संजय कनौजिया की कलम”✍️
इंद्रा आवास योजना के तहत दलितों को आवास मुहैय्या कराना..दूध आपूर्तिकर्ताओं को कस्बों और शहरों में स्वतंत्र रूप से गौशाला स्थापित करने की अनुमति देना..भारतीय अधिकारों के अग्रणी चैम्पियन के बाद, बिहार विश्वविद्यालय का नाम बदलकर “डॉ० बी. आर. अंबेडकर” विश्वविद्यालय कर दिया गया..सोलहवीं शताब्दी के “संत रविदास” की जयंती के उपलक्ष्य में राजकीय अवकाश घोषित किए गए थे, जो अपने जीवनकाल में सामाजिक समानता के प्रबल समर्थक बने रहे..लालू यादव की सरकार ने “दलित नायक चुहरमल” की स्मृति में मेलों को आधिकारिक समर्थन दिया, जिन्हे प्रमुख जाति के उत्पीड़न से लड़ने का श्रेय दिया जाता है..जनता दल के सार्वजनिक जीवन में राज्य के समुदायों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व के वायदे के अनूरूप, विश्वविद्यालय स्तर पर के निर्णय लेने वाले निकायों में ओ.बी.सी के लिए 50% (प्रतिशत) सीटें आरक्षित की गईं जिसमे लालू यादव की भूमिका अग्रणी रही..इन नीतिगत हस्तक्षेपों को लागू करने के उद्देश्य राजनीतिक रणनीतियां थीं..(एक)- जनता दल ने सार्वजनिक रैलियों का आयोजन करके ग्रामीण गरीबों का राजनीतिकरण किया, जिसके माध्यम से उन्होंने जातिगत भेदों को काटकर साझा एकजुटता विकसित की.. प्रख्यात विदेशी लेखक “जेफरी विटसो” के अनुसार वह बताते हैं कि हम लालू यादव वर्षों के दौरान राज्य सरकार द्वारा आयोजित जागरूकता रैलियां, जिसमे किसानो और ग्रामीण गरीबों को यात्रा करने और पटना के बीचों-बीच अपनी सामूहिक उपस्थिति का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया जाता था, जिससे शहर के कुलीन वर्ग में नैतिक दहशत पैदा होती थी..(दूसरा)- लालू यादव ने राजनेताओं और राजनीतिक मध्यस्थों के साथ व्यक्तिगत नेटवर्क विकसित किया, ना कि उनकी जाति के आधार पर, उनके साथियों में राजपूत और भूमिहार शामिल थे, जो खुद को लालू यादव के समुदाय से श्रेष्ठ बताते थे..लालू यादव के सामने उच्चजाति के राजपूत और भूमिहार नेताओं की याचना वाली छवि ने, मुख्यमंत्री के ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र को रोमांचित कर दिया..जो उन्हें औपनिवेशिक और कांग्रेस शासन के दौरान प्रितृसत्ता के पारम्परिक मुहावरों के उलट होने का प्रतीक था..(तीसरा)- लालू यादव की सरकार ने राज्य की नौकरशाही के साथ-साथ विशेषाधिकार प्राप्त जातियों के वर्चस्व वाली पुलिस पर लगाम कसी..जब भूमिहीन मजदूरों ने जमींदारी द्वारा अवैध रूप से रखी गई कृषि सम्पतियों पर कब्ज़ा करने की मांग को ग्रामीण गरीबों, विशेष रूप से ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित दलित और पिछड़ी आबादी के बीच सम्मान की भावना पैदा की..!
