रदूषित हो गए हैं। यदि यह भी कहते हो कि यह सेक्स है, तुरंत ही उसकी निंदा करना प्रारम्भ कर देते हो।
यह शब्द ही निदापूर्ण बन जाता है। अथवा यदि तुम नई पीढ़ी के हो, तो इसके लिए प्रयुक्त शब्द ही कुछ पवित्र बन जाता है। लेकिन शब्द अपने आप में हमेशा भाव के भार से दबा रहता है।
कोई भी शब्द जो भाव से बोझिल हो, सजगता और होश के मार्ग में अवरोध बन जाता है। बस उसे किसी भी नाम से पुकारो ही मत। केवल इस तथ्य को देखते रहो कि काम केंद्र के निकट एक ऊर्जा उठ रही है।
उसमें उत्तेजना है उमंग है, उसका निरीक्षण करो। और उसका निरीक्षण करते हुए आपको इस ऊर्जा का पूरी तरह से एक नये गुण का अनुभव होगा।
उसका निरीक्षण करते हुए देखोगे कि यह ऊर्जा ऊपर उठ रही है। वह आपके अंदर मार्ग खोज रही है। जिस क्षण वह ऊपर की ओर उठना प्रारम्भ करती है, अनुभव होगा कि एक शीतलता आप पर बरस रही है, आप पर चारों ओर से एक अनूठी शांति, मौन अनुग्रह आशीर्वाद और आनंद की वर्षा हो रही है।
अब कोई पीड़ायुक्त है, यह ठीक एक मरहम जैसा है। जितने अधिक सजग बने रहोगे, यह ऊर्जा उतनी ही ऊपर जाएगी। यदि यह हृदय तक आ सकती है, जो बहुत कठिन नहीं है.
कठिन तो है, लेकिन बहुत अधिक कठिन नहीं है.. यदि सजग बने रहे, तो देखोगे कि यह हृदय तक आ गई है। जब यह ऊर्जा हृदय तक आ जाती है तो आप पहली बार यह जानोगे कि प्रेम क्या होता है।
{चेतना विकास मिशन)