( ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता पर एक मार्मिक कहानी )
सुरेंद्र कुमार अग्रवाल
कड़ाके की सर्दी..! पारा शून्य डिग्री से भी नीचे..!
कश्मीर में गश्त के दौरान सैनिकों की एक टुकड़ी पहाड़ी रास्ते से गुजर रही थी,उनका कमाण्डर भी साथ था।
रास्ता बेहद कठिन था,साथ ही अंधेरा भी घिरने लगा था..!
अब तो सैनिकों का साहस भी जवाब देने लग रहा था !
पहाड़ी ऊंचे-नीचे रास्ते पर कुछ दूर और आगे बढ़ने पर पहाड़ की ढलान पर एक छोटी सी चाय की दुकान दिखाई पड़ी,परन्तु वह बंद हो चुकी थी। उस सैनिक टुकड़ी के लगभग सभी सैनिकों ने थकी आँखों से अपने कमाण्डर की तरफ देखा।
कमाण्डर को भी समझ में आ गया था कि सभी सैनिक चाय पीना चाहते हैं।
तभी कमाण्डर ने आदेश दिया कि हम कुछ समय केे लिये यहीं आराम करेंगे।
आदेश मिलते ही उस सैनिक टुकड़ी के सभी सैनिक वहीं पर बैठ गये। उनमें से एक सैनिक बोल पड़ा कि ‘यार अगर इस ठंड में एक – एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता। कमाण्डर समझ गये कि इस कड़ाके की ठंड में सैनिकों की चाय पीने की तीव्र इच्छा हो रही है। ‘ कमाण्डर ने कहा – ‘परन्तु इस चाय की दुकान पर तो ताला बंद है,चाय कैसे पीएंगे ?
एक सैनिक ने कहा,’साब जी ! इस दुकान का ताला तोड़ देते हैं,वैसे भी हमीं लोग इन गरीब लोगों की आतंकवादियों से रक्षा भी तो करते हैं ! ‘ ‘एक कप चाय तो बनती है, इतना तो हमारा अधिकार बनता है,वैसे भी हमें कौन सी दुकान लूटनी है ! ‘ इतना कहने के तुरंत बाद उस दुकान के दरवाजे पर लगे ताले को तुरंत तोड़ दिया गया। सभी ने उस दुकान में चाय पी,और वहां रखे बिस्किट खाए और चल पड़े अपने रास्ते पर,परन्तु कमाण्डर ने जाते -जाते उस चाय की दुकान के टेबल पर 500 के दो नोट रख दिए !
सुबह जब दुकानदार अपनी चाय की दुकान पर आया तो उसने देखा कि उसकी दुकान का ताला टूटा हुआ है तो वह अपना माथा पीटते हुए बोला, ‘हे भगवान..! एक तो वैसे भी मेरे पास बच्चे के इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं,ऊपर से दुकान भी लुटवा दी ! ‘
वह घबराया हुआ अपनी दुकान के अंदर गया और देखा कि सामान तो सब ठीक था,बस तारों में भरे बिस्किट कुछ खाली हो गए थे। वह गरीब दुकानदार अपने सर पर हाथ रख कर टेबल पर बैठा ही था कि उसे उसी भेज पर एक बिस्कुट के जार के नीचे 500 के दो नोट आधे दबे पड़े दिखाई पड़े !
वह खुशी से झूम उठा।
अगले दिन जब सैनिकों का जत्था उसकी दुकान की तरफ वापस आया तो वे उन सैनिकों का जत्था उसकी दुकान पर चाय पीने के लिये फिर रूके। दुकानदार ने गाना गाते हुए,झूमते हुए सभी को चाय पिलाई !
एक संवेदनशील और दयालु स्वभाव का एक सैनिक ने सोचा रात को इसकी दुकान पर कल ही हमारी पूरी सैनिक टुकड़ी ने खूब दावत उड़ाई थी,लेकिन ये ऐसे झूम रहा है,जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो !
