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भारतीय हूँ विदेश में?

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी आज बहुत व्यस्त हैं। मै जब उनसे मिलने गया तब वे अपने पूर्वजों का इतिहास ढूंढ रहे थे।
मैने कारण जानना चाह तो कहने लगे मै(सीतारामजी) अपने भविष्य की चिंता कर रहा हूँ।
मैने पूछा भविष्य की चिंता करना और अपने पुरखो के इतिहास को ढूंढने का क्या कारण है?
सीतारामजी ने कहा,मै अपने जीवन में बहोत्तर सावन देख चुका हूँ। अभीतक तो मैं सिर्फ और सिर्फ भारतीय ही हूँ। मुझे अपने भविष्य की चिंता सता रही है, कभी,भगवान ना करें मेरे यहाँ किसी जाँच एजेंसी का आगमन हो जाए और मेरे साथ मेरे परिजनों और मित्रों के यहाँ भी जाँच दल पहुँच जाए तब मुझे ज्ञात होना चाहिए। मै कौन से वर्ण का हूँ। कहीं में किसी राजपूत का सपूत तो नहीं हूँ?
सीतारामजी की बात सुनकर मुझे हँसी आ गई।
मैने कहा सच में आप व्यंग्यकार ही हैं।
सीतारामजी ने कहा अपना देश संस्कार,संस्कृति,और आदर्श का देश है। अपने देश में कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था की रचना हुई है।
संत कबीरसाहब ने समाज में व्याप्त रूढ़ियों और अन्धविधवासों पर करारा व्यंग्य करतें हुए निम्न पँक्तियों की रचना की है।
जाति पांति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि को होय
सीतारामजी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि, निम्न श्लोक में ब्राह्मण की परिभाषा बताई गई है।
ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः अर्थात् ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है “ईश्वर का ज्ञाता”।
इसी परिभाषा को व्यापक स्तर पर परिभाषित करतें हुए,
महाभारत के शांति पर्व में महर्षि व्यासजी ने ब्रह्म की खोज करने वाले ब्राह्मण को परिभाषित किया – येन सर्वमिदं बुद्धम प्रकृतिर्विकृतिश्च या, गतिज्ञः सर्वभूतानां नं देवा ब्राह्मणा विदुः -अर्थात जिसको इस सम्पूर्ण जगत की नश्वरता का ज्ञान है, जो प्रकृति और विकृति से परिचित है तथा जिसे सम्पूर्ण प्राणियों की गति का ज्ञान है उसे देवता लोग ब्राह्मण जानते हैं।
सीतारामजी ने कहा इनदिनों ब्राह्मण किसे कहा जा रहा है?
किसी माँ की कोख में पल रहें अर्ध विकसित भ्रूण, जो कुछ माह बाद अपनी माँ का ममत्व पाने के लिए के लिए प्राकृतिक रूप से विकसित होने की प्रक्रिया में था। अविकसित भ्रूण, माँ के साथ नृशंसता का शिकार हो जाता है। ऐसे नृशंस कृत्य को अंजाम देने वालों को उच्च वर्ण का कहकर, संस्कारित होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है?
सीतारामजी ने कहा इसीलिए मैं अपने पूर्वजों के इतिहास हो खोज रहा था। मुझे मेरी गलती का एहसास तब हुआ जब,
यकायक मेरे जेहन ने मुझे ललकारते हुए कहा ये क्या कर रहें हो। भूल गए इसी धरा पर स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे संत जन्में है। राजा राममोहनराय जैसे परिवर्तन करी जन्में है।
बहुत बड़ी फेरहिस्त है। महात्मा गांधी, डॉ राममनोहर लोहियाजी
जयप्रकाश नारायणजी विनोबा भावेजी,और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी शहादत देने वाले क्रांतिवीरों ने जन्म लिया है उन्हें कैसे भूल जाते हो? असंख्य विचारक चिंतक जन्में है। असंख्य साहित्यकारों ने इस धरा पर जन्म लिया है। सर्वधर्मसमभाव रखने वालें संत रहीम खान और कृष्णभक्ति में लीन संत रसखान भी जन्में हैं।
सीतारामजी ने कहा जब मैने अपने जेहन की आक्रोशित आवाज सुनी तब मुझे आत्मग्लानि हुई।
मैने स्वयं से कहा लानत है मुझे।
मै पूर्वजो के इतिहास को भूल कर स्वयं की भारतीय होने की पहचान ही भूल रहा था।
जो भारतीय है उसे किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है।
हमारे पूर्वज जो क्रांतिकारी,साहित्यकार, विचारक,सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्यरत देशभक्त कलाकार, गायक,परिवर्तनकारी हुए हैं,
इन सभी में देशभक्ति के साथ भारतीयता भी जीवित थी। ये लोग स्त्री का सम्मान करना अपना दायित्व समझते थे।
स्वतंत्रता संग्राम सम्पूर्ण देश की स्वतंत्रता के लिए लडा गया किसी कौम के लिए नहीं?
सीतारामजी ने कहा वो दिन कब आएगा जब अपने देश के हर नागरिक में भारतीयता जागृत होगी? वर्तमान में अपने देश का निवासी सिर्फ विदेश में अपनी पहचान भारतीय बताता है।
सीतारामजी सम्पूर्ण वक्तव्य सुनने के बाद मैने अपनी प्रतिक्रिया बिहारी संत सतसँया के निम्न दोहे के माध्यम से प्रकट की।
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखना में छोटे लगै, घाव करें गंभीर।

नावक का अर्थ शिकार करने वाला शस्त्र। जिस तीर को जोर से फूंक कर शिकार पर छोड़ा जाता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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