मुनेश त्यागी
कुछ झलकियां,,,,,
बच्चों के योनिक अपराध 2020 में एक लाख में 10.6 थे जो 2021 में बढ़कर 12.1 हो गए हैं।
महिलाओं पर हो रहे अपराध पिछले साल में 15.3 प्रतिशत बढ़े हैं जो 2020 में 3,71,503 थे, वे 2021 में बढ़कर 4,28,278 हो गए हैं।
दैनिक रूप से खाने कमाने वालों में आत्महत्या 2014 से लेकर 2021 तक लगातार बढ़ती रही है जो 2014 में 12% से बढ़कर 2021 में 25.06 परसेंट हो गई है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या की दरें जो 2019 में 1.39 लाख थी वह 1921 में बढ़कर 1,64,033 हो गई है।
दिहाड़ी मजदूर, छात्र, पेशेवर, ग्रहणियां, खेतीबाड़ी से जुड़े लोग और बेरोजगारों में खुदकुशी की दर 2019 से 2021 तक काफी बढ़ गई है। आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या गरीबों की है। आत्महत्या करने वालों में दो तिहाई लोग कम आय वाले यानी गरीब लोग हैं। यहां पर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इन हत्याओं का कारण क्या है? इन लोगों के पास जीविकोपार्जन का स्थाई जरिया नहीं है। इनके पास धन दौलत नहीं है, जमीन नहीं है, इनके पास शिक्षा और रोजगार नहीं है, स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। आमतौर से इन लोगों की जिंदगी आज भी सबसे ज्यादा असुरक्षित और अभावग्रस्त है।
रानीपोखरी, उत्तराखंड के 47 वर्षीय महेश कुमार ने पूजा में खलल डालने की बात कहकर अपनी पत्नी नीतू देवी, मां बेतन देवी और तीन बेटियों अपर्णा, स्वर्णा और अन्नपूर्णा की चाकू से गला काटकर हत्या कर दी है। बताया जाता है कि वह पिछले काफी समय से बेरोजगार था और अपना ज्यादा समय पूजा-पाठ में लगा रहता था। वाह जी वाह कमाल की पूजा पाठ करता था वह और अंधविश्वास, धर्मांधता, अज्ञानता और पाखंड के बल पर उसने कितना विकास कर लिया था?
एक ओर देश के चंद पूंजीपतियों की संपत्ति में लगातार दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर 85% परिवारों की आय पिछले सालों में घटी है। सरकार की पूंजीपति समर्थक नीतियों के कारण गौतम अडानी दुनिया का तीसरे नंबर का और एशिया का सबसे बड़ा धनी व्यक्ति बन गया है उसके पास 11 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है। अभी-अभी अंबानी ने अपने बेटे के लिए दुबई में 460 करोड रूपए का शानदार और आलीशान मकान खरीदा है। वहीं दूसरी ओर 18 करोड़ लोगों के पास आज भी सर ढकने के लिए छत नहीं है, अपने छोटे छोटे मकान तक नहीं हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
अभी हमने देखा की हमारे देश में मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है और आज हमारे देश में 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमें अदालतों में लंबित हैं। इन मुकदमों को निपटाने के लिए पर्याप्त संख्या में जज नहीं हैं, कर्मचारी नहीं हैं, स्टेनो नहीं हैं, बाबू नहीं हैं और पर्याप्त संख्या में न्यायालय और दूसरी जरूरी चीजें नहीं हैं और यह संख्या और समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है लगातार कहने सुनने के बाद भी वह गूंगी, बहरी और निष्क्रिय बनी हुई है।
हमारे देश में पिछले लगातार कई सालों से स्कूलों की संख्या कम की जा रही है, पर्याप्त संख्या में अध्यापक नियुक्त नहीं किए जा रहे हैं। सरकार ने उनके पद ही खत्म कर दिए हैं। इस प्रकार बहुत सारे गरीब छात्रों को पढ़ने के अधिकार से एक साजिश के तहत वंचित किया जा रहा है और सरकार की ये नीतियां लगातार विकास क्रम की ओर जारी हैं।
यही हाल स्वास्थ्य क्षेत्र का है, जहां लगातार स्वास्थ्य बजट में केंद्र सरकार द्वारा कमी की जा रही है। अस्पताल नहीं बनाए जा रहे हैं, नए डॉक्टरों की, स्टाफ नर्सिज की, वार्ड बॉय की, तकनीशियनों की नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं और मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया गया है या बहुत सारे गरीब, बीमार पैसे के अभाव में और दवाइयों के अभाव में दम तोड़ रहे हैं और सरकार की नीतियां इसी तरह से, बिना रुके और निर्बाध रूप से जारी हैं।
उपरोक्त के आलोक में हम देखते हैं कि पिछले 8 साल में जो विकास हुआ है, वह आत्महत्याओं में विकास हुआ है, महिला और बच्चों के साथ होने वाले अपराध बढ़े हैं, दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर मजदूरों, छात्रों, पेशेवरों, छोटे छोटे दुकानदारों, खेतीबाड़ी से जुड़े लोगों और बेरोजगार लोगों में खुदकुशी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, पूजा-पाठ, अंधविश्वास, पाखंडों, जातिवादी और धर्मांध मुद्दों को लेकर लगातार आत्महत्याएं, झगड़े और हिंसा हो रही है और इन मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, ये सब के सब लगातार विकास के मार्ग पर आरूढ़ हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार कटौती की जा रही है और वहां पर उपलब्ध सुविधाओं को लगातार खत्म किया जा रहा है।
इस प्रकार हम देख रहे हैं कि यह किसका विकास है, कैसा विकास है, कौनसा विकास है? हम लगातार देख रहे हैं कि यहां गरीबों, शोषितों, अभावग्रस्तों, मजदूरों, किसानों, खेतिहर मजदूरों बेरोजगारों की आय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। उनका किसी भी तरह का कोई विकास नहीं हो रहा है। वे विकास से कोसों दूर हैं।
हां यहां पर हम पूरे इत्मीनान के साथ कह रहे हैं कि मोदी सरकार आने के बाद इस देश के चंद पूंजीपति घरानों की आय में बेतहाशा वृद्धि हुई है, वे देश और दुनिया के चंद गिने चुने पूंजीपतियों में शामिल हो गए हैं, वे चंद धन्ना सेठों की श्रेणी में आ गए हैं। इस प्रकार हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या यानी 80% से भी ज्यादा जनता विकास से बहुत बहुत दूर है। यहां पर हमें आश्चर्य के साथ कहना पड़ता है कि कैसा विकास, किसका साथ और किसका विकास?