अपनी स्थापना के बाद से लालू यादव, जनता दल सरकार को राज्य में जातिवाद को बढ़ावा देने के आरोपों का सामना करना पड़ा..यात्रा लेखक “विलियम डेलरिम्पल” ने कांग्रेस के खिलाफ अपने अपने अभियान के दौरान लालू यादव के चुनावी भाषणों में से एक को याद किया, जो संघर्ष की कल्पना से भरा हुआ था..”हमारी लड़ाई पवित्र धागा पहनने वालों के खिलाफ है, सदियों से पुजारियों ने किसानो को लूटकर भाग्य बनाया है..अब में उनसे कहता हूँ कि मवेशियों को दूध देना और उन्हें चराना सीख लें, नहीं तो वे भूखे मर जाएंगे”..जहाँ तक बिहार की जमींदारी की दबंग जातियां देख सकतीं थीं, लालू यादव का आना किसी आपदा से कम नहीं था..लालू यादव की गरिमा की राजनीति ने राज्य के ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित लोगों को उन सत्ता संबंधों को चुनौती देने की अनुमति दी, जिन्होंने उन्हें सदियों से दमित किया था..बात चाहे लालू के समर्थन की हो या विरोध की, इतना तो तय है कि बिना लालू नाम के बिहार की राजनीति का चक्का आगे नहीं बढ़ता..समर्थन और विरोध अपनी जगह हैं लेकिन लालू यादव को नकारना किसी के वश की बात नहीं..जाहिर है वर्ष 2024 में होने वाले इस बार के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर लालू ही मुख्य किरदार हों..आज भी लालू यादव के बहुत ही बड़े व अति-महत्वपूर्ण वह “दो मुद्दे” जो बिहार की पूरी तरह से कायाकल्प ही बदल देंगे जो किसी ना किसी कारण से राजनीतिक प्रस्थितिवश अधर में लटके हुए थे..जिन्हे लालू यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल तथा लालू यादव के पुत्र व उत्तराधिकारी तेजश्वी यादव लगातार उठाते रहें है और अपना संघर्ष भी जारी रखें हुए हैं, बिहार को “विशेष राज्य का दर्ज़ा” एवं “जातिगत जनगणना”..जिसमे जातिगत जनगणना ने वर्तमान में बिहार प्रान्त के भीतर गति भी बना ली है, और मुख्यमंत्री नितीश कुमार तथा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, अब तो इस मुद्दे को अमलीजामा पहनाने की सफल तैयारी भी कर चुके हैं..लालू यादव का इस जातिगत-जनगणना के मुद्दे ने देश के अन्य राज्यों की मांग भी बना डाली जिसकी मुखर आवाज आज उत्तर-प्रदेश, मध्य प्रदेश व और अन्य राज्यों में सुनने को मिल रहीं हैं..यह लालू यादव के उस व्यक्तित्व का ही करिश्मा है, जिसमे गांधी-अंबेडकर-लोहिया-जयप्रकाश और कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय व समता के सिद्धांत को उजागर करता है..लालू यादव ने, महान आदर्शों के लगातार दिखाए राजनीतिक “दशा और दिशा” को अपने अनूठे अंदाज़ के आधार पर आगे बढ़ाते हुए, केवल बिहार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को जातिगत-जनगणना के फार्मूले से, दलित-पिछड़ी जातियों को सरकारी संस्थानों से मिलने वाले लाभों को सुझाया है..अतः लालू यादव को बिहार से ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष से, कोई भी नकारने की हिम्मत नहीं करेगा..यही है बिहार की मिटटी की कशिश..आंदोलनों की जननी बिहार ने देश की आजादी के बाद भी, मुल्क को सब कुछ दिया, एक से बढ़कर एक, अनेकों विद्वान दिए, लेखक, चिंतक, शोधकर्ता दिए, प्रख्यात प्रशासनिक अधिकारी दिए, अकेडिक डॉ०, प्रोफ०, इंजीनियर, अधिवक्ता दिए, उच्च स्तरीय वैज्ञानिक, चिकित्सक दिए, अर्थशास्त्री, समाज शास्त्री, नागरिक शास्त्री, साहित्यकार, कवि, शायर, हास्य-विनोद सहित चलचित्र व नाट्य जगत के कलाकार दिए, विश्वस्तरीय खिलाड़ी दिए, लोक-भाषा, भूषण, भोजन से परिचय करवाया, उच्च कोटि के राजनेता व सामाजिक योगदान के कार्येकर्ता दिए, आदि इत्यादि..यहाँ तक की देश का प्रथम राष्ट्रपति दिया..नहीं दिया तो केवल भारत वर्ष को “प्रधानमंत्री” नहीं दिया..केवल प्रधानमंत्री बनाने में सहयोग अवश्य किया..बिहार किंग-मेकर की भूमिका में अपना योगदान देता रहा…
धारावाहिक लेख जारी है
लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)