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पगयात्रा : कुछ अनुभव

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गोपाल राठी

जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद 1980 में  देश भर के समाजवादी साथी बैंगलोर में एकत्रित हुए l किशन पटनायक के नेतृत्व में समता संगठन की स्थापना हुई l यह राजनैतिक दल नहीं राजनैतिक संगठन था l समता संगठन ने उस समय की राजनैतिक हालत का विश्लेषण करते हुए जो निष्कर्ष निकाला उसका सार यह था कि देश में बुनियादी परिवर्तन की दृष्टि से मुख्यधारा के सभी राजनैतिक दल अप्रसांगिक हो गए है इनसे किसी बदलाव की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए l इन दलों के यथास्थितिवाद के कारण परिवर्तन की लड़ाई कुंद हो गई है l भारत मे समता संगठन शायद सबसे पहला राजनैतिक समूह था जिसने सबसे पहले बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और विदेशी पूंजी के बढ़ते हुए खतरे को महसूस किया l संगठन ने फॉरेन फंडिंग पाने वाले गैर सरकारी संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठाए l

संगठन की आचरण संहिता में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादन का निजी जीवन मे उपयोग न करने जैसे अनेक बंधन कार्यकर्ताओं पर लगाए गए जिसे सबने स्वेच्छा से स्वीकार किया l समता संगठन में शामिल पूर्व समाजवादियों की राजनैतिक पृष्ठभूमि के वावज़ूद यह निर्णय लिया गया कि संगठन दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहकर रचना और संघर्ष की राजनीति को स्थापित करेगा l समाज के सबसे कमजोर तबके किसान मज़दूर विद्यार्थी ,महिला दलित आदिवासियों के बीच संगठन और आंदोलन का कार्य करेगा l

समता संगठन की शुरुआत बहुत जोरदार हुई थी l समाजवादियों में एक नई उम्मीद पैदा हुई थी लेकिन चुनावी राजनीति के आकर्षण के कारण बहुत से साथी बीच मे छोड़कर अलग अलग दलों में चले गए l फॉरेन फंडिंग के मुद्दे पर कुछ लोगों ने साथ छोड़ा l संगठन में  इन सब अवरोध के वावज़ूद जोश बरकार रहा l समता संगठन ने देश के विभिन्न अंचलों में स्वत स्फूर्त ढंग से पैदा हुए जनांदोलनों में संवाद और समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया l उन्हें राजनैतिक दिशा देने का प्रयास किया l जनांदोलन समन्वय समिति बनी जिसमे बंगाल केरल झारखंड महाराष्ट्र आदि के आंदोलन कारी समूह शामिल थे l

समता संगठन स्थापना के समय से ही होशंगाबाद जिले में संगठन की युवा इकाई समता युवजन सभा ने विद्यार्थियों और युवजनो के बीच कार्य करना शुरु कर दिया था l  दौरान बनखेड़ी में किसानों मज़दूरों के बीच संगठन का कार्य प्रारम्भ हुआ l स्थानीय मुद्दों को लेकर संघर्ष हुए l जिले के आदिवासी अंचल केसला में आदिवासियों के लिए छुट पुट संघर्ष आंदोलन के बाद 1985 में किसान आदिवासी संगठन की स्थापना हुई l संगठन ने जंगल पर अधिकार , विस्थापितों के पुनर्वास ,एवम पानी के मुद्दे को लेकर आंदोलन शुरू किया l

किसान आदिवासी संगठन ने 1986 में बैतूल जिले के भौरा से भोपाल तक की ऐतिहासिक पदयात्रा आयोजित की जिसमे लगभग 1500 आदिवासी महिला पुरुषों ने भाग लिया l उस समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा थे l जिन्होंने सभी पदयात्रियों को अपने आवास में बुलाकर उनसे एक एक बिंदु पर चर्चा की l मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद पदयात्री वापिस अपने गांव लौटे l इस पदयात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सब अपनी अपनी भोजन सामग्री लेकर साथ चल रहे थे .जहां पदयात्रा का मुकाम होता था सब अपना अपना खाना पका लेते थे l इसके पूर्व 1982 में असम आंदोलन के समर्थन में समता संगठन द्वारा दिल्ली से गौहाटी तक साइकिल यात्रा और 1984 में सिख विरोधी दंगों के खिलाफ दिल्ली से अमृतसर तक पदयात्रा महत्वपूर्ण गतिविधि रही l

1 जनवरी 1995 को थाणे में समता संगठन और अन्य सहमना संगठनो ने मिलकर समाजवादी जनपरिषद नामक राजनैतिक दल को जन्म दिया l समाजवादी जनपरिषद चुनाव आयोग में  पंजीकृत राजनैतिक दल है l 

समता संगठन ,समाजवादी जनपरिषद किसान आदिवासी संगठन , श्रमिक आदिवासी संगठन  ने अपने कार्यक्षेत्र में अब तक सैकड़ो पदयात्राएं की है l इन पदयात्राओं में किसी एक नेता का चेहरा या नेतृत्व नही होता l यह सामूहिक नेतृत्व की एक मिसाल है l पदयात्रा में शामिल व्यक्ति संगठन का न केवल मजबूत कार्यकर्ता बनता है बल्कि जन समस्याओं को लेकर उसकी जमीनी समझ पुख्ता होती है l हमने अपने अनुभव से पाया है कि पदयात्रा आम जन से संवाद का जीवंत माध्यम है l हर पदयात्रा कार्यकर्ताओं को समृद्ध करती है उन्हें प्रशिक्षित करती है l हमारे दिवंगत साथी सुनील पदयात्रा की जगह पगयात्रा शब्द का उपयोग करते थे l वे पर्चे और विज्ञप्ति में इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे l दोनों पर्यायवाची होने के कारण समझने में कभी कोई दिक्कत नहीं आई l

गोपाल राठी

समाजवादी जनपरिषद , पिपरिया

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