अजय असुर
2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में आंध्र प्रदेश बिल पर बहस करते हुए डा अम्बेडकर ने कहा था कि-“Sir, my friends say that I made the Constitution- But I am quite ready to say that I will be first to burn it.“ (महोदय, मेरे मित्र बताते हैं कि संविधान मैंने बनाया। लेकिन मैं यह कहने के लिए काफी तैयार हूं कि मैं इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति बनूंगा।) संविधान लागू होने के बाद सिर्फ 3-4 वर्षों में ही बाबा साहब अम्बेडकर समझ गये थे कि यह संविधान सिर्फ मुट्ठी भर लोगों के पक्ष में तथा बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के खिलाफ है। सत्ता की मलाई चाटने वाले जातिवादी नेताओं के बहकावे में आकर अधिकांश दलित बुद्धिजीवी आज भी इसे अपना संविधान समझते हैं। 2 सितम्बर 1953 को ही इसी आंध्र प्रदेश बिल पर आगे बहस के दौरान बाबा साहब खुद कहते हैं कि “I was a hack“ (मैं भाड़े यानी किराए का लेखक था/मैं हैक कर लिया गया था/मैं वेतनभोगी था।) जो बात बाबा साहब सिर्फ 3-4 वर्षों में ही समझ गये उसे दलित बुद्धिजीवी 72 साल में भी नहीं समझ पाए।
दक्षिण भारत के पेरियार ई. वी. रामास्वामी नायकर ने अनुच्छेद 372 के सवाल पर 26 नवंबर 1957 को अपने 10 हजार समर्थकों के साथ खुलेआम खुली सभा करके भारतीय संविधान को जला दिया था। तब उस वक्त शासक वर्ग ने अपने संविधान की रक्षा के हित में पेरियार को, उनके 3 हजार समर्थकों के साथ, गिरफ्तार कर जेल भेजा था। उन लोगों को 6 महीने से लेकर 3 साल तक की कठोर कारावास की सजा मिली थी। इनमें औरत, बूढ़े तथा बच्चे भी थे। उनमें से 3 लोग जेल के भीतर ही मर गए थे और कारावास के दौरान जेल के अन्दर अमानवीय उपचार के कारण उनकी रिहाई के बाद 13 लोगों की मौत हो गयी थी यानी कुल 16 लोग मर गये थे इस दौरान।
3 नवंबर 1957 को तंजावुर (तमिलनाडु) में ने कड़गम के एक विशेष सम्मेलन में पेरियार ने पूछा कि क्या जाति एक स्वतंत्र देश में मौजूद हो सकती है? इसके बाद उसने पूछा, क्या ऐसा देश जहां जाति व्यवस्था मौजूद है, एक स्वतंत्र देश कहा जा सकता है? इस सभा में पेरियार ने भारत सरकार को 15 दिन की समय सीमा दिया कि भारतीय संविधान में जो उपबंध (अनुच्छेद 372) जाति की रक्षा करते हैं, उन्हें सरकार हटा ले। जो 15 दिन की समय सीमा दी गयी, वो असफल रहा, तो पेरियार ने भारतीय संविधान को जलाने की खुलेआम घोषणा की और 26 नवंबर 1957 को जला दिया। पेरियार ने 26 नवंबर का दिन इसलिये चुना क्योंकि उसी दिन यानी 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया था और इसको अपना लिया गया था।
भारतीय संविधान को जलाकर जेल जाने वाले लोगों में से कोई भी अपने घर में कुछ हताहत और घटनाओं के बावजूद जमानत के लिए मना कर दिया था। उन लोगों ने अदालत में बयान दिया कि भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद 372 जो कि जाति एवं वर्ण व्यवस्था को बनाए रखने को मजबूर करता है, को सरकार ने जानबूझ कर बनाये रखा है इसलिये भारतीय संविधान को जला दिया तो उन लोगों ने (दुनिया में) जो भी सजा, न्यायाधीशों को थोपने की इच्छा है, वे खुशी से स्वीकार कर लेंगे और न्यायालय के फैसले का सम्मान करेंगे (यदि न्यायालय को भी लगता है कि हम सभी लोगों ने गलत काम किया है) और जमानत नहीं लेंगे और उन लोगों ने किसी भी वकील को जमानत और केस के लिये नहीं लगाया और न्यालायाय द्वारा दिया गया सजा सहर्ष स्वीकार कर जेल चले गये।
