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तब इंदिरा को रात में संसद से सीधे तिहाड़ ले गई थी सीबीआई

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कांग्रेस छोड़ अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर चुके दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने अपनी पहली रैली में इंदिरा गांधी से जुड़ी एक घटना का जिक्र करके बहुत बड़ी बात कह डाली। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेता शाही मिजाज के हो गए हैं जिसके कारण पार्टी का पतन हो रहा है। उन्होंने 1978 की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का विरोध करने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा था जहां उन्हें काफी कठिनयां झेलनी पड़ी थी। उन्होंने कहा कि आज कांग्रेस नेता धरना-प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार होते हैं तो तुरंत पुलिस के पास पैरवी होने लगती है। आजाद ने तंज और आरोपों की शक्ल में ही सही लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी सीख दे दी है।

गुलाम नबी आजाद ने किया इंदिरा की गिरफ्तारी का जिक्र

आजाद ने 1978 में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि तब की कांग्रेस और अब की कांग्रेस में आसमान-जमीन का फर्क है। उन्होंने कहा कि तब कांग्रेसी जमीन पर काम करते थे, आज के नेता ट्वीट और एसमएमस से ही काम चला रहे हैं। उन्होंने तंज में कहा भी, ‘हमें जमीन नसीब हो, उन्हें ट्वीट।’
उन्होंने कहा, ‘मैं ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस का महासचिव था जब इंदिरा गांधी को 20 दिसंबर 1988 को संसद से बर्खास्त करके उन्हें सीधा तिहाड़ जेल ले गए। तब मैंने दिल्ली के यूथ कांग्रेस के 5 हजार लड़कों को जुटाकर दिल्ली की जामा मस्जिद से संसद की तरफ बढ़ा, लेकिन रास्ते में हम सबको गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया। इंदिरा गांधी तो एक-दो हफ्ते में छूट गईं, लेकिन हमें अगले साल जनवरी में छोड़ा। वो जमानत चाहते थे, हमने जमानत नहीं ली थी।’ दरअसल, आजाद 20 दिसंबर 1988 नहीं 19 दिसंबर 1978 की बात कर रहे थे।

आखिर 19 दिसंबर 1978 को क्या हुआ था?

आजाद ने जिस घटना का जिक्र किया, दरअसल वो इंदिरा गांधी की संसद से हुई गिरफ्तारी की है। 1977 के आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। नई सरकार में इंदिरा गांधी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग उठी। सरकार पर दबाव था कि आपातकाल लगाने के लिए इंदिरा गांधी को सबक सिखाया जाए। तब 19 दिसंबर 1978 को इंदिरा गांधी को लोकसभा से निलंबित कर दिया करके गिरफ्तार किए जाने का प्रस्ताव पारित हुआ। हालांकि, इंदिरा सदन से टस-से-मस नहीं हुईं। आखिरकार रात में लोकसभा अध्यक्ष ने गिरफ्तारी का आदेश जारी किया। स्पीकर के आदेश पर तत्कालीन सीबीआई ऑफिसर एनके सिंह संसद भवन पहुंचे। तब इंदिरा ने बिना ना-नुकुर संसद भवन के उसी दरवाजे से निकलीं जिससे वो बतौर प्रधानमंत्री निकला करती थीं। उन्हें गिरफ्तार करके सीधे तिहाड़ जेल ले जाया गया जहां उन्हें सात दिन रखा गया। इंदिरा जब 1980 में फिर से प्रधानमंत्री बनीं तो एनके सिंह को सीबीआई से निकाल दिया गया।

जब इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी को लेकर हुआ असमंजस, फिर मैजिस्ट्रेट ने जताई थी हैरानी