यह सोचकर उसने दुकानदार से पूछ ही लिया, ‘चाचा बहुत खुश लग रहे हो,क्या बात है ? हमें भी तो अपनी खुशी का राज बता दो। ‘
इस पर दुकानदार ने हँसते हुए बोला, ‘क्या बताऊं साहब..! कल रात मेरी दुकान पर भगवान आए थे,दुकानदार की यह बात सुनते ही सब की निगाहें दुकानदार पर जा टिकीं। ‘
‘भगवान ? अब कई सैनिकों ने बड़ी हैरानी से पूछा। ‘
‘हां हां भगवान..! ‘
‘बात दरअसल यूं है कि मेरा बेटा बहुत दिनों से बीमार है। मेरे पास उसके सही इलाज कराने के भी पैसे नहीं थे। बहुत कोशिश करने के बावजूद भी कहीं से पैसों का इन्तजाम नहीं हुआ तो सोचा कि क्यों न दुकान का सामान बेच कर ही अपने बेटे का इलाज करवा लूँ। वैसे भी औलाद के बिना जी कर क्या करूंगा, मेरा इस दुनिया में मेरे इस बेटे के सिवा और कोई नहीं है ,जिसके लिए मैं जीऊं ! ‘
‘आज जब मैं दुकान पर आया तो देखा की मुझ गरीब आदमी की दुकान का ताला टूटा पड़ा मिला,पहले तो लगा कि दुकान लुट गई है,अब मेरे बेटे का क्या होगा ? ‘
‘फिर ? ‘
‘ लेकिन जब मैं अंदर आया तो देखा भगवान ने हमारी इस दुकान में बैठ कर चाय पी थी,बिस्किट भी खाए थे और 500 रूपये के दो नोट भी रख कर चले गये थे ! ‘
‘शायद..! ‘
‘उनको पता था कि मुझे एक हजार रु की ही जरूरत है अपने गंभीर बीमार पड़े बेटे के इलाज के लिए ! ‘
दुकानदार की यह बात सुन कर लगभग सभी सैनिक कमाण्डर की तरफ देखने लगे !
कमाण्डर ने अपनी आँखों से इशारे से ही अपने सभी सैनिकों को समझा दिया कि ‘वैसे तो भगवान काल्पनिक है,लेकिन किसी का अटूट विश्वास भगवान पर बना है,तो बना रहे हमें अपना कर्तव्य ईमानदारी और प्रतिबद्धता से करते रहना चाहिए,इसमें अपने देश और यहां के समाज सभी की भलाई है।
उस गरीब दुकानदार द्वारा दिल से बनाई गई स्वादिष्ट और बेहतरीन चाय को सभी सैनिकों ने पीकर अपने रास्ते चलते बने।
दोस्तो..!
कई बार हमारे द्वारा की गई छोटी सी मदद भी किसी गरीब की जिन्दगी में बहुत बदलाव ला सकती है,किसी की जान बचा सकती है !चाहे हम इसे महसूस न कर पायें,परन्तु जिसकी मदद की जाती है वह हमारे प्रति हमेशा आभारी रहता है। और वैसे भी मनुष्य द्वारा बनाए काल्पनिक भगवान खुद कभी भी इस दुनिया में किसी की मदद करने नहीं आता,वास्तविकता में इसी दुनिया में नेकदिल और दयालु लोग भले ही बहुत ही कम संख्या में होते हैं,लेकिन वैसे दयालुता,परोपकारी, सहिष्णुता,मददगार स्वभाव के लोग होते हैं,जो इस दुनिया के गरीब व जरूरतमंद लोगों को बिना किसी अपने स्वार्थ के तन,मन और धन से मदद कर जाते हैं,ऐसे नेकदिल व सज्जन लोगों को ही कथित भगवान का अवतार माना लिया जाता है !
प्रस्तुतकर्ता श्री सुरेंद्र कुमार अग्रवाल, सेवानिवृत्त डाक अधीक्षक लखीमपुर खीरी उप्र, संपर्क – +91 94114 57303, ईमेल – Agarskmrt@yahoo.com
संकलन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क -9910629632