कक्षा 5 पास पेरियार ने भारतीय संविधान के मूल रहस्य को समझ लिया था मगर आज हजारों आईएएस, पीसीएस और लाखों बुद्धिजीवी बी.ए., एम.ए., एल.एल.बी., पी.एच.डी. जैसी डिग्रियां हासिल करने के बाद भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह बाबा साहब की मर्जी का संविधान नहीं है तथा यह संविधान शोषक वर्ग के हितों की रक्षा के लिए है ना कि गरीबों की झोपड़ियों की रक्षा के लिए। और यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इस तरह का संविधान इसलिए लाया गया कि आज के विज्ञान के युग में जनता को मनुस्मृति से हांका जाना संभव नहीं है। उस वक्त की भौतिक परिस्थियाँ अलग थी और आज पहले बहुत भिन्न है और पहले से उन्नत समाज है। अब कान सीधे नहीं हाथ उलटाकर, पीछे से पकड़ना पड़ेगा और यह बात शासक वर्ग समझ गया था इसलिए उसने मनुस्मृति को रिप्लेस कर नया संविधान बना दिया और देश की बहुसंख्यक जनता पर थोप दिया, जनता विद्रोह ना कर दे इसलिए बाब साहेब अम्बेडकर को आगे कर उन्हीं का नाम इस्तेमाल किया।
जो यह लोग सोचते हैं और जनता के बीच भ्रम फैलाते हैं कि यह वर्तमान संविधान हटाकर मनुस्मृति या उसी जैसा एक नया संविधान बनकर तैयार है और इस नये संविधान/मनुस्मृति को फिर से लागू कर दिया जायेगा। यह पूरी तरह से झूट और लफ्फाजी है। और संविधान बदलेगा कौन हमारे आपके जैसे निरहु-घुरहू लोग या फिर वह शासक वर्ग जो सरकार चला रहा है? जब वर्तमान संविधान पूरी तरह से शासक वर्ग के पक्ष में है और उन्हीं के पक्ष में ही काम कर रहा है तो फिर उसको बदलने की क्या जरूरत है।
यदि आज इस समाज में मनुस्मृति सरकार लागू भी कर दे (जैसा कि कुछ लोग सोचते हैं, पर यह सम्भव नहीं है) तो कौन मनुस्मृति को मानेगा? आप मानोगे उस मनुस्मृति के कानून को? नहीं ना! तो फिर जनता विद्रोह कर देगी। और कौन सी सरकार चाहेगी की जनता विद्रोह करने के लिये सड़क पर उतरे। यदि यह सब ना सोचे और लागू कर भी दे तो उसे तीनों कृषि कानून की तरह वापस लेना पड़ेगा। तो कोई भी सरकार आए मनुस्मृति आजके समय में लागू नहीं कर सकती।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में दो वर्ग है, एक शोषक और एक शोषित, एक शासक और एक शासित, एक उत्पीड़क और एक उत्पीड़ित, एक अमीर और एक गरीब। तो कोई भी संविधान/नियम/कानून या तो शोषक के पक्ष में होगा या शोषित, उत्पीड़ित, गरीब मेहनतकश जनता के हक में होगा। क्योंकि दोनों के हक एक दूसरे के विपरीत हैं। अब जंगल में कोई भी नियम कानून बनेगा तो या तो वो शेर के पक्ष में होगा या फिर उस बकरी के पक्ष में होगा। तो जिस संविधान की पूजा, अडानी, अम्बानी, टाटा, बिड़ला, मोदी… करते हैं, उसी संविधान की पूजा हम भी करते हैं तो यह तो उन्हीं के पक्ष में जायेगा। यदि यह संविधान भारत के शोषित, उत्पीड़ित जनता के पक्ष में होता तो संविधान को लागू हुई पूरे 72 वर्ष बीत गये और देश की बहुसंख्यक मेहनतकश जनता की जरूरत आज 5 किलो मुफ्त अनाज पर बनी है और इसके विपरीत चन्द मुट्ठीभर पूंजीपति अडानी, अम्बानी, मित्तल… जैसे लोग दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहें हैं। उसीका नतीजा आज अडानी दुनिया के अमीरों में तीसरे नम्बर पर पहुँच गया और जल्द ही सबको पछाड़ते हुवे नम्बर एक पर पहुँच जायेगा। आखिर कैसे? कंही मिट्टी निकलेगी तो कंही मिट्टी का पहाड़ बन जायेगा और कंही गड्ढ़ा बन जायेगा। तो शोषित, उत्पीड़ित जनता गरीब होती जा रही है और मुट्ठीभर अमीर। आखिर कैसे मेहनतकश जनता दिन-ब-दिन नित्य नई परेशानियों से परेशान होती जा रही है और वंही मुट्ठीभर भर लोग नित्य नई ऊँचाईयाँ छूते जा रहें हैं? आखिर कैसे?
साथियों अब आप ही तय करें कि यह संविधान किसके पक्ष में है? शोषित उत्पीड़ित बहुसंख्यक जनता यानी हमारे आपके पक्ष में है या फिर मुट्ठीभर लोगों यानी मोदी, अडानी अम्बानी… जैसे शासक वर्ग के पक्ष में है।
*अजय असुर*
*रास्ट्रीय जनवादी मोर्चा*