डॉ. प्रिया
आज सुबह सुबह एक औरत से बात हो रही थी ,जॉइंट फेमिली में है ,सरकारी नोकरी करती है वो.
विवाह बच्चे ये सोचकर लोग करते हैं कि खुशी मिलेगी ।पर होता इसका विपरीत ही है ।पति पत्नी ,मा बाप बनकर लोग जितने डिप्रेशन के शिकार है ,जितने भी सुसाइडल केस है ये सब विवाह जीवन मे ही देखने को मिलते है।
अपराधों की बढ़ती डर भी विवाहित लोग ही बढ़ाते है ।घरेलू हिंसा के कारण जितना ओरतो पर अत्याचार बढ़ रहा है ये सब विवाह प्रथा की देन है।
_विवाह में व्यक्ति जितना घूँटकर जीता है उसके लिए सारे शब्द कम पड़ जाते है ।सबके गले मे फांसी जा फंदा है और मजे की बात ये है कि हम ढोल नगाड़े dj बजाकर बलि का बकरा बनते है ।ये विवाह का शोर शराबा इतना फैला दिया जाता है कि हम चाहकर भी इससे मुक्त नही हो पाते।
समाज क्या कहेगा ,घर वाले क्या कहेंगे ,तलाख तो बहुत बुरी बात है।_
मैं कैसे जिउँगी?बिना पति ,बिना बच्चो के ?
एक कहावत है भारत मे को ओरत को अर्थी तो ससुराल से ही निकलती है तभी वो मुक्त होती है।
_यहां मैं ये कहना चाहूंगी कि वो जिंदा लाश ही होती है ।बस सारा जीवन उसका अर्थी ही है ।जिंदा तो वो होती ही नही कभी ।बस कुछ समय बाद जब शरीर भी चलना बन्द कर दे तो साइंटिफिकली रूप से उसको मर्त घोषित कर दिया जाता है।_
घरेलू हिंसा के चलते न जाने कितनी स्त्री का जीवन नरक से भी बदतर है।और फिर कंडीशनिंग इतनी गहरी है कि ओरत हर बार हर हिंसा को अनदेखा करती रहती है ।क्योंकि संस्कारो में सिखाया गया है कि पति परमेस्वर है ।उसी की चरण धोकर पियो ।भले वो मारे पिटे गाली दे ,सब चुपचाप सहन करो।
कल ही एक ओरत से मिली ,उसका पैर तोड़ रखा था पति परमेस्वर ने।
ओर 12 साल हो गए उसको मार खाते ।मेने पूछा तो बोली कि बस इसी उमीद में 12 साल निकाल दिए कि एक दिन सुधर जाएगा।
_यही सोच हर ओरत को घुंन की तरह ,दीमक की तरह खोखला करती आई है ।हा एक दिन हर ओरत मुक्त भी हो जाती है ,पर ये मुक्ति जिंदा रहते नसीब नही होती ।अर्थी जब निकले तभी होती है।_
अगर बाप अपनी बेटी को घर बनाकर दे ,उसे उसके पैरों पर खड़ा करे ,जैसे कि बेटे को करता है तो बहुत मुश्किल है कि कोई लड़की दूसरे के घर जाकर अपना जीवन नरक करे।
मुझे तो भारत के बाप ही सबसे पापी लगते है जो अपनी बेटी को नरक में झेलने के जिम्मेदार होते है।
कभी अपने वैवाहिक जीवन मे झांककर देखे बाप की उसे कोंन से खुशी मिल गई विवाह से जो वो अपनी बेटी को नरक में झोंक देता है।
_बेटी को पढा भी देंगे ,दहेज भी दे देंगे ,पर उसको घर मे नही रखेंगे।ऐसे बाप के ऊपर जबरदस्त कानून होना चाहिए और हर बाप को सजा मिलनी चाहिए जो अपनी बेटी को ऐसे दरिंदो के बीच छोड़ देता है।_
पति को तो सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन साथ मे बाप के ऊपर भी केस होना चाहिए ,आखिर क्या हक है बाप को की वो अपनी बेटी की शादी करे? और उसको मजबूर करे कि दूसरे अनजान लोगों के साथ जाकर रहे लड़की?
बहुत ही अमानविय है ये विवाह प्रथा ।जो केवल स्त्री के शोषण पर खड़ी है।आज नही तो कल इस कुप्रथा का अंत हो ही जाएगा ।पर तब तक न जाने कितनी ओरतो के आंसू सुख जाएंगे ।कितनी ओरतो जा जीवन बर्बाद हो जाएगा।
केवल स्त्री ही नही पुरुष भी दुखी है ,इसलिए तो वेश्याघर और एक्स्ट्रा मैरिटल afair इतना है। पर खुलकर कहने की हिम्मत किसी पुरुष में भी नही है कि वो विवाह प्रथा से खुश नही है ।क्योंकि आखिर वो भी इसी समाज का हिस्सा है जहाँ विवाह को इतना महिमा मंडित किया जाता है कि वो भी हिम्मत नही कर पाता मना करने की।
याद रखो की ये समाज किसी विवेकशील व्यक्ति से नही चलता ,जरूरी नही की जो भीड़ करे, वो उचित ही हो।
जरा रुककर सोच लो ,क्योंकि अक्सर तो भीड़ में भेड़ें ही शामिल होती है ,जिनकी अपनी कोई बुद्धि ,अपना कोई विवेक नही होता।अक्सर तो समाज निर्बुद्धि लोगो से ही संचालित होता है।
_पुरुषो ,तुम खुद भी मुक्त रहो ओर ओरतो को भी मुक्त रहने दो। जीवन मे खुश रहने के लिए बहुत सारी दिशा है ,बहुत कुछ है करने को।_
अक्सर लोग कहते है कि विवाह नही होगा तो समाज कैसे चलेगा ,सेक्स कैसे होगा?
तो आप लोगो को क्लियर कर दु की सेक्स के लिए विवाह की कोई जरूरत नही है ।और समाज को नही खुद के जीवन को विस्तार देना है।
समाज की चिंता मत करो ,अपने जीवन खिलाओ ,अपने जीवन को सुंदर बनाओ ,अपने जीवन को महत्व दो ।कुछ ऐसा करो जिससे ये धरती सुंदर बने ,ये सारा अस्तित्व महक उठे ,तुम्हारे होने से। जहां तुम सारे अस्तित्व को धयनयवाद दे सको।
अभी तो सब शिकायत में ही जीवन का अंत कर लेते है.
(चेतना विकास मिशन)