अग्नि आलोक
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दिन  हो    गए  है  बोझल,  राते  बसर नहीं

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सरल कुमार वर्मा

दिन हो गए है बोझल राते बसर नहीं
इंसान है कितने जिंदा कोई खबर नहीं

बेपरवाह नहीं हवाएं जगाती है पत्ता पत्ता
आहट का आंधियों की जिनको खबर नहीं

बेशक तुम्हारा दिल है सदियों से गर्त में
चेहरे पर धूल की तुमको अब भी खबर नहीं

सावन की बूंदे पाकर धरती खिली मगर तुम
धरती पाकर हो तंग दिल कितने खबर नहीं

मिल बांट कर खाओ निवाला छीन कर नहीं
इंसान हो या जानवर कुछ भी असर नहीं

उम्मीद कुछ तो पालो कुछ हौसला दिखाओ
खामोश जज़्बातो की होती कदर नहीं

सिमट रही है दुनिया बारूदी होड़ में
क्या हल ” सरल” निकलेगा कोई खबर नहीं
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,यूपी
9695164945

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