मुनेश त्यागी
गुजरात की बिलकिस बानो केस के 11 बलात्कारियों और हत्यारों को गुजरात सरकार ने आजन्म कारावास की सजा को माफ करके उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया है। गुजरात सरकार का यह कदम एकदम जन विरोधी, कानून विरोधी मनमाना और कानून का और अपनी शक्तियों का खुल्लम खुल्ला उलंघन और दुरुपयोग है।
बिलकिस बानो मामले में 11 बलात्कारियों ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था, उसकी बहनों के साथ बलात्कार किया था और उसकी एक 3 साल की बच्ची को हत्या कर दी थी। अदालत ने इस केस को गंभीरता से लिया और इस केस की जघन्य और नृशंस प्रकृति को देखते हुए इसे “रेयरैस्ट ऑफ रेयरैस्ट” केस की संज्ञा दी थी और तमाम अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दी थी।
गुजरात में हुई गोधरा घटना के बाद फूटी हिंसा में जब बिलकिस बानो अपनी जान बचाने के लिए गांव छोड़ दिया था तब वह 7 माह की गर्भवती थी। वह अपनी तीन साल की बच्ची और 15 परिवार के सदस्यों के साथ गांव छोड़कर इधर-उधर धक्के खा रही थी, तभी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उसकी अबोध बच्ची और उसके सात परिवारिक सदस्यों की जालिमों ने नृशंस हत्या कर दी थी।
सीआरपीसी की धारा 432, 433 और 433ए की धाराएं, राज्य सरकार को ऐसी मनमानी शक्तियां प्रदान नहीं करती है कि वह जानबूझकर राजनीतिक लाभ लेने के आधार पर आजन्म सजा काट रहे सजायाफ्ताओं को जेल से रिहा कर दे। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न अवसरों पर राज्य सरकारों की शक्तियों की सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के अंतर्गत समय-समय पर व्याख्या की है और इस और ध्यान खींचा है कि हत्या और बलात्कार जैसे नृशंस केसों में, सरकार किसी भी अपराधी को माफी का सहारा लेकर, मनमाने तरीके से राजनीतिक लाभ लेने के लिए,जेल से रिहा नहीं कर सकती।
गुजरात सरकार ने इस मामले की प्रकृति को बिना देख हुए और बिना जांच किए ही बलात्कारियों और हत्यारों को रिहा करने के आदेश दे दिए हैं जो कानून विरोधी एक मनमानी, गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण हरकत है। यह गुजरात सरकार का संविधान की धारा 14 समानता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है जो कानून के शासन और मानवाधिकारों और संविधान के आवश्यक प्रावधानों पर कठोर और मनमाना कुठाराघात है।
इन कुख्यात अपराधियों को छोड़े जाने से, बिल्किस बानो के परिवार वाले भयंकर रूप से डर गए हैं और उन्हें एक बार फिर अपनी जान माल का खतरा पैदा हो गया है। गुजरात सरकार का यह कारनामा, आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा औरतों के सशक्तिकरण की घोषणा की एकदम खिलाफ है। यह कानूनी प्रावधानों का खुल्लम खुल्ला और घनघोर उल्लंघन है।
उसका यह कारनामा सांप्रदायिक राजनीति का एक जनविरोधी उदाहरण है और यह गुजरात के आगामी चुनाव को लेकर उठाया गया एक कानून विरोधी और राजनीतिक लाभ लेने के लिए जानबूझकर उठाया गया मनमाना कदम है, जिसका किसी भी दशा में समर्थन और सहयोग नहीं किया जा सकता। सरकार के इस विरोधी और असंवैधानिक कदम से गुजरात की जनता पर और पूरे देश के पैमाने पर बहुत ही ग़लत असर पड़ेगा।
सरकार के इस कदम से, पीड़ित परिवार को जान माल का खतरा पैदा हो गया है। ऐसी स्थिति में सरकार का यह सबसे पहला दायित्व है कि वह बिलकिस बानो के पीड़ित परिवार को तमाम तरह की सुरक्षा प्रदान करें और उसको किसी अनहोनी घटना से बचाया जाए। उसकी और उसके परिवार की, उसके काम और उसके व्यवसाय की संपूर्ण हिफाजत करने के तमाम उपाय किए जाएं और इस ओर तमाम जरूरी कदम उठाए उठाए जाएं। यहीं पर हमारा यह भी कहना है कि पीड़ित परिवारों को समुचित मुआवजा देने के लिए सरकार उनके सभी सदस्यों को सरकारी नौकरी प्रदान करें ताकि उनके साथ समुचित और वास्तविक न्याय किया जा सके।
हमारा कहना है गुजरात सरकार का यह कदम एकदम गैरकानूनी, मनमाना, अन्यायपूर्ण , असंवैधानिक और कानून के शासन के खिलाफ है, संविधान की भावनाओं के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का एकदम खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है। हम सरकार से मांग करते हैं कि गुजरात सरकार अपने गैरकानूनी और असंवैधानिक कदमों को वापस खींचें, अपने निर्णय को वापस ले और बिलकिस बानो मामले के इन सारे हत्यारों और बलात्कारियों को जेल में भेजे, ताकि समाज की नजरों में, कानून का सम्मान, संविधान का सम्मान और राजनीतिक और प्रशासनिक सुचिता बनी रहे।