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कृतज्ञता बनाम कृतघ्नता

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शशिकांत गुप्ते

अपने देश को स्वतंत्र होकर पचहत्तर वर्ष पूर्ण हो गए हैं। हम स्वतंत्रता की सौ वी वर्षगांठ मनाने के लिए अग्रसर हैं।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किए गए संघर्ष और संघर्ष में जिन लोगों ने अपना बलिदान दिया उनके प्रति हमें अपनी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।
कृतज्ञता का अर्थ है अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदर्शन करना।
सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में परिवर्तन के प्रत्यक्ष संघर्ष करने लोगों की संख्या बहुत कम होती है।
बहुत से लोग संग्राम में अप्रत्यक्ष सहयोगी होतें है। बहुत से अपनी क्षमता के अनुसार आन्दोलनकारियों की हौसला अफ़जाई करतें हैं।
बहुत से लोग इतंजार में रहतें हैं। कब सफलता मिलेगी और हम उसका उपभोग कर पाएंगे। ऐसे लोगों के लिए कहा जाता है कि, इन लोगों में कृतघ्नता है।
कृतघ्नता का अर्थ,किसी के द्वारा अपने प्रति किए गए सत्कार्यो को भूल जाने वाले या न मानने वाले व्यक्ति को कृतघ्न कहते हैं, तथा इस प्रकार की क्रिया कृतघ्नता कहलाती है।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए लगभग ग्यारह वर्षो तक जेल में रहें हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री की उपलब्धियों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें स्वतंत्रता के दिन भूल जातें है। इसे कृतघ्नता ही कहतें हैं। वास्तव में ऐसे व्यक्ति के लिए कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।
मजबूती का नाम महात्मा गांधी को जब हम मजबूरी का नाम कहतें है,तब हम गांधीजी के प्रति कृतघ्नता ही तो प्रकट करतें हैं।
बापू की हत्या को जब हम वध कहतें हैं,बापू को अपमानित करने की चेष्ठा करतें हैं।
इस मानसिकता को कृतघ्नता ही कहा जाएगा।
दुर्जनों का वध होता है, सुजनों की हत्या होती है। राम भगवान ने दैत्यराज रावण का वध किया था। कृष्ण भगवान ने कंस का वध किया था।
जिन लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में किसी तरह कोई भूमिका नहीं निभाई वे भी स्वतन्त्रता का उपभोग कर ही रहें हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाले और सक्रिय भूमिका का निर्वहन करने वालो से सम्पूर्ण देश के लिए और देश के हर एक नागरिक के लिए संग्राम किया है।
वर्तमान में मराठी भाषा की कहावत चरितार्थ हो रही है।
खोदवे उंदर भोगे भुजंग,आइत्या बिळावर नागोबा
इस कहावत का शब्दार्थ है,चूहें अपने रहने के लिए बिल बनातें हैं और चूहों के बनाए रेडीमेड बिल में नाग बसेरा करतें हैं।
इस कहावत का भावार्थ है। कोई अथक मेहनत करता है,और महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त करता है। इस उपलब्धि कोई दूसरा ही भुनाता है।
हमें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को भूलना नहीं चाहिए।
स्वतंत्रता संग्राम में अपनी शहादत देने वालों और संघर्षरत रहने वालों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।
हर एक क्षेत्र में सतत संघर्षरत रहने वाले अपने जुनून को यूँ बनाएं रखतें हैं। शायर साहिर लुधियानवी का यह शेर है।
हजारों बर्क गिरे लाख आंधियां उठे
वो फूल खिल कर ही रहेंगे जो खिलने वाले हैं

हौसला अफ़जाई के लिए शायर जिगर मुरादाबादी फरमातें हैं।
अपना ज़माना आप बनातें हैं हाल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिनको जमाना बना गया

इंदौर के बहुत साधारण से कवि थे। यह थे तो साधरण लेकिन इनकी लेखनी असाधारण थी।
इनका नाम रमेश मेहबूब था।
इन्होंने लालकिले के कवि सम्मेलन में प्रथम प्रधानमंत्री की उपस्थिति में कविता की यह पंक्तिया सुनाई थी।
आजादी अभी राहों में है
चंद पूंजीपतियों की बाहों में है

ये पंक्तिया आज भी प्रासंगिक है।
सामाजिक,आर्थिक,सांकृतिक, और राजनैतिक परिवर्तन का दायित्व साहित्यकारों पर है। यह संघर्ष निरंतर चलने वाला है।
इसीलिए शायर एजाज रहमानी का यह शेर याद रखा जाए।
अभी से पाँव के छाले न देखों
अभी यारों सफर की इब्तिदा है

(इब्तिदा मतलब शुरुआत)

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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