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प्रधानमंत्री जी, अमृत महोत्सव पर लगता है आप चूक गए !

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चंद्रशेखर शर्मा

प्रधानमंत्री जी, सुनते हैं कि आपको देश से मन की बात या संवाद करना बहुत पसंद है। एक अच्छे और जोशीले लीडर का यह अनिवार्य गुण और गुणवत्तापूर्ण काबिलियत होती है। फिर आप तो 140 करोड़ की आबादी वाले दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश के राष्ट्र प्रमुख हैं। प्रसन्नता की बात है कि आप इस गुण और काबिलियत के धनी हैं।

यों यह किसी को कमतर बताने की चेष्टा नहीं है, बल्कि तुलना है कि आपके पहले दस साल जो देश के प्रधानमंत्री रहे, वो देश या देश के नागरिकों के साथ संवाद स्थापित करने में कितने गुणी थे ? बेशक कुछ मामलों में उनकी विद्वता असंदिग्ध है, लेकिन एक राष्ट्र प्रमुख बतौर देश से, देश के लोगों से सहजता से संवाद स्थापित करने में वे कोरे थे। शायद इसीलिए वो देश से या देश उनसे वैसा जुड़ाव नहीं महसूस कर पाया, जैसा आप देश से या देश आपसे महसूस करता है। आपने तो अपनी एक आवाज पर देश से जनता कर्फ्यू लगवा लिया, ताली-थाली बजवा ली और ताजा घर-घर तिरंगा लगवा लिया। ऐसे और भी मामले हैं, जो बताते हैं कि लोग खुद को आपसे अलग और सहज कनेक्ट होता पाते हैं। कहने की जरूरत न कि इसमें बड़ा योगदान आपके वाक कौशल का है और फिर फैसले लेने की आपकी खुदयक़ीनी और हिम्मत का है। एक लीडर की भी असली परीक्षा संकट के समय होती है। तब ही देखा जाता है कि वो अपने लोगों को कैसा नेतृत्व देता है और कैसे उन्हें साथ लेकर चलता है। आपने भी कोरोना जैसी वैश्विक महामारी और अभूतपूर्व संकट के समय उससे जूझने के लिए देश से लगातार संवाद कर लोगों को हौसला, संबल और विश्वास प्रदान किया और यही नहीं, बल्कि वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों से लेकर तमाम एजेंसियों को जिस तरह प्रेरित किया वो कोई दूसरा प्रधानमंत्री कर पाता, इसमें पूरा शक है। जिस महामारी ने दुनिया के तमाम अग्रणी और ताकतवर राष्ट्रों के अस्थिपंजर ढीले कर दिए और उनको घुटनों पर ला दिया, उस महामारी के सामने हमारा देश न केवल टिका रहा, बल्कि अब फिर आगे बढ़ रहा है। ठीक है कि महामारी ने बड़ी तादाद में देश के नागरिकों को असमय काल कवलित कर दिया, लेकिन जैसा कहा जाता है कि स्पंदनहीन होना मुर्दे की पहचान है और गतिशीलता जीवन की। तो जिंदा राष्ट्र वही है जो तमाम संकटों के बावजूद थमता नहीं, बल्कि लगातार आगे बढ़ता रहता है। 

बहरहाल आजादी के अमृत महोत्सव पर मुझे आपसे जो अपेक्षा थी, उसमें लगता है आप चूक गए ! जी हां, बेशक आपने इस यादगार मौके पर देश को एकजुट करने और इस मौके को अविस्मरणीय बनाने के विशेष जतन किये, लेकिन मुझे लगता है इस अवसर पर और भी बहुत कुछ किया जा सकता था या अभी भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कोई ऐसी योजना शुरू की जा सकती थी जिसमें इस वर्ष पैदा हुए बच्चों का 25 वर्ष तक यानी आजादी के सौ बरस पूरा होने तक मामूली रकम पर एक करोड़ रुपये का बीमा होता। यह बीमा बच्चे के एक वर्ष का होने के बाद शुरू होता। फिर 25 बरस का होने पर यानी आजादी के सौ बरस पूरे होने पर उन्हें एकमुश्त बड़ी धनराशि देने का प्रावधान होता। इसी तरह देश के बड़े उद्योगपतियों से भी कहा जाता कि वो इस वर्ष अपने सर्वश्रेष्ठ उत्पाद बनाते और उन्हें बहुत वाजिब कीमतों पर नागरिकों को उपलब्ध कराते। जाहिर है वो उत्पाद आजादी के अमृत महोत्सव का ‘स्पेशल एडिशन’ होते और भले लिमिटेड होते। उदाहरण के लिए देश के उद्योग रतन रतन टाटा इस मौके पर अपनी सर्वश्रेष्ठ गाड़ियां सबसे वाजिब दाम पर लांच करते। या कोई ज्वेलर या सरकार खुद ऐसा सोने का अलग-अलग वजन का सिक्का या मोहर या अशरफी लांच करती, जिसे 25 बरस तक रखना होता और उसके बाद उसकी वापसी पर सरकार उस पर तय और बड़ा मुनाफा देती। आखिर वो सिक्का आजादी के अमृत महोत्सव की एक यादगार और संग्रहणीय असेट होता। गोया सरकार ही नहीं, बल्कि उद्योग जगत और अन्य लोगों को भी ऐसा कुछ विशेष करने के लिए प्रोत्साहित करने का बहुत कुछ सोचा और किया जा सकता था और मुझे लगता है आप उसमें चूक गए। 

बहरहाल एक ख्याल यह है कि यह युग प्रतिस्पर्धा का और गुणवत्ता का है। क्या ही अच्छा होता कि आप देश को यह आव्हान करते कि देश इस वर्ष को अपने हर काम में ज्यादा से ज्यादा एक्सीलेंस लाने वाले वर्ष के रूप में मनाएगा। यानी हर नागरिक से लेकर सरकार तक जो भी जिस काम में रत है उसमें एक्सीलेंस के पीछे जाएगा और उसे लाएगा। इसके अलावा एक आव्हान यह भी हो सकता था कि सरकार देश के हर नागरिक, समाज और पूरे देश को भयमुक्त करने को लक्ष्य बनाकर विशेष प्रयास करेगी। गोया भयमुक्त और एक्सीलेंसयुक्त देश का नारा और योजना भी सोची और पेश की जा सकती थी। जाहिर है पूरे देश को इस अमृत महोत्सव से जोड़ने के साथ उसमें नागरिकों को भी जोड़ते हुए उन्हें देश के लिए कुछ विशेष करने के लिए उत्सुक और प्रेरित  करने की खूब संभावना थी। लेकिन आप सिर्फ हर घर झंडा अभियान तक सीमित रह गए और वैसा विशेष कुछ करने से चूक गए। आप हर हफ्ते देश से मन की बात करते हैं तो हर नागरिक को भी अपने मन की बात आपसे कहने का हक है। वही मैंने किया है। उम्मीद है आप इसे अन्यथा न लेंगे। भारत माता की जय ! जय हिंद !

चंद्रशेखर शर्मा

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