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  • operation-blunder-when-indira-gandhi-was-arrested-on-3-october-read-here-full-storyइंदिरा गांधी पर चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की गईं जीपों की खरीदारी में करप्‍शन का आरोप लगा था। दरअसल, उत्‍तर प्रदेश के रायबरेली जिले में चुनाव प्रचार के मकसद से इंदिरा गांधी के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं। उनके विरोधियों का आरोप था कि जीपें कांग्रेस पार्टी के पैसे से नहीं बल्कि उसके लिए उद्योगपतियों ने भुगतान किया है और इस तरह सरकारी पैसे का इस्तेमाल किया गया है।
  • एक राय यह भी है कि इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के पीछे आपातकाल बड़ी वजह थी। इस थिअरी के मुताबिक, आपातकाल के दौरान हुए अत्याचार और नाइंसाफी से नेताओं के बीच इंदिरा को लेकर नाराजगी थी क्‍योंकि उस वक्‍त कई नेताओं को जेल भेज दिया गया था। इससे गुस्‍साए लोग चाहते थे कि इंदिरा गांधी को भी जेल भेजा जाए। चुनाव में इंदिरा गांधी की हार के बाद उनकी गिरफ्तारी का रास्ता और साफ हो गया।
  • तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी की सरकार बनते ही इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के पक्ष में थे लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई कानून के खिलाफ जाने को तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि बगैर ठोस आधार के इंदिरा गांधी को गिरफ्तार न किया जाए। ऐसे में चौधरी सिंह किसी मजबूत केस की तलाश में थे जिसे आधार बनाकर इंदिरा को जेल भेजा सके और जीप स्कैम के रूप में उन्‍हें एक बड़ा मुद्दा मिल गया।
  • पहले इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी 1 अक्टूबर के लिए तय की गई थी लेकिन इस पर गृह मंत्री की पत्नी ने रोक लगा दी। उनका तर्क था कि 1 अक्टूबर शनिवार का दिन है और उस दिन गिरफ्तारी से समस्या हो सकती है। इसके बाद चौधरी चरण सिंह 2 अक्टूबर को गिरफ्तारी की तारीख रखना चाहते थे लेकिन उनके स्पेशल असिस्टेंट विजय करण और उनके दामाद के करीबी आईपीएस दोस्त ने 2 अक्टूबर के बाद गिरफ्तारी का सुझाव दिया। 3 अक्टूबर की सुबह इंदिरा गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। उस समय के सीबीआई डायरेक्‍टर एनके सिंह ने एफआईआर की एक कॉपी इंदिरा को दे दी और उसी दिन उनको गिरफ्तार कर लिया गया।
  • इंदिरा गांधी को बड़कल लेक गेस्ट हाउस में हिरासत में रखा जाना था। किसी वजह से उनको वहां नहीं रखा जा सका और फिर रात में उन्‍हें किंग्सवे कैंप की पुलिस लाइन में बने गैजेटेड ऑफिसर्स मेस में लाया गया। अगले दिन यानी 4 अक्टूबर, 1977 की सुबह उन्‍हें मैजिस्ट्रेट की अदालत में पेश गया जहां मैजिस्ट्रेट ने आरोपों के समर्थन में सबूत मांगे। जब उनकी गिरफ्तारी के समर्थन में सबूत पेश नहीं किए जा सके तो मैजिस्ट्रेट ने हैरानी जताई और इंदिरा को इस आधार पर बरी कर दिया कि उनकी हिरासत के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया गया था।
  • इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की इस बड़ी राजनीतिक भूल को ‘ऑपरेशन ब्लंडर’ का नाम दिया गया। इस घटना से नुकसान के बजाए इंदिरा गांधी को फायदा हुआ। उनके खिलाफ जो नफरत का माहौल था, वह सहानुभूति में बदल गया और बाद के चुनावों में उन्होंने जोरदार वापसी की।

आजाद का आरोप- अब शाही मिजाज में जी रहे कांग्रेसी
बरहाल, आजाद ने बताया कि जेल में तब किन मुश्किलों की सामना करना पड़ता था। उन्होंने कहा, ‘एक कंबल से सीमेंट के फर्श पर सोकर रात काटते थे। आधी कंबल फर्श पर बिछाते थे और आधी ओढ़ते थे, उस कड़कड़ाती ठंड में। खाने के लिए दो चपाती और दाल मिलती थी। हमने और कंबल की मांग की तो बताया गया कि जेल की क्षमता 8 हजार है और यहां 1 लाख कैदी हैं तो सबके लिए कहां से कंबल लाएंगे और कहां से खाना लाएं।’ उन्होंने अपने ऊपर लग रहे आरोपों का भी जवाब दिया। आजाद बोले, ‘कांग्रेस हमने बनाई, अपने खून-पसीने से बनाई है। यह कंप्यूटर से नहीं बनी, यह ट्वीट से नहीं बनी, यह एसएमएस से नहीं बनी। जो हमें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी अप्रोच कंप्यूटर, मोबाइल तक है, हमारी अप्रोच जमीन पर है। इसलिए अल्लाह से दुआ करता हूं- हमें जमीन नसीब करे, उन्हें ट्वीट नसीब करे। वो ट्वीट में खुश रहें और हम अपने भाइयों के साथ सड़कों, खेतों-खलिहानों में मेहनत-मजदूरी करें। हमारी जिंदगी और हम अपने उन्हीं गरीब भाइयों के साथ दफन हो जाएं, उन्हें उनकी शहंशाही मुबारक।’

जम्मू में आयोजित एक रैली में आजाद ने कहा कि आज के कांग्रेस नेता सारा आंदोलन सोशल मीडिया पर चलाना चाहते हैं, जमीन पर उतरना कोई नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब कांग्रेस के आम नेता और कार्यकर्ता ही नहीं, बड़े-बड़े पदाधिकारी और केंद्रीय मंत्री तक जमीन पर संघर्ष करते थे। उन्होंने कहा, ‘मैं हमेशा जमीन से जुड़ा रहा हूं। मैं हिंदुस्तान के जिस भी राज्य का प्रभारी रहा, मैं कभी वहां के शहरों में नहीं रहा। कांग्रेस महासचिव और केंद्र सरकार के मंत्री के तौर पर हमेशा देहातों-गांवों में वहां के सरपंचों के यहां रहा करता था।